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लोकसभा चुनाव 2019: क्या बयानबहादुर तय करते हैं चुनाव में जीत-हार?

By प्रेम कुमार
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नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में जब बयानबहादुर अखाड़े में उतरते हैं तो लगाम आखिरकार ओहदेदार नेताओं के पास ही आ ठहरती है। किस बयान पर माफी मांगें, किस बयान को अदालत में ले चलें और किस बयान के जवाब में जवाबी सीरीज़ चलाएं, ये सब ओहदेदार नेता ही तय करते आए हैं। नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कुछेक बयान ऐसे हैं जिन्हें बीजेपी अपने लिए जीत का सबब बताती हैं। ऐसा इसलिए कि वे बयान कांग्रेस के ओहदेदार नेताओं की ओर से दिए गये थे। अपनी जीत के लिए कांग्रेस के नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराना भारतीय राजनीति में बडा अपशब्द है। फिर भी मर्यादा की श्रेणी से यह बाहर नहीं है।

क्या सोनिया के बयान से गुजरात और राहुल के बयान से हारी थी कांग्रेस?

क्या सोनिया के बयान से गुजरात और राहुल के बयान से हारी थी कांग्रेस?

कहा जाता है कि 2007 में नरेंद्र मोदी गुजरात विधानसभा का चुनाव इसलिए जीते क्योंकि सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर' बताया था। यह अतिशयोक्ति इसलिए है क्योंकि अगर यही सच है तो 2003 में गुजरात में दंगों के बाद या फिर 2012 में नरेंद्र मोदी की जीत कैसे हुई?

यह भी अजीब है कि 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत के लिए राहुल गांधी के उस बयान को जिम्मेदार बताया जाता है जिसमें उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी ज़हर की खेती करते हैं। कहने वाले तो प्रियंका के उस बयान को भी जिम्मेदार बताते हैं जिसमें नरेंद्र मोदी पर ‘नीच राजनीति' करने का आरोप उसी चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान लगाया था। प्रियंका के इस बयान को अपनी जाति से जोड़कर, गरीबी और विपन्नता से जोड़कर खुद को बर्तना मांजने वाली का बेटा और चाय वाला बताकर नरेंद्र मोदी ने घंटे भर से ज्यादा का भाषण दिया था। कहते हैं कि इसी वजह से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा।

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यूपी में किसने किसको हराया?

यूपी में किसने किसको हराया?

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 इसलिए बीजेपी जीत गयी क्योंकि राहुल गांधी ने कहा था कि नरेंद्र मोदी ‘जवानों के ख़ून की दलाली' करते हैं। अगर ये सच है तो समाजवादी पार्टी की हार का कोई मतलब नहीं? बीजेपी ने यूपी में कांग्रेस को हराया था या कि समाजवादी पार्टी को- यह भी बड़ा सवाल है।

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2019 में राहुल के बयान पर सियासत

2019 में राहुल के बयान पर सियासत

2019 में राहुल गांधी के उस बयान को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं नरेंद्र मोदी जिसमें उन्होंने नीरव मोदी, ललित मोदी के बहाने मोदी नामदारों पर हमला बोल रहे हैं। नरेंद्र मोदी इसे पूरी जाति को बदनाम करना बता रहे हैं। इससे आगे वे खुद को पिछड़ी जाति का बताते हैं और फिर कहते हैं कि पिछड़ी जाति को बदनाम करने में जुटे हैं राहुल गांधी। नरेंद्र मोदी को विश्वास हो चला है कि वास्तव में सोनिया, राहुल और प्रियंका के भाषणों में गलती के कारण ही उन्हें जीत मिलती रही है। यही कारण है कि अब वे राहुल के मोदी वाले बयान से कांग्रेस पर पलटवार कर रहे हैं और इतिहास दोहराने की उम्मीद पाले बैठे हैं।

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अदालत में पहली बार दी गयी है किसी नारे को चुनौती

अदालत में पहली बार दी गयी है किसी नारे को चुनौती

2019 और पहले के चुनावों में एक बात अलग हटकर हुई है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि किसी ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई बयान दिया हो और अदालत में चुनौती दी गयी हो। उन बयानों से खुद नरेंद्र मोदी निपट लिया करते थे। मगर, इस बार ‘चौकीदार चोर है' सुनकर अलग किस्म की प्रतिक्रिया देखने को मिली। पहले तो नरेंद्र मोदी ने अपने समर्थक वर्ग को ही ‘चौकीदार' बना डाला। इससे भी बात नहीं बनी, तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अब सुप्रीम कोर्ट राहुल गांधी से जवाब-तलब कर रहा है। सवाल ये है कि क्या नारे को उलटकर जवाबी हमला करने का स्वभाव और क्षमता खो चुके हैं नरेंद्र मोदी? या फिर कांग्रेस को जवाब देने का विश्वास कहीं खो-सा गया है? वैसे, संवैधानिक तरीके से उपचार हासिल करना सर्वश्रेष्ठ तरीका है। मगर, बीजेपी ने हमेशा इसकी अनदेखी की है। इसके बजाए वह रोने-गाने लग जाती है। यह पहला मौका है जब बीजेपी राहुल गांधी के आरोप से अपना बचाव करने के लिए अदालत की चौखट तक जा पहुंची है।

बयानबहादुरों से निपटने का कोई रास्ता है?

बयानबहादुरों से निपटने का कोई रास्ता है?

सवाल ये है कि क्या नेताओँ के पास बयानबहादुरों से निपटने का कोई रास्ता नहीं बचा है? क्या शीर्ष नेताओं को बयानबहादुर बनने से रोका नहीं जा सकता? बहादुर और बयानबहादुर का फर्क जो जानते हैं क्या उन्हें नहीं मालूम कि चौकीदार और चोर में क्या फर्क है? सबको इन शब्दों के मायने पता हैं और इनके दुरुपयोग को भी सब समझते हैं। इसके बावजूद राजनीति इनसे बाहर क्यों नहीं निकल पा रही है?

मोदी को नीतीश ने दिया था जवाब

मोदी को नीतीश ने दिया था जवाब

जब बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के डीएनए में खोट निकाली थी, तो नीतीश कुमार ने भी व्यक्तिगत आरोप को ‘बिहारियों का अपमान' की तरह पेश किया था। यानी मोदी को मोदी की शैली में ही जवाब दिया गया था। फिर भी, ये नहीं कहा जा सकता कि इसी बयान के कारण नीतीश कुमार की जीत बिहार विधानसभा चुनाव में हुई थी या फिर बीजेपी की हार। उसकी असली वजह था महागठबंधन। इसलिए इस सोच को बदलने की जरूरत है कि बयानबहादुर चुनाव में जीत-हार तय करते हैं।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: if foul-mouthed politicians decide the polls
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