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EVM पर प्रणब की प्रशंसा, चुनाव आयोग की सफाई और विपक्ष का विरोध

By आर एस शुक्ल
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नई दिल्ली। एक्जिट पोल को लेकर खुशी और चिंता एक दिन से ज्यादा नहीं चल पाई। शक की सुई आखिरकार ईवीएम पर ही आकर टिक गई है। ऐसा भी नहीं है कि ईवीएम को लेकर केवल विपक्ष चिंतित है। भाजपा भी आशंकित है। विपक्ष पूरे देश में इसको लेकर परेशान है, तो भाजपा के निशाने पर केवल पश्चिम बंगाल और गैर भाजपा शासित राज्य। यह संकेत भाजपा की ओर से चुनाव आयोग को दिए गए ज्ञापन से मिलते हैं। पश्चिम बंगाल में मतदान के दौरान हुई हिंसा के आधार पर भाजपा को आशंका है कि वहां ईवीएम के साथ कुछ भी किया जा सकता है। दूसरी तरफ, विभिन्न जगहों पर ईवीएम मशीनों से भरे ट्रक स्ट्रांग रूम में जाने की शिकायतों के आधार पर विपक्ष को यह खतरा महसूस हो रहा है कि ईवीएम मशीनें बदली जा सकती हैं।

EVM पर प्रणब की प्रशंसा, EC की सफाई और विपक्ष का विरोध

हालांकि चुनाव आयोग की ओर से इस तरह की आशंकाओं को पूरी तौर पर खारिज कर दिया गया है और कहा गया है कि ईवीएम की कड़ी सुरक्षा की व्यवस्था है और आरोप निराधार हैं। विपक्ष ने नए सिरे से बैठक कर ईवीएम और वीवीपैट के मुद्दे पर रणनीति बनाई है और चुनाव आयोग से शिकायत भी दर्ज कराई है। सुप्रीम कोर्ट का वीवीपैट पर फैसला आया है जिसमें उसकी ओर से इस आशय की याचिका खारिज कर दी गई है जिसमें सौ प्रतिशत वीवीपैट के सत्यापन की मांग की गई थी। इस सबके बीच पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने चुनाव आयोग की ठीक से मतदान संपन्न कराने के लिए प्रशंसा की है। यह प्रशंसा तब की गई है जबकि चौतरफा उस पर आरोप लगाए जाते रहे हैं। इतना ही नहीं, एक चुनाव आयुक्त की ओर से भी पहले ही चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों पर मत भिन्नता को दर्ज करने को लेकर सवाल उठाए गए हैं। इस बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की ओर से भी कहा गया है कि कार्यकर्ता एक्जिट पोल के अनुमानों को दरकिनार कर ईवीएम की सुरक्षा पर अपना ध्यान केंद्रित करें जो आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

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फिलहाल जिस तरह के राजनीतिक हालात दिख रहे हैं, उससे इतना तो साफ लग रहा है कि परिणाम चाहे जो आएं, विवाद के केंद्र में चुनाव आयोग की भूमिका और ईवीएम ही रहने वाला है। इसके पीछे स्वाभाविक कारण भी नजर आ रहे हैं। पहले ईवीएम को लेकर आशंकाएं जाहिर की जा रही थीं और इस आशय की मांग की जा रही थी कि ईवीएम की बजाय मतपत्रों के माध्यम से मतदान कराए जाएं। लेकिन इस मांग को स्वीकार नहीं किया गया। इसके बाद वीवीपैट को सभी मशीनों के साथ लगाने और उसका मिलान करने की मांग की गई। उसे भी एक तरह से खारिज कर दिया गया। चुनाव आयोग द्वारा मांग अनुसुनी कर दिए जाने के बाद विपक्ष मामले को सर्वोच्च न्यायालय तक ले गया, लेकिन उसमें भी आंशिक सफलता ही मिली। अब सभी चरणों के मतदान के बाद नई तरह की समस्याएं सामने आने लगीं। कई स्थानों से इस आशय की खबरें अचानक आने लगीं कि ईवीएम मशीनों को बदले जाने की कोशिशें की जा रही हैं। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार और पंजाब आदि से ईवीएम की सुरक्षा में सेंध की शिकायतें आने लगीं। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में गठबंधन प्रत्याशी अफजाल अंसारी समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गए। उनका आरोप था कि ईवीएम मशीनें बाहर ले जाने की कोशिशें की जा रही हैं। डुमरियागंज में भी ईवीएम से भरा ट्रक पकड़े जाने की जानकारी सामने आई है। हरियाणा के फरीदाबाद से भी इसी तरह की शिकायत आई। बिहार के सारण में भी इस आशय की शिकायत की गई है।

चुनाव आयोग की ओर से अगर यह कहा गया है कि ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित हैं, तो इसे माना जा सकता है, लेकिन इसका जवाब कैसे मिलेगा कि जब सब कुछ सुरक्षित है तो ये ट्रक कैसे आ-जा रहे हैं। अमेठी से लेकर झांसी, मऊ, मिर्जापुर समेत कई अन्य जगहों से भी इसी तरह की शिकायतें सामने आई हैं। भाजपा की ओर से दिए गए उस ज्ञापने की भी कैसे अनदेखी की जा सकती है जिसमें मांग की गई है कि पश्चिम बंगाल में ईवीएम की सुरक्षा की गारंटी की जानी चाहिए। भाजपा की यह मांग वहां हर मतदान के दौरान और रोड शो के दौरान हुई हिंसा के परिप्रेक्ष्य में की गई है क्योंकि उसे भी यह आशंका है कि वहां कुछ गड़बड़ किया जा सकता है। भाजपा की ओर से तो ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में भी अतिरिक्त सुरक्षा की मांग की गई है। यद्यपि विपक्ष की तरह सीधे तौर पर भाजपा ने चुनाव आयोग पर कोई अंगुली नहीं उठाई है लेकिन कहीं न कहीं उसे भी यह आशंका जरूर लगती है कि इन विपक्षी राज्यों में ईवीएम के साथ कुछ गड़बड़ियां की जा सकती हैं। इस सबका साफ मतलब है कि ईवीएम की सुरक्षा को लेकर गंभीर लोगों में सवाल तो हैं।

अभी 23 मई को परिणाम आने वाले हैं। उससे पहले आए एक्जिट पोल के अनुमानों में भाजपा और एनडीए की पुनर्वापसी की बात की गई है। अगर इसी तरह के परिणाम भी सामने आए तो स्वाभाविक रूप से विपक्ष ईवीएम को लेकर नए सिरे से आक्रामक हो सकता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह माना जा सकता है कि विपक्ष मानकर चल रहा था कि जनता में इस सरकार के प्रति तीखा विरोध है। इस कारण उसे पराजय का सामना करना पड़ेगा। हालांकि ऐसा मानने और कहने वाले भी कम नहीं थे जो दावे के साथ कह रहे थे कि केंद्र में एनडीए की ही सरकार बनने वाली है। लेकिन शायद विपक्ष ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया और विपरीत परिणाम आने के बाद भी शायद ही वह इसे आसानी से स्वीकार कर सके। अगर विपक्ष को हार का सामना करना पड़ता है, तो उसके पास अपनी हार छिपाने का इससे बढ़िया और कोई बहाना नहीं मिल सकता कि वह ईवीएम को जिम्मेदार ठहराए। लेकिन बात इतनी भर लगती नहीं। इसे भी नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि ईवीएम को लेकर उठाए जा रहे सवालों का जवाब सिर्फ खंडन नहीं हो सकता बल्कि यह सुनिश्चित करना होगा कि इसकी अदलाबदली नहीं की गई। वीपीपैट के मिलान को भी आज नहीं तो कल सुनिश्चित करना होगा क्योंकि अगर जरा सी भी शक की गुंजाइश है तो उसे दूर किया जाना चाहिए। तभी लोकतंत्र का कोई मतलब रह जाएगा।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: Pranab Mukherjee praises Election Commission, EVM Issue opposition protest
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