नमो टीवी पर बीजेपी को नोटिस और चुनाव आयोग की निष्पक्षता का सवाल
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के दौरान जितने तरह के आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं, उनमें सर्वाधिक आरोप चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और उसके भेदभावपूर्ण रवैये को लेकर माने जा सकते हैं। विपक्ष की ओर से लगातार इस आशय के आरोप लगाए जाते रहे हैं कि चुनाव आयोग भेदभावपूर्ण तरीके से काम कर रहा है। उसके निशाने पर केवल विपक्ष है। सत्ता पक्ष विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए उसके पास कार्रवाई के नाम पर क्लीनचिट के अलावा कुछ भी नहीं है। लेकिन चुनाव आयोग इस तरह के आरोपों का मौखिक खंडन करने के बजाय अक्सर अपनी कार्रवाइयों के माध्यम से भी यह बताने की कोशिश करता दिखता है कि नहीं उसके लिए सभी बराबर हैं। अगर ऐसा न होता तो आयोग नमो टीवी के बारे में बीजेपी को नोटिस नहीं जारी करता। इस नोटिस के माध्यम से बीजेपी से जवाब तलब किया गया है। यह वही नमो टीवी है जिसको लेकर विपक्ष लगातार सवाल उठाता रहा है और कभी कुछ नहीं किया गया। हालिया नोटिस का मामला दिल्ली में चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद भी प्रसारण से जुड़ा हुआ है। आयोग से इसकी शिकायत किए जाने के बाद यह नोटिस जारी किया गया है।
दिल्ली में चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद भी प्रसारण से जुड़ा है मामला
नमो टीवी को लेकर बीजेपी को नोटिस के समय ही दो और बातें चुनाव आयोग से संबंधित हुई हैं। इसमें एक है कांग्रेस नेता और पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को तीसरी बार नोटिस जारी किया जाना। यह नोटिस इस आरोप के बाद भेजा गया है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपमानजनक टिप्पणी की है। इससे पहले भी दो बार सिद्धू को नोटिस दिया जा चुका है लेकिन सिद्धू हैं कि मानते ही नहीं और लगातार प्रधानमंत्री को निशाना बनाते रहते हैं। दूसरी बात कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से जुड़ी है। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की ओर से दी गई एक नोटिस का जवाब देते हुए आयोग को निष्पक्ष और भेदभावरहित कार्रवाई करने की अपील की है। राहुल ने यह भी कहा है कि चुनाव आयोग को सत्ता पक्ष और विपक्ष के बारे में एक समान व संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इस संदर्भ में उन्होंने प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष के आपत्तिजनक वक्तव्यों का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि आयोग को इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता। दरअसल, राहुल गांधी ने अपने किसी वक्तव्य में कुछ ऐसा कह दिया था कि सरकार ने ऐसा कानून बना दिया है जिसमें आदिवासियों को गोली मार देने की व्यवस्था है। इस पर सफाई देते हुए राहुल ने आयोग को निष्पक्षता की सलाह दी है और सफाई दी है कि उनका बयान सरल तरीके से बात रखने की कोशिश थी न कि किसी को बहकाने की। अब यह तो बाद में पता चलेगा कि राहुल के जवाब से आयोग संतुष्ट होता है अथवा नहीं। इसी तरह, यह भी देखने की बात होगी कि राहुल की निष्पक्षता की अपील को चुनाव किस तरह लेता है।
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विपक्ष के निशाने पर चुनाव आयोग
क्या इस सब को इस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा सकता है कि जब विपक्ष लगातार आयोग पर पक्षपातपूर्ण रवैया अख्तियार करने का आरोप लगाता रहा हो, तब किसी एक नेता को करीब आधा दर्जन मामलों में क्लीनचिट सवालों के घेरे में नहीं आ सकती। हालांकि केवल इसी आधार पर आयोग की निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता क्योंकि आयोग की ओर से कई अन्य नेताओं को भी क्लीनचिट मिल चुकी है जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और कई अन्य नेता भी शामिल हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान, भाजपा की नेता और केंद्र में मंत्री मेनका गांधी, कांग्रेस नेता और पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू, भोपाल से बीजेपी प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आदि नेताओं के खिलाफ आयोग की ओर से कार्रवाई भी की गई है। इसके बावजूद इस आशय के आरोप लगाए जाते रहे हैं। इस तरह की आम धारणा भी लोगों में बनी है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है जिसकी वजह से सत्ताधारियों की तुलना में विपक्षियों के खिलाफ ज्यादा सख्ती दिखाई जा रही है। एक जानकारी इस तरह की भी है जिसके मुताबिक चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की सर्वाधिक शिकायतें बीजेपी नेताओं को लेकर आई हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू को तीसरी बार नोटिस
एक आम कहावत है कि न्याय सिर्फ मिलना ही नहीं चाहिए बल्कि दिखना भी चाहिए। चुनाव आयोग के संदर्भ में भी इसे लागू किया जा सकता है। भले ही आयोग की ओर से पूरी निष्पक्षता बरती जा रही हो और किसी तरह का भेदभाव न किया जा रहा हो, लेकिन लोगों को लग ऐसा रहा है कि सब कुछ पूरी ईमानदारी से नहीं किया जा रहा है। संभवतः इसी वजह से चुनाव आयोग आरोपों में घिरता जा रहा है। अगर विपक्ष के आरोपों में जरा सी भी सच्चाई है और लोगों की धारणा तथ्यों के आधार पर बन रही है, तो इसे इस महान संस्था के लिए किसी भी तरह से अच्छा नहीं माना जा सकता। कहा जा सकता है कि पहले भी चुनाव आयोग पर आरोप लगते रहे हैं लेकिन इस तरह कभी नहीं जैसे इस आयोग पर लग रहे हैं। इसके अलावा, टीएन शेषन और लिंगदोह जैसे चुनाव आयुक्तों की प्रशंसा भी की जाती है। लेकिन अब समय शायद कुछ ज्यादा ही खराब हो चला है। इस सबके बावजूद माना जा सकता है कि चुनाव आयोग अपनी समीक्षा खुद करेगा और आम धारणा को बदलने और विपक्ष के आरोपों का अपनी कार्रवाइयों से जवाब देने में सक्षम होगा।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)