मोदी-शाह के कमज़ोर होने से ही बनेगी अगली बीजेपी समर्थित सरकार
नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी-अमित शाह बीजेपी की ताकत बनकर उभरे थे। एक ने बीजेपी को सत्ता के उच्च सिंहासन पर विराजमान किया, तो दूसरे ने बीजेपी को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बना डाला। दौलत के मामले में भी बीजेपी दुनिया की सबसे अमीर पार्टी हो गयी। मगर, वक्त को बदलते देर नहीं लगती। इस जोड़ी का वर्चस्व अपनी मियाद पूरी करने जा रहा है। इसके संकेत मिलने लगे हैं। जो संकेत मिल रहे हैं वो पुख्ता हैं और विश्वसनीय भी।
सुब्रहमण्यम स्वामी और राम माधव दो नेताओं के हालिया बयान को सबूत के तौर पर लिया जा सकता है। दोनों बयान चौथे चरण के चुनाव के बाद के हैं और पांचवें चरण से पहले के, मतलब ये कि 374 सीटों पर चुनाव हो चुकने के बाद के हैं और 425 सीटों पर चुनाव संपन्न होने से पहले के हैं। बची हुई 119 सीटों से भी चमत्कार की उम्मीद ख़त्म हो चुकी है, यह इस बात का द्योतक भी है।
अपने दम पर नहीं मिलेगा एनडीए को बहुमत
सुब्रहमण्यम स्वामी और राम माधव दोनों ने कहा है कि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिलने जा रहा है। सुब्रहमण्यम स्वामी ने बीजेपी के लिए 220 से 230 का आंकड़ा रखा है। उनके हिसाब से अगर पुलवामा के बाद बालाकोट की एअर स्ट्राइक नहीं हुई होती, तो आंकड़ा 160 तक हो सकता था। वहीं, राम माधव बताते हैं कि बीजेपी को अगर 271 सीटें मिल जाएं तो बहुत खुशी की बात होगी। उनके बयान का मतलब ये है कि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिलेगा, लेकिन वह बहुमत के आंकड़े (272) के जितना अधिक करीब पहुंचेगी, उन्हें उतनी अधिक खुशी मिलेगी।
सुब्रह्मण्यम स्वामी थोड़ा बेबाक हैं जबकि राम माधव थोड़ा संतुलित, इस वजह से एनडीए को बहुमत मिलेगा या नहीं, इस बारे में दोनों की राय थोड़ी अलग है। जैसे ही सुब्रह्मण्यम स्वामी कहते हैं कि नयी एनडीए सरकार को ममता बनर्जी और नवीन पटनायक जैसे नेता समर्थन कर सकते हैं, तो यह बात भी साफ हो जाती है कि सिर्फ बीजेपी ही नहीं, एनडीए को भी अपने दम पर बहुमत नहीं मिलने जा रहा है। वैसे, राम माधव एनडीए सरकार बनने को लेकर आश्वस्त होने का दिखावा कर रहे हैं तो इसकी वजह चुनाव का जारी रहना हो सकता है।
अखिलेश ने बढ़ाया मायावती का नाम
भावी सरकार की संभावनाओं पर अखिलेश यादव के उस बयान से भी जोड़कर देखने की जरूरत है जिसमें वे कह रहे हैं कि अगर एसपी-बीएसपी गठबंधन टूटा तो यह बहुत बड़ी भूल होगी। वे यहां तक कह रहे हैं कि थर्ड फ्रंट की सरकार बनने की स्थिति में वे पहले व्यक्ति होंगे जो मायावती का नाम प्रधानमंत्री के तौर पर आगे करेंगे। अखिलेश के बयान में बीजेपी या एनडीए को बहुमत नहीं मिलने का विश्वास झलकता है तो बीएसपी का साथ छूट जाने की आशंका भी दिखती है। वे एसपी-बीएसपी गठबंधन को आगे बढ़ाने के लिए उतावले भी दिखते हैं और इसकी वजह 2022 का विधानसभा चुनाव है जिसमें वे अपने मुख्यमंत्री बनने के लिए मायावती से समर्थन की उम्मीद लगाए बैठे हैं। अखिलेश यादव के इस अति आत्मविश्वास को देखकर उनसे सहानुभूति होती है। राजनीति इतनी भरोसेमंद कहां है!
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पीएम के लिए मायावती की दावेदारी सबसे सशक्त
मायावती-अखिलेश गठबंधन का सबसे फौरी फायदा मायावती को मिलने की सम्भावना इसलिए अधिक है क्योंकि वह नीतीश कुमार की तरह न तो एनडीए में हैं और न ही उन्होंने शरद पवार की तरह चुनाव नहीं लड़कर प्रधानमंत्री बनने की सम्भावनाओं को कमजोर किया है। मायावती के पास ममता बनर्जी और नवीन पटनायक की तरह मुख्यमंत्री पद की रक्षा करने का टेंशन भी नहीं है और वह एसपी से गठबंधन कर बुनियादी समर्थन हासिल कर वह किसी अन्य सम्भावित दावेदारों पर बढ़त हासिल कर चुकी हैं। ऐसे में एनडीए और यूपीए दोनों के लिए सरकार बनाने की सम्भावना का नाम हो सकती हैं मायावती और इसके लिए शर्त होगी उनके लिए प्रधानमंत्री पद का आरक्षण। हालांकि अखिलेश के बयान पर गौर करें तो वह थर्ड फ्रंट की सरकार के लिए मायावती का नाम बढ़ना चाहते हैं न कि किसी एनडीए सरकार के लिए।
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एनडीए में कमज़ोर होंगे मोदी-शाह
बहरहाल यह तब की स्थिति है जब बीजेपी या एनडीए बहुमत से बहुत दूर रह जाए। अगर बहुमत के करीब का मामला रहा, तब स्थिति कुछ भिन्न हो सकती है। मगर, नरेंद्र मोदी-अमित शाह के लिए स्थिति भिन्न होगी इसकी गुंजाइश बहुत कम है। शिवसेना इस जोड़ी से खार खाए बैठी है। वहीं, नीतीश, नवीन, माया, चंद्रशेखर राव सरीखे कोई भी नेता मोदी-शाह की छत्रछाया नहीं चाहता। मोदी-शाह से आज़ादी की शर्त ही इनमें से किसी एक के एनडीए सरकार बनाने में भूमिका और उस भूमिका में उनके लिए प्रधानमंत्री जैसी केंद्रीय भूमिका की ज़रूरत होगी। मगर, सवाल ये है कि मोदी-शाह के समर्थन से बनी सरकार ऐसी अपेक्षा कैसे रख सकती है। इस अपेक्षा को पूरी करने में मदद की खातिर खुद बीजेपी में ही ऐसी ताकत का जन्म होने वाला है। ऐसी ताकत की नुमाइंदगी का प्रतीक हो सकते हैं नितिन गडकरी। यूपीए सरकार नहीं बनने देने के नाम पर ऐसी ताकत पार्टी में मजबूत होगी।
कहने का अर्थ ये है कि मोदी-शाह की जोड़ी जो अब तक बीजेपी और एनडीए की ताकत रही है आने वाले समय में यही जोड़ी कमजोरी बनकर उभर रही है। यह भी साफ है कि एक बार अगर यह जोड़ी केन्द्रीय भूमिका से अलग हटी, तो खुद बीजेपी के भीतर भी निरंकुश सत्ता के ख़िलाफ़ बगावत तेज हो जाएगी। ऐसी ही स्थितियों के लिए कहा गया है कि वक्त हमेशा किसी के साथ नहीं रहता और ताकत कभी स्थायी नहीं होती। एक और सीख लेने का वक्त दस्तक दे रहा है।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं.)