क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

कहीं अलवर के बहाने अंतिम चरण में दलित राजनीति चमकाने की कवायद तो नहीं?

By आर एस शुक्ल
Google Oneindia News

नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों के पहले दलितों के मुद्दे पर ऊना से लेकर हैदराबाद और दिल्ली तक बड़े-बड़े आंदोलन हुए थे। उन आंदोलनों की बदौलत यह माना जा रहा था कि इन चुनावों में दलितों का मुद्दा प्रमुखता से उठेगा और विपक्ष इसे बड़ा चुनावी हथियार अवश्य बनाएगा। लेकिन अगर बीते छह चरणों पर व्यापक नजर डाली जाए, तो पता चलता है कि यह शायद ही किसी भी पार्टी के लिए कोई मुद्दा रहा हो। अब जबकि मात्र एक ही चरण बाकी रह गया है, विपक्ष की बजाय लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे चुनावी मुद्दे के तौर पर उठा दिया है। प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे को उठाया है राजस्थान के अलवर से जहां एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार की वारदात हुई थी। अब उस मामले को उन्होंने उत्तर प्रदेश में बसपा प्रमुख मायावती और उनकी दलित राजनीति को निशाने पर लेने के लिए उठा लिया है।

कहीं अलवर के बहाने दलित राजनीति चमकाने की कोशिश तो नहीं?

प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश की एक चुनावी रैली में कहा कि मायावती मगरमच्छी आंसू क्यों बहा रही हैं। राजस्थान में दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार पर वह वहां की सरकार से समर्थन वापस क्यों नहीं लेतीं जो उनके समर्थन से चल रही है। जाहिर है चुनावी राजनीति में उनकी ओर से यह मुद्दा उठाया ही जा सकता है क्योंकि इससे एक तो यह बताया जा सकता है कि मायावती का दलित प्रेम दिखावा है और दूसरा यह कि इसके जरिये दलित वोटों को साधा जा सकता है। लेकिन शायद प्रधानमंत्री यह अंदाजा नहीं लगा सके कि मायावती को निशाने पर लेकर उन्होंने बर्रे के छत्ते में हाथ डाल दिया है। हुआ वही जो होना ही था। बसपा प्रमुख मायावती भी अपने पर आ गईं और प्रधानमंत्री पर व्यक्तिगत आक्रमण तक से भी परहेज नहीं किया। लेकिन इस सबके बीच यह जरूर हुआ कि गलत कारणों से ही सही दलितों का मुद्दा भी चुनाव में उठ ही गया। अलवर के बहाने ही सही, ऊना का भी जिक्र हो गया और रोहित बेमुला को भी याद कर लिया गया और वह भी उस उत्तर प्रदेश में जहां पूरी की पूरी दलित राजनीति बसपा के इर्दगिर्द घूमती मानती जाती है।

<strong>इसे भी पढ़ें:- नमो टीवी पर बीजेपी को नोटिस और चुनाव आयोग की निष्पक्षता का सवाल </strong>इसे भी पढ़ें:- नमो टीवी पर बीजेपी को नोटिस और चुनाव आयोग की निष्पक्षता का सवाल

पीएम मोदी ने उठाया अलवर गैंगरेप का मुद्दा

पीएम मोदी ने उठाया अलवर गैंगरेप का मुद्दा

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि बीते चुनावों में बसपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इससे यह संदेश भी गया था कि दलितों पर मायावती की पकड़ कमजोर हुई है। इतना ही नहीं, बीते लोकसभा चुनाव और राज्य के विधानसभा चुनावों में यह माना गया कि दलितों का वोट भाजपा को गया जिसकी वजह से बीजेपी को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत मिल सकी थी। इसके बाद राजनीतिक हलकों में यह संदेश गया था कि अब दलित भाजपा की ओर मुखातिब हो रहे हैं क्योंकि उनका बसपा से भी मोहभंग हो रहा है। इन चुनाव परिणामों के बाद बसपा प्रमुख मायावती को भी कहीं न कहीं यह अहसास जरूर हुआ होगा कि अगर वक्त रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले दिनों में दलितों का एकमुश्त समर्थन उनके हाथ से खिसक भी सकता है। संभवतः इसी को ध्यान में रखते हुए ही उन्होंने अपने स्वभाव के विपरीत अपनी राजनीति में कुछ लचीलापन लाना शुरू किया और इसके जरिये दलितों को फिर से अपने साथ जोड़ने की कोशिश में लग गईं। इसका पहला लक्षण गोरखपुर और फूलपूर तथा बाद में कैराना के उपचुनावों में दिखा था जब बिना किसी औपचारिक गठबंधन के मायावती ने सपा प्रत्याशियों का समर्थन किया था। इन तीनों ही उपचुनावों में विपक्ष के प्रत्याशी जीते और बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद ही एक दूसरे के धुर विरोधी सपा-बसपा के बीच गठबंधन हुआ था।

मायावती ने भी किया पीएम मोदी पर पलटवार

मायावती ने भी किया पीएम मोदी पर पलटवार

इसे गठबंधन और उसकी एकजुट ताकत का ही परिणाम माना जा सकता है कि भाजपा के सीधे निशाने पर बसपा और मायावती रही हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि गठबंधन होने और इससे बसपा की भी जीत की बढ़ी संभावनाओं ने दलितों को एक बार फिर मायावती के साथ खड़ा कर दिया है। इससे यह भी हुआ कि बीजेपी को दलितों का जो वोट पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मिला था, वह उससे दूर होता दिखाई देने लगा। इसीलिए चुनाव के शुरुआत से ही यह कहा जाने लगा कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बसपा प्रमुख मायावती के साथ अन्याय किया है क्योंकि दलितों का वोट तो सपा को जा रहा है लेकिन सपा का वोट बसपा को नहीं मिल रहा है। सियासी हलकों में इसे भाजपा की चाल करार दिया गया ताकि दलित बसपा से फिर छिटक जाएं और बीजेपी को वोट करें। लेकिन लगता है यह दांव चलता नहीं नजर नहीं आया। बीते छह चरणों में एक तरह से यह साफ हो गया कि दलित पूरी तरह बसपा के साथ हैं और गठबंधन राज्य में बहुत अच्छा कर रहा है। इसलिए अब अचानक बसपा प्रमुख मायावती को निशाने पर ले लिया गया है। आधार बनाया गया राजस्थान की वारदात को जिसका अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश से सीधा कोई लेना-देना नहीं है। सिवाय इसके कि जिस महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है वह दलित है और जिस राज्य में यह वारदात हुई वहां की सरकार को बसपा का समर्थन है।

मायावती ने पूछा- ऊना की घटना पर प्रधानमंत्री ने क्या किया?

मायावती ने पूछा- ऊना की घटना पर प्रधानमंत्री ने क्या किया?

संभवतः प्रधानमंत्री ने इस वारदात को उत्तर प्रदेश में भुनाने की कोशिश के तहत ही मायावती पर आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया। लेकिन बसपा प्रमुख मायावती ने भी करारा जवाब दिया और यहां तक सवाल कर दिया कि ऊना की घटना पर प्रधानमंत्री ने क्या किया। उन्होंने रोहित बेमुला की आत्महत्या का सवाल भी उठाया। इतना ही नहीं बाकायदा संवाददाता सम्मेलन कर प्रधानमंत्री पर व्यक्तिगत हमले से भी बाज नहीं आईं। इस तरह अगर देखा जाए तो पता चलता है कि अन्य कारणों से ही सही, लोकसभा चुनाव में हर पक्ष की ओर से एक तरह से बिसरा दिया गया दलितों का मुद्दा भी केंद्र में आ ही गया। अब यह देखना होगा कि इसका अंतिम चरण में कितना प्रभाव पड़ता है और परिणामों में बीजेपी या बसपा को कितना नफा-नुकसान हो सकता है।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

एक क्लिक में जानें अपने लोकसभा क्षेत्र के जुड़े नेता के बारे में सबकुछ

Comments
English summary
Lok Sabha Elections 2019: is raising voice for Alwar Gangrape Case the way to polish dalit politics
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X