महिलाओं के सवालों को कितना संबोधित करते हैं कांग्रेस और भाजपा के घोषणापत्र
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव प्रचार में अच्छे दिन और विकास की बातें भले ही न की जा रही हों, लेकिन किसानों और बेरोजगारों के बारे में बातें हो रही हैं। राफेल से लेकर पुलवामा और राष्ट्रवाद तक बहुत कुछ बहसों में है जिसके जरिये राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में लगी हुई हैं। लेकिन इस सबके बीच महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बहुत कम बातें की जा रही हैं। इतना जरूर है कि महिलाओं को चुनावी घोषणापत्रों में जगह मिली है। दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने घोषणापत्र में महिलाओं के बारे के काफी कुछ कहा है। यह अलग बात है कि सरकार बनने के बाद कुछ सरकारी योजनाओं के संचालन के अलावा महिलाओं को एक तरह से भुला ही दिया जाता है और उनसे जुड़े मुद्दे न केवल बने रहते हैं बल्कि और भी गंभीर होते जाते हैं। फिर भी यह देखने की बात है कि आखिर इन दोनों बड़े दलों ने अपने घोषणापत्र में महिलाओं के बारे में क्या-क्या वादे किए हैं।
अभी भाजपा का घोषणापत्र संकल्प पत्र के रूप में जारी किया गया है। इस संकल्प पत्र में महिला विकास को प्राथमिकता दी गई है। विस्तार से बताया गया है कि महिलाओं के विकास के लिए क्या-क्या योजनाएं चलाई गई हैं। पार्टी ने कहा है कि महिलाओं को समान अधिकार और लैंगिक समानता सुनिश्चित की जाएगी। तीन तलाक और निकाह-हलाला पर रोक के लिए कानून बनाया जाएगा। इन मुद्दों पर पर्सनल लॉ का आधुनिकीकरण करके अल्पसंख्यक महिलाओं का सशक्तिकरण किया जाएगा। यह भी कहा गया है कि बेटियों को शिक्षा के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने के लिए वित्तीय सहायता और उच्च शिक्षा ऋण में रियायत दी जाएगी। महिलाओं पर बढ़ रहे अपराधों को रोकने की दिशा में फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना का वादा भी किया गया है ताकि ऐसे मामलों में जल्दी न्याय मिल सके। इसके अलावा, महिलाओं के प्रति सकारात्मक मानसिक परिवर्तन के लिए स्कूलों, शिक्षण संस्थाओं और कार्यस्थलों में स्त्री-पुरुष समानता को पाठ्यक्रम तथा प्रशिक्षण को अनिवार्य हिस्सा बनाया जाएगा। महिला कार्यबल की भागीदारी बढ़ाने पर भी जोर दिया जाएगा और इसके लिए रोडमैप भी बनाया जाएगा। महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के इरादे से निर्माण क्षेत्र में होने वाली सरकारी खरीद का 10 फीसदी उन सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योगों से होगी जहां कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी कम से कम 50 प्रतिशत है।
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इससे पहले जारी कांग्रेस के घोषणापत्र में भी महिलाओं को ध्यान में रखते हुए कई वादे किए गए हैं। इसमें सबसे उल्लेखनीय न्याय योजना में महिलाओं को तरजीह दिया जाना है। कहा गया है कि न्याय योजना के तहत दिया जाने वाला पैसा महिलाओं के खाते में डाला जाएगा। इसके अलावा, कांग्रेस के घोषणापत्र में एक बार फिर इसका वादा किया गया है कि सरकार बनने पर पहले ही संसद सत्र में महिला आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा। इसके साथ ही सीआईएसएफ, सीआरपीएफ और बीएसएफ जैसे सशस्त्र बलों में महिलाओं की संख्या बढ़ाकर 33 प्रतिशत किया जाएगा। राज्य पुलिस बल में भी पदोन्नति में महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण को लागू किया जाएगा। कस्बों और शहरों में सरकारी नौकरी और नगरपालिका की नौकरी में अधिक महिलाओं को भर्ती किए जाने का प्रावधान किया जाएगा। कांग्रेस के घोषणापत्र में राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को दूसरे आयोगों की तरह संवैधानिक दर्जा दिया जाएगा। महिला उत्पीड़न और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की रोकथाम के लिए भी आवश्यक कदम उठाने का वादा किया गया है।
जिस समय यह दोनों घोषणापत्र आए, उसी दौरान दिल्ली और देश के कई अन्य हिस्सों में भी महिलाओं ने मार्च निकाला और अपने मुद्दों को लोगों के समक्ष रखा। दिल्ली में मंडी हाउस से संसद मार्ग तक मार्च निकाला गया जिसमें काफी संख्या में महिला संगठन और महिलाओं ने हिस्सा लिया। इन महिलाओं का सवाल था कि आखिर अभी तक संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण क्यों नहीं लागू किया गया और सरकार संवैधानिक संस्थाओं में महिलाओं को प्रतिनिधित्व क्यों देती। इन महिलाओं का आरोप था कि सरकार देश की वास्तविक समस्याओं को हल करने के बजाय काल्पनिक दुश्मन से लड़ने का वातावरण बनाने में लगी है और पुरुषवादी उम्माद का निर्माण कर रही है जो हर दृष्टि से महिलाओं के लिए खतरनाक है। इन महिलाओं का कहना था कि वे केवल अपने मुद्दों को लेकर चिंतित नहीं हैं बल्कि समाज मे फैलाई जा रही नफरत और सांप्रदायिकता को लेकर भी परेशान हैं। इनका कहना था कि अगर महिलाओं ने चुप्पी नहीं तोड़ी और महिलाएं उठी नहीं तो अत्याचार बढ़ता जाएगा। इस मार्च के जरिये महिलाओं ने इस चुनावी मुहिम में कारगर हस्तक्षेप की कोशिश की ताकि वे मतदान से पहले देश और समाज के समक्ष मौजूद ज्वलंत मुद्दों पर सोचें और उसके बाद ही वोट करें ताकि एक बेहतर समाज और देश बनाया जा सके।
इस सबके बीच देखने की बात यह है कि क्या राजनीतिक दल और सरकारें वाकई महिलाओं के सवालों पर गंभीर हैं अथवा वे मानकर चलते हैं कि उनका वोट मिलता रहेगा। शायद यही कारण हो सकता है कि महिलाओं के सवालों पर वादे कर दिए जाते हैं और योजनाएं-कार्यक्रम शुरू कर दिए जाते हैं, लेकिन उन्हें उनका उचित लाभ नहीं मिल पाता। आज भी महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं, अपराध बढ़ते जा रहे हैं, पुरुषों के मुकाबले कम अवसर प्रदान किए जाते हैं, कानूनी लाभ भी कम ही मिल पाते हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह हो सकता है कि उनकी अपनी कोई पार्टी नहीं है और न ही कोई मजबूत संगठन जो मजबूती से अपनी आवाज उठा सके और सरकारों को उनके हितों के संरक्षण के लिए मजबूर कर सके। इस सबके बावजूद अगर इन दोनों बड़े दलों में से सत्ता में आने वाला दल अपने वादों में से कुछ पर भी अमल कर सकेगा, तो जरूर महिलाओं के हित में कुछ हो सकेगा। देखने की बात यह भी होगी कि अगली सरकार संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के आरक्षण के लिए क्या करती है।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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