ईवीएम : जीते तो ठीक हारे तो मशीन गड़बड़
नई दिल्ली। अंगूर खट्टे हैं...मीठा-मीठा गप, कडुआ-कडुआ थू...नाच न आये आँगन टेढा...आपको लग रहा होगा कि यहाँ इन मुहावरों का जिक्र क्यों किया जा रहा। इत्तफाक से ये मुहावरे ईवीएम को लेकर उठे सवाल और बवाल पर बिलकुल सटीक बैठते हैं। भारतीय लोकतंत्र में ईवीएम के प्रयोग को अभी करीब दो दशक से ज्यादा नहीं हुए हैं लेकिन इसको लेकर हर चुनाव के पहले सवाल उठते हैं। खासबात यह कि ईवीएम पर सवाल देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दल उठा चुके हैं,जिसमें बीजेपी भी शामिल है। सवाल तभी उठाता है जब चुनाव परिणाम मन माफिक नहीं होते हैं। अरविन्द केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली विधान सभा चुनाव में विपक्षियों का सफाया कर दिया था तब उन्होंने ईवीएम पर सवाल नहीं उठाये। वही केजरीवाल अब ईवीएम विरोधियों के गोल में शामिल हो ज्ञान बघार रहे हैं।
औचक मिलान से सच सामने आयेगा
चुनाव में किसी गड़बड़ी की आशंका को दूर करने के लिए पहले ईवीएम फिर इसमें वीवीपैट की व्यवस्था चुनाव आयोग ने की। विपक्षी दलों का कहना था कि कम से कम 50 फीसदी बूथ पर ईवीएम- वीवीपैट का मिलान हो। 21 दलों ने उच्चतम न्यालय का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए व्यवस्था दी है कि मतगणना के समय हर विधान सभा क्षेत्र के किसी एक बूथ के ईवीएम-वीवीपीएटी का मिलान होगा। विपक्षी इस पर भी संतुष्ट नहीं हुए तो कोर्ट ने हर विधानसभा क्षेत्र में एक के बजाए किन्हीं पांच बूथों पर ईवीएम-वीवीपीएटी का औचक मिलान करने को कहा। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, कांग्रेस और आप समेत 21 राजनीतिक दल 50 प्रतिशत मतदान बूथ पर ईवीएम-वीवीपैट पर्चियों का मिलान कराए जाने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ईवीएम में गड़बड़ी के मुद्दे पर देशव्यापी अभियान चलाने की बात कर रहे। आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी ईवीएम में हेराफेरी का आरोप लगाया। चंद्रबाबू नायडू लोक सभा के पहले चरण के मतदान के बाद ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत लेकर चुनाव आयोग पहुंचे थे। उनका आरोप था कि आंध्र प्रदेश में पहले चरण की वोटिंग के दौरान 4,583 ईवीएम में खराबी आई थी। उनका कहना था कि 150 पोलिंग स्टेशनों पर पुनर्मतदान कराया जाए।
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तेज, निष्पक्ष और किफायती मतदान प्रणाली है ईवीएम
गड़बड़ी के दावों में दम नहीं लगता क्योंकि जहाँ बड़े पैमाने पर ईवीएम का प्रयोग हो रहा हो, गर्मी और खराब रख-रखाव के कारण खराबी आ सकती है। लेकिन किसी साजिश या योजना के तहत मशीन को प्रोग्राम करना संभव नहीं। वीवीपैट भले ही 7 सेकंड के बजाय केवल 3 सेकंड के लिए पर्ची प्रदर्शित करता हो लेकिन जिस निशान पर बटन दबाया जाता है उसका चुनाव चिन्ह ही वीवीपैट में दिखता है। ऐसा न होने पर पीठासीन अधिकारी से शिकायत कर ईवीएम बदली जा सकती है। बीते साल पाच राज्यों के विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने 52,000 वीवीपैट का इस्तेमाल किया गया। तब किसी दल ने सवाल नहीं उठाया।
ईवीएम मशीनें चुनाव अधिकारी यानी ज़िला मजिस्ट्रेट के नियंत्रण में होती है, जिसकी चौबीसो घंटे निगरानी सुरक्षा बल करते हैं। वहां उम्मीदवारों को पूरी छूट है कि वह अपना प्रतिनिधि वहां तैनात करें।इस लिए ईवीएम में किसी तरह की हैकिंग या रीप्रोग्रामिंग मुमकिन नहीं है।
बैलेट पेपर से चुनाव में होगी फर्जी वोटिंग
सवाल उठाता है कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में ईवीएम के अलावा और कोई निष्पक्ष, तेज और किफायती मतदान प्रणाली अपनाई जा सकती है क्या? शायद नहीं। पचास फीसदी बूथ की ईवीएम-वीवीपीएटी मिलान से चुनाव नतीजों में पांच घंटे के बजे पांच दिन लगेंगे और इससे चुनाव अनावश्यक रूप से महंगे हो जायेंगे। यह बात चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के सामने रख चुका है।
याद कीजिये बैलेट पेपर से चुनाव वाले समय को। तब बैलट और बुलेट का दौर था। बूथ कैप्चरिंग, फर्जी मतदान और खून-खराबे से प्रभावित चुनाव के परिणाम आने में भी कई दिन लग जाते थे। जो लोग अब ईवीएम-वीवीपैट का विरोध कर रहे हैं उनको या तो ईवीएम-वीवीपैट तकनीक की जानकारी नहीं या फिर उन्हें हार का डर सता रहा है। बैलेट पेपर से चुनाव में गड़बड़ी की अधिक संभावना है। ईवीएम-वीवीपैट पर सवाल के पीछे वही मानसिकता या अज्ञानता काम कर रही है जो मानते थे कि दो हजार के नये करेंसी नोट में माइक्रो चिप लगा है जो सिग्नल देकर अपनी लोकेशन का पता बता देता है। ईवीएम हैक नहीं की जा सकती क्योंकि वह किसी नेटवर्क या वायरलेस सिस्टम से नहीं जुडी होती।
पहले विरोध अब समर्थन
भारतीय जनता पार्टी इन दिनों ईवीएम के इस्तेमाल का समर्थन कर रही है, लेकिन वह इसका विरोध करने वाली सबसे पहली राजनीतिक पार्टी थी। 2009 में जब भारतीय जनता पार्टी को चुनावी हार का सामना करना पड़ा, तब पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए थे। तब बीजेपी ने ईवीएम मशीन के साथ होने वाली छेड़छाड़ और धोखाधड़ी को लेकर पूरे देश में अभियान चलाया था।
क्या है वीवीपैट
ईवीएम के साथ जुड़े वोटर वेरीफ़ाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल को वीवीपैट कहते हैं। ईवीएम के साथ अब तो वीवीपैट पर भी सवाल उठ रहे हैं। वोटर वेरीफ़ाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपैट व्यवस्था के तहत वोट डालने के तुरंत बाद काग़ज़ की एक पर्ची बनती है। इस पर जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है।
यह व्यवस्था इसलिए है कि किसी तरह का विवाद होने पर ईवीएम में पड़े वोट के साथ पर्ची का मिलान किया जा सके। ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची सात सेकंड तक दिखती है। 2019 के चुनाव में सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया जा रहा है।
ईवीएम से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- ईवीएम का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल पहली बार नवम्बर 1998 में आयोजित 16 विधान सभाओं के चुनाव में किया गया। इनमें से मध्य प्रदेश की 5, राजस्थान की 5, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली की 6 सीट शामिल थीं।
- एक ईवीएम में 64 उम्मीदवारों के नाम शामिल किए जा सकते हैं और एक मशीन में 16 नाम जोड़े जाते हैं। अगर किसी क्षेत्र में 16 से अधिक उम्मीदवार चुनावी मैदान में होते हैं तो वहां मशीन जोड़ दी जाती है और चार मशीन तक जोड़ी जा सकती है। अगर उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक हो जाए तो वहां मतपत्र का इस्तेमाल करना पड़ेगा।
- 2004 के लोकसभा चुनावों में पहली बार पूरे भारत में ईवीएम के ज़रिये वोट डाले गये थे। तब केंद्र में यूपीए की सरकार बनी थी।
- हर ईवीएम के अंदर एक छह वोल्ट की अल्कलाइन बैटरी होती है जो बिजली न होने पर भी मशीन को चालू रखती है।
- एक ईवीएम अधिकतम 3840 वोट दर्ज़ कर सकती है। सामान्यतः किसी भी पोलिंग बूथ पर 1500 से अधिक वोटर नहीं होते।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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