राहुल की माफी और वैध नागरिकता के बीच राजनीतिक लाभ-हानि का लेखा-जोखा
नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के समक्ष उत्पन्न हुई दो मुसीबतें फिलहाल टल गई लगती हैं, लेकिन इससे जुड़े कई सवाल अनुत्तरित ही लगते हैं। बीते कई दिनों से राजनीतिक हलकों में इस तरह की चर्चाएं आम थीं कि राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कहा तो यहां तक जा रहा था कि उन्हें अमेठी से चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है और सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी उन पर कड़ा ऐक्शन लिया जा सकता है। इसीलिए सबकी निगाहें इन दोनों मामलों पर लगी हुई थीं कि इनमें क्या होता है। इनमें से एक मामला राफेल सौदे को लेकर सुप्रीम कोर्ट से आए फैसले के आधार पर राहुल गांधी द्वारा एक सभा में यह कह देना था कि अब साफ हो गया है कि 'चौकीदार चोर है'। इसको लेकर भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने सर्वोच्च अदालत में एक याचिका दाखिल कर आरोप लगाया गया था कि कांग्रेस अध्यक्ष ने ऐसा कहकर भ्रम फैलाने की कोशिश की है।
लेखी की ओर से यह भी कहा गया था कि क्यों न राहुल गांधी के खिलाफ अदालत की आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की जाए। एक दूसरा मामला निर्वाचन आयोग के समक्ष राहुल की नागरिकता को लेकर उठाया गया था। अमेठी से एक निर्दलीय प्रत्याशी ध्रुवलाल ने शिकायत की थी कि चूंकि राहुल गांधी की नागरिकता विदेशी है और इसे उन्होंने आयोग से छिपाया है। इसलिए उनका नामांकन रद्द किया जाना चाहिए। फिलहाल पहले मामले में राहुल ने माफी मांग ली है और कहा है कि चुनावी गर्मी में उनकी ओर से ऐसा कह दिया गया था जिसमें उनको कोई इरादा इस विवाद में कोर्ट को घसीटना नहीं था। इसके लिए उन्हें खेद है। हालांकि इस मामले पर अभी फैसला अभी आना है, लेकिन माना जाता है कि खेद जताने और माफी मांगने के बाद उन्हें राहत मिल सकती है। दूसरे मामले में निर्वाचन आयोग ने तय कर दिया है कि उनके नामांकन में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं है। नामांकन वैध पैया गया है जिसे रद्द नहीं किया जाएगा।
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इसमें सबसे प्रमुख है अदालत से जुड़ा मामला जो बड़े सवाल खड़े करता है। इस मामले में सबसे बड़ी बात यह कही जा सकती है कि देश की एक बड़ी पार्टी का अध्यक्ष क्या अनजाने में ऐसी कोई बात कर सकता है। क्या इसे आसानी से स्वीकार किया जा सकता है कि जो नेता खुद को बहुत गंभीर बातें करने वाला बताता हो, वह यह न जान सके कि क्या कह रहा है। निश्चित रूप से राहुल गांधी ने राफेल सौदे को बड़ा मुद्दा बना रखा है। वह लगातार सरकार पर आक्रामक रहे हैं। यहां तक तो समझा जा सकता है कि एक मुख्य विपक्षी पार्टी होने के नाते वह सरकार को घेर सकते हैं। अपने पक्ष में तर्क रख सकते हैं, लेकिन उनके जैसे नेता से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे कोई ऐसी बात भी कह सकते हैं जिससे न्यायपालिका की अवमानना होती हो। वह अपनी सभाओं और पत्रकार वार्ताओं में लगातार बहुत मजबूती से दावा करते हैं कि उनकी ओर से कही गई बातें तथ्यों पर आधारित होती हैं। इसके बावजूद अगर वह राफेल पर बिना उचित तथ्यों के सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेते हैं, तो सवाल उठना स्वाभाविक माना जा सकता है। हालांकि शायद ही कोई नेता इससे बचता हो। इसलिए विपरीत हर कोई राजनीतिक लाभ लेने के लिए ऐसे हथकंडे अपनाता रहता है। अभी कुछ समय पहले आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अवमानना मामलों में माफी मांगने के लिए सुर्खियों में थे।
दूसरा मामला पूरी तरह राजनीति प्रेरित ही ज्यादा लगता है जिसमें उनकी नागरिकता को लेकर सवाल उठाए गए थे। हालांकि राजनीति खासकर चुनावों में ऐसे आरोप आम माने जाते हैं जब विरोधी दल अथवा नेता किसी को भी विवादों में लपेटने के लिए कुछ मुद्दे उठाते रहते हैं। इसके पीछे मंशा विरोधी को कमजोर करने की ज्यादा होती है। अमेठी में की गई शिकायत के पीछे भी राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश ही ज्यादा नजर आई। इसमें और कुछ हुआ हो अथवा नहीं, इतना तो हुआ कि इस शिकायत के बहाने कुछ दिनों तक राजनीतिक हलकों में यह प्रचारित किया गया कि राहुल गांधी की नागरिकता विदेशी है। लोगों में यह संदेश देने की कोशिश भी सफल होती लगती है कि कोई बड़ा नेता कैसे तथ्यों को छिपाकर राजनीति करता है। वैसे भी सोनिया गांधी की नागरिकता को लेकर इस देश में कोई कम विवाद नहीं रहा है। यह मुद्दा तो कभी यहां तक उछाला गया था कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गई थीं। हालांकि यह भी एक तरह से स्थापित सत्य की तरह साबित हो चुका है कि सोनिया गांधी भारत की नागरिक हैं, लेकिन उनके और कांग्रेस की विरोधी कुछ ताकतें समय-समय पर इस मुद्दे को उठाती रहते हैं और राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करते नजर आते हैं। इसी के आधार पर अब राहुल गांधी को भी घसीटा जाने लगा है। निर्वाचन आयोग के समक्ष शिकायत कर विरोधियों ने लोगों के बीच इस चर्चा को तो गर्म कर ही दिया कि उनकी नागरिकता विदेशी है भले ही आयोग ने अब इसे गलत बता दिया है।
बहरहाल, अभी यह देखना बाकी है कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से अवमानना मामले में क्या फैसला सुनाया जाता है। लेकिन राहुल गांधी की ओर से अभी राफेल मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे सवाल उठाए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में खेद जताने और माफी मांगने के बावजूद अभी भी रैलियों में वह राफेल मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं। इससे यह संदेश जाता है कि वह इस मुद्दे को कम से कम चुनाव तक गरमाए रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता होगा कि इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। यह अलग बात है कि भाजपा और सरकार की ओर से लगातार यह कहा जा रहा है कि राफेल सौदे में किसी भी तरह की गड़बड़ नहीं हुई है और कांग्रेस व राहुल गांधी के आरोप निराधार हैं। फिलहाल यह जांच का विषय हो सकता है और संभव है कभी भविष्य में पता चले कि आरोपों में कितनी सच्चाई है, लेकिन जब लगातार नए-नए तथ्य सामने आ रहे हों, तो इसे सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता। पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि लोगों को कब पता चलेगा कि राफेल सौदे में गड़बड़ हुई है अथवा नहीं।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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