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लखीमपुर खीरी हिंसा: कौन समझेगा ग़म, ग़ुस्सा और आंसू के भयावह मंज़र का दर्द?

By दीपक कुमार त्यागी
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जब से उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों पर गाड़ी चढ़ाने का मानवता को शर्मसार करने वाला जघन्य हिंसा कांड घटित हुआ है, तब से देश के पक्ष-विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों में हमारे प्यारे अन्नदाता किसानों के लिए अचानक से अथाह प्रेम उमड़ आया है, देश में दशकों से परेशान किसानों का हर दल हर नेता अपने आपको सबसे बड़ा व सच्चा हितेषी साबित करने में तुला हुआ है। लेकिन क्या कभी पक्ष-विपक्ष के इन चंद राजनेताओं ने यह भी सोचा है कि उनकी नफरत भरी सियासत व बार-बार बोलें जाने वालें जहरीले बोल के चलते आज एकबार फिर से देश के एक दूरदराज के जनपद में कई परिवारों के चिराग बुझ गये हैं। अब समय आ गया जब हम लोगों को विचार करना होगा कि आखिरकार हमारे देश के चंद नफरती राजनेता ग़म, ग़ुस्सा और आंसू के भयावह मंज़र का दर्द कभी समझेंगे या नहीं। आज नियम कायदे कानून पसंद जनता के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जिस ढंग से अपने क्षणिक राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश को आयेदिन बेखौफ होकर हंगामा व नफरत की आग में कुछ सियासतदान झोंक देते हैं, आखिर यह सब देश में कब तक चलेगा। क्योंकि ऐसे गलत लोगों को चुनने के लिए कहीं ना कहीं उनको वोट देने वाली सम्मानित जनता भी दोषी है, उसको देशहित में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ईमानदार व देशभक्त लोगों का चुनाव समय रहते जल्द से जल्द करना होगा।

Lakhimpur Kheri Violence: horrific scene of sorrow, anger and tears

लखीमपुर खीरी कांड में सबसे बड़ी शर्मनाक बात यह है कि इस घटना से मात्र एक दिन पहले ही एक तरफ तो देश के अधिकांश राजनेता व जनता ने 2 अक्टूबर को सत्य अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी व "जय जवान जय किसान" का नारा देने वाले देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती धूमधाम से मनायी थी, उनके दिखाये मार्ग पर चलने की कसमें खाईं थी। लेकिन उसके मात्र एक दिन बाद 3 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जनपद में सड़कों पर जमकर खूनी तांडव मचाया गया, जिसको कानून व्यवस्था पसंद देश में पक्ष या विपक्ष किसी के भी नजरिए से बिल्कुल भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है। दुखद बात यह है कि इस घटना में जहां एक तरफ तो प्रदर्शकारी चार किसानों की अनमोल जान चली गयी है, वहीं दूसरी तरफ हिंसक झड़प में पीट-पीट कर तीन भाजपा के कार्यकर्ताओं व एक ड्राइवर की भी जान उपद्रवियों के द्वारा ले ली गयी हैं, सोचने वाली बात यह है कि क्या देश का कानून किसी की भी पीट-पीट कर हत्या करने का अधिकार देता है या हमारे प्यारे देश में तालिबानी शरियत कानून लागू है क्या जिसके अनुसार जान के बदले जान लेने का अधिकार है?

"सबसे बड़ी दुखद बात यह है कि इस घटना ने एक टीवी न्यूज़ चैनल के युवा पत्रकार 'रमन कश्यप' को भी मौत के आगोश में पहुंचा दिया है, मेरा उत्तर प्रदेश सरकार से निवेदन है कि वह 'रमन कश्यप' के परिजनों को एक करोड़ रुपये की मुआवजा धनराशि प्रदान करें, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दें व बच्चों की पढ़ाई का खर्च ताउम्र सरकार वहन करें और सभी लोगों की मौत के लिए दोषियों को सख्त सजा देने का कार्य करें। वैसे यहां मेरा एक सवाल देश के सिस्टम से भी है कि आखिर किसी कार्यक्रम की कवरेज कर रहे पत्रकार को बार-बार निशाना क्यों बनाया जाता है, सरकार इसके लिए सख्त कानून बनाकर उसको धरातल पर अमल में क्यों नहीं लाती है, एक युवा पत्रकार की मौत पर सरकार किसान नेता या राजनेता कोई जवाब देगा कि पत्रकार को आखिर क्यों मारा गया?"

इस घटना के बाद देश के राजनेता, नियम कायदे कानून पसंद जनता व बुद्धिजीवी लोग इस इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना पर दुख जताते हुए कह रहे हैं कि इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं भविष्य में बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए, सरकार को इस घटनाक्रम के लिए दोषी लोगों को जल्द से जल्द सख्त सजा देकर के समाज के सामने एक नजीर पेश करनी चाहिए और भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो उसके लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाने चाहिए। वहीं देश में इस बेहद ज्वंलत मसले पर राजनीति अपने पूर्ण चरम पर है, हर कोई घटनास्थल पर जाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना व उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए चुनावी बिसात बिछाना चाहता है। ऐसी स्थिति में किसान नेताओं व वास्तविक किसानों के लिए यह वक्त बेहद चुनौती पूर्ण है कि वह किस तरह से इस स्थिति में सामंजस्य करके हालात को नियंत्रण में रखें और पूर्व की भांति शांतिपूर्वक गांधीवादी ढंग से अपने प्रदर्शन को जारी रखें। आज वास्तविक किसान नेताओं व आंदोलनकारी किसानों के सामने भी यह बड़ी चुनौती है कि वह आम जनमानस के बीच अपने आंदोलन की विश्वसनीयता कैसे कायम रख सकें, क्योंकि लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन पर लगातार कुछ लोगों की संदिग्ध गतिविधियों की वजह से निरंतर उगंली उठ रही हैं, किसान आंदोलन के इस मंच को राजनेताओं के लिए अपनी राजनीति चमकाने का मंच बनने से रोकना होगा और इसको हमारे प्यारे देश की एकता अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा रह चुके खालिस्तानी समर्थक या अन्य देश विरोधी ताकत की गतिविधियों के लिए किसी भी प्रकार से इस्तेमाल होने देने से रोकना होगा।

Lakhimpur Kheri Violence: horrific scene of sorrow, anger and tears

यहां आपको बता दें कि 3 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश सरकार के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए लखीमपुर खीरी जनपद के बनबीरपुर गांव जा रहे थे। जिसकी सूचना मिलते ही जनपद में कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने जिस स्थल पर केशव प्रसाद मौर्य का हेलीकॉप्टर उतरना था, उस महाराजा अग्रसेन स्पोर्ट्स ग्राउंड में हेलिपैड साइट पर कब्जा कर लिया। इसके चलते केशव प्रसाद मौर्य के कार्यक्रम में तत्काल बदलाव किया गया और उनको लखनऊ से सड़क मार्ग के द्वारा लखीमपुर खीरी आना पड़ा। इसके बाद प्रदर्शकारी किसानों ने विरोधस्वरूप तिकुनिया में केशव प्रसाद मौर्य के स्वागत में लगे होडिंर्ग्स उखाड़ दिए और क्षेत्र के कई गांवों से किसान केशव प्रसाद मौर्य को विरोधस्वरूप काला झंडा दिखाने के लिए स्थल पर पहुंच गए। बाद में किसानों की यह भीड़ केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को काले झंडे दिखाने के लिए तिकुनिया-बनबीरपुर मोड़ पर इंतजार में खड़ी हो गयी थी। लेकिन किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि रविवार 3 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी जनपद अचानक देश व दुनिया की मीडिया में ओछी नफरती सियासत के चलते सुर्खियों में आ जायेगा, सियासतदानों के द्वारा की गयी नफरत भरी राजनीति से कई लोगों के घरों के चिराग असमय ही दर्दनाक ढंग से बुझ जायेंगे।

मौके पर उपस्थित लोगों में किसी को भी अंदेशा नहीं था कि किसानों का एक सामान्य माने जाना वाले विरोधस्वरूप धरना प्रदर्शन अगले चंद पलों में भयानक धधकते ज्वालामुखी वाले मंज़र में बदल जायेगा, एक काले रंग की जीप से कुछ किसानों की मौत के बाद रात होने तक उस क्षेत्र का माहौल कुछ ऐसा बदलेगा कि सरकारी मशीनरी व सत्ता पक्ष व विपक्ष सभी को सड़कों पर अचानक आना पड़ गया, स्थिति यह हुई कि पूरा जनपद सुरक्षा व्यवस्था को मद्देनजर रखते हुए हाई अलर्ट पर चला गया, क्षेत्र में धारा 144 लगा दी गयी है, भारी तनाव को देखते हुए जनपद में केंद्रीय बल और पीएसी की अतरिक्त कंपनियां तैनात की गई हैं, एहतियात के तौर पर समय-समय पर इंटरनेट सेवाएं भी बंद करवाई जा रही हैं। वहीं इस मामले में पक्ष व विपक्ष दोनों की तरफ से एफआईआर दर्ज कर ली गयी है, घटना के कारणों की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने अफसरों की एक विशेष टीम भी घटनास्थल पर भेजी है, जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी गयी है। आज हमारी जांच एजेंसियों के सामने इस जघन्य कांड के दोषियों को देश की जनता के सामने लाकर पूरे मामले को खोलकर दोषियों को भविष्य में नजीर बनने वाली सख्त सजा दिलवाने की बड़ी चुनौती खड़ी है।

वहीं इस पूरे घटनाक्रम पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पल-पल नज़र रखे हुए हैं, उन्होंने क्षेत्र के लोगों से अपील है कि वह घरों में रहें और किसी के भी बहकावे में न आएं। मौके पर शांति व्यवस्था कायम रखने में अपना योगदान दें। किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले मौके पर हो रही जांच और कार्रवाई का इंतजार करें। उन्होंने आश्वस्त किया है कि सरकार इस घटना के कारणों की तह में जाएगी और घटना में शामिल सभी तत्वों को बेनकाब कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी। खैर जो भी हो नफरती सियासत कई घरों के चिराग छीनकर एक फिर अपने नापाक मंसूबों में कामयाब रही है, लेकिन अब समय आ गया है कि देश की जनता को देश व समाज के हित के मद्देनजर सजग रहना होगा और चुनावों के समय नफरत फैलाने वाले चंद सौदागरों को चुनावों में बुरी तरह से हराकर अच्छे ईमानदार व देशभक्त लोगों का चयन करना होगा, तब ही भविष्य में देश की एकता अखंडता कायम रह सकेगी और भारत का विश्वगुरु बनने का सपना पूरा हो पायेगा।

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English summary
Lakhimpur Kheri Violence: horrific scene of sorrow, anger and tears
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