मोदी-इमरान की कटुता के बीच क्या क्रिकेट बन सकता है दोस्ती का जरिया?
नई दिल्ली। भारत-पाकिस्तान के बीच मैच को लेकर बारिश की आशंकित करने वाली बाधा अपनी जगह है। लेकिन दर्शकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। इन दोनों के बीच के क्रिकेट पर राजनीति की आशंकाओं के रहने के बावजूद जैसे दर्शक इसका पूरा आनंद लेने को हमेशा तैयार रहते हैं। मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रेफर्ड मैदान पर आईसीसी विश्व कप 2019 को दोनों देशों और उनके दर्शकों के लिए इस लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है। इसलिए भी कि यह भारत में लोकसभा चुनावों के तत्काल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता में आने के बाद हो रहा है। पाकिस्तान के लिहाज से भी यह इसलिए खास है कि इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह मुकाबला है। इमरान खान कभी पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान हुआ करते थे। उसके बाद वह राजनीति में आए और फिलहाल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। अभी बिश्केक में दोनों देशों के प्रधानमंत्री शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शिरकत कर चुके हैं। वहां दोनों नेताओं के बीच कोई औपचारिक बातचीत नहीं तय थी।
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नरेंद्र मोदी ने की इमरान खान की अनदेखी
पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी अनदेखी भी की और दूरी बनाए रखी। हालांकि बाद में इस आशय की खबरें भी आईं कि दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच अनौपचारिक मुलाकात और बातचीत हुई है जिसकी पहले किसी तरह की संभावना नहीं लग रही थी। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण आतंकवाद का मुद्दा रहा जिसको लेकर स्वाभाविक रूप से भारत का रुख बहुत कड़ा रहा है। अब आईसीसी विश्व कप का यह मैच हो रहा है। भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच हमेशा से कुछ खास वजहों से चर्चा में बना रहा है। सबसे पहला दर्शकों और क्रिकेट प्रेमियों का उत्साह जो तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद बढ़ता ही जाता है। यह जुनून के स्तर तक भी चला जाता रहा है। दूसरा इस तरह के मैच को लेकर होने वाली राजनीति जो अक्सर बीच में आकर खड़ी हो जाया करती है। कई बार राजनीति इतनी हावी हो जाती है कि खेलना तक स्थगित कर दिया जाता है। बाद में हालात सुधरने पर यह फिर से नए सिरे से शुरू होता है। अब जैसे कितनी बार ऐसा हुआ कि मुंबई और दिल्ली में मैच न होने देने वाली राजनीतिक चेतावनियां दी गईं। कई बार पिच तक खोद देने की बातें हुईं। सबसे बड़ी बात यह भी हुई कि 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय सीरीज खेलने से भारत की ओर से मना कर दिया गया था। इसे स्वाभाविक फैसला भी कहा गया था क्योंकि पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद को बढ़ावा दिए जाने को कितना बर्दाश्त किया जा सकता है। वह आतंकवादी हमला बहुत बड़ा था, सो उसकी प्रतिक्रिया भी बड़ी होनी स्वाभाविक थी। उसके बाद से आईसीसी और एससीसी के टूर्नामेंट में ही दोनों देशों की टीमों के बीच मैच हुए। मैनेस्टर के मैच के पहले दोनों टीमों के बीच अंतिम मुकाबला बीते वर्ष सितंबर-अक्टूबर में एशिया कप के दौरान दुबई में हुआ था जिसमें पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा था।
क्रिकेट डिप्लोमेसी
इसके अलावा, जो बात हमेशा होती है वह क्रिकेट डिप्लोमेसी कही जाती है। हमेशा ऐसी बातें की जाती हैं कि राजनीतिक स्तर पर भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्ते चाहे जैसे हों, उसे खेल में नहीं लाया जाना चाहिए। इस तरह के तर्क भी दिए जाते रहे हैं कि खेल के जरिये भी दोनों देशों के बीच के संबंधों को सुधारने का प्रयास किया जा सकता है। यह भी कहा जाता है कि खेल को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। यह सब अच्छी बातें लगती हैं, लेकिन यह सवाल बड़ा होता है कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है। हालांकि इस मैच को लेकर इस तरह की न कोई बात है और न कोई विवाद। इस बार इतना जरूर नया है कि कभी पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान रहे अब पाकिस्तान के ही कप्तान हैं। इस लिहाज से भी यह देखा जा रहा है कि आखिर क्रिकेट वाली खेल भावना वह राजनीति में क्यों नहीं ला पा रहे हैं और आतंकवाद पर अंकुश क्यों नहीं लगा पा रहे हैं। अगर पहले की सरकारों को छोड़ भी दिया जाए, तो इमरान खान के पाकिस्तान की सत्ता संभालने के समय ऐसी उम्मीदें अंतरराष्ट्रीय जगत में की जाने लगी थीं कि अब शायद पाकिस्तान का रवैया बदले और वह कुछ नया कर सकें। कम से कम भारत के संबंध में भी ऐसी उम्मीदें थीं कि वह ऐसा कुछ जरूर करेंगे जिससे दोनों देशों के बीच संबंध कुछ बेहतर हो सकें। लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि चीजें ठीक होने के बजाय और ज्यादा खराब होने लगीं जिसका असर बिश्केक में भी दिखा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें किसी तरह की तवज्जो नहीं दी।
भारत बनाम पाकिस्तान मुकाबला
बहरहाल, ये क्रिकेट है और वह भी दोनों टीमों की भिड़ंत इंग्लैंड में जहां काफी संख्या में भारत और पाकिस्तान के लोग रहते हैं। चूंकि यह पूरा वर्ल्ड कप बारिश की बाधा शिकार रहा है, ऐसे में ट्रेफर्ड पर भी बादलों की चहल-पहल से दर्शकों का मिजाज गीला होना स्वाभाविक है। इसके बावजूद वह मैदान पर जाकर अपने प्रिय खेल का आनंद उठाने को बेताब हैं। तभी तो टिकटों की बिक्री की धूम मची है। इस सबके बीच माना जा रहा है कि अपने पुराने इतिहास को दोहराते हुए भारतीय क्रिकेट टीम इस आईसीसी विश्व कप को जीतकर अपना पुराने इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ सकती है। इस तरह की उम्मीद के लिए पुख्ता आधार भी है क्योंकि भारत पाकिस्तान को हराकर विश्व कप जीतता रहा है। 1983 और 2011 इसके गवाह हैं। पाकिस्तान क्रिकेट टीम केवल 1992 में पहली दफा जीती थी जब इमरान खान कप्तान थे। फिलहाल वह सरकार में कप्तान हैं। इस विश्व कप में भारत तीन मुकाबले खेलकर दो जीत चुका है। कभी हां और कभी ना के बीच मोदी-इमरान की मुलाकात की तरह ट्रेफर्ड पर दोनों टीमें मिलेंगी, लोग अपनी-अपनी टीम को जिताने के उत्साह में होंगे। इसे भी कम नहीं माना चाहिए। जब दोनों देशों के बीच संबंधों में इतनी कटुता हो, तब क्रिकेट टीमों का आपस में खेलना भी कोई कम बड़ी बात नहीं कही जा सकती। कितना अच्छा होता कि भारत-पाकिस्तान के बीच भी इसी तरह का रिश्ता कायम हो पाता। लेकिन ऐसा तभी हो सकेगा जब पाकिस्तानी हुक्मरान की ऐसी चाहत होगी। इसके लिए पाकिस्तान को पहले आतंकवाद पर लगाम लगानी होगी। मोदी और खान के बीच की वर्तमान कटुता के बीच क्रिकेट अगर दोस्ती का जरिया बन सके, तो दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार की गुंजाइश भी बन सकती है।