सत्ता की घरेलू राजनीति में उलझा देश क्या इन महत्वपूर्ण सवालों की अनदेखी कर रहा है?
नई दिल्ली। किसी भी देश की पहचान वहां की जनता और विकास से होती है। शायद यही वजह है कि पश्चिमी देश ना केवल अपने लोगों की मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देते हैं बल्कि देश का विकास भी उनके लिए प्राथमिकता ही रहती है। लेकिन जब आज अपने देश की तस्वीर देखती हूं तो लगता है क्या कभी हम विकसित देश बन पाएंगे?
आज हमारा देश घरेलू राजनीति में इतना मशगूल हो गया है कि उसे कोई होश ही नहीं है कि बाहरी ताकतें किस तरह हमें नुकसान पहुंचा रही हैं। कहीं ऐसा ना हो जब गहरी नींद में सोए इस देश की नींद टूटे तो हालत नेपाल जैसी हो गई हो।
ऐसे वक्त में मुझे शायर रजनीश सचन की दो पंक्तियां याद आ रही हैं-
जिसको
अब
भी
हो
सियासत
पे
यकीन,
उसको
ये
मुल्क
दिखाया
जाए....
हालात साफ बता रहे हैं कि सत्ता पाने के लिए यहां पार्टियां इतनी लालायित हैं कि उन्हें कोई होश ही नहीं है कि आसपास चल क्या रहा है। कहीं लोग प्रदूषण से परेशान हैं, तो कहीं गरीबी से। खुश कोई नहीं है चाहे वो अमीर हो या गरीब। यहां पाकिस्तान में सब्जी के भाव क्या चल रहे हैं ये पता चल जाएगा लेकिन अपने यहां के किसानों की क्या हालत है ये पता नहीं चलेगा।
यहां एक मुद्दा खत्म नहीं होता, दूसरा उससे पहले शुरू हो जाता है। राफेल खत्म हुआ, तो अनुच्छेद 370 हट गया और ये खबर महीनों सुर्खियां बटोरती रहीं। अयोध्या मामला खत्म हुआ भी नहीं था कि महाराष्ट्र में सियासी ड्रामा शुरू हो गया। इस सियासी ड्रामे के खत्म होने से पहले ही जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) में फीस को लेकर विवाद शुरू हो गया। इन मुद्दों के आने का मतलब ये नहीं है कि हम इनमें पूरी तरह खो जाएं और देश पर ध्यान देना ही बंद कर दें।
क्या बोले तापिर गाओ?
अब हाल के ही एक वाक्ये पर बात करते हैं। बुधवार को अरुणाचल प्रदेश ईस्ट से भाजपा सांसद तापिर गाओ संसद में बोलने के लिए खड़े हुए। इस दौरान उन्होंने जो बात कही वह महज एक दिन की खबर बनकर रह गई। ना तो इसे डिजिटल मीडिया ने ज्यादा तवज्जो दी और ना ही टेलीविजन मीडिया ने। लेकिन गाओ ने जो बात कही वो देश के लिए उतनी ही जरूरी है जितना कि राम मंदिर। गाओ ने कहा कि चीन ने भारत के 50-60 किलोमीटर इलाके पर कब्जा कर लिया है। अगर इसपर वक्त रहते ध्यान नहीं दिया गया तो अरुणाचल प्रदेश अगला डोकलाम बन जाएगा।
उन्होंने कहा कि जब भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री या फिर रक्षामंत्री अरुणाचल प्रदेश का दौरा करते हैं, तो चीन हर बार विरोध जताता है। तब ना तो मीडिया से कोई आवाज उठती है और ना ही इस सदन से। उन्होंने मीडिया और सदन दोनों से इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए कहा। उनकी कही इन बातों को कुछ समय तक दिखाया गया लेकिन बाद में सब महाराष्ट्र की बात करने लगे।
रक्षामंत्री और प्रधानमंत्री के दौरे का विरोध
हाल ही में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह अरुणाचल प्रदेश में सिसेरी नदी पुल का उद्घाटन करने पहुंचे थे। इसे एक विवादित क्षेत्र माना जाता है, जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है। उनके इस दौरे पर चीन ने विरोध जताया। इससे पहले फरवरी माह में चीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे का भी विरोध किया था।
चीन ने चाकलागाम बांध भी बना लिया
जी हां, मीडिया रिपोर्टस की मानें तो चीन ने चाकलागाम में बांध भी बना लिया और हमें खबर भी नहीं हुई। तापिर गाओ ने ये भी कहा है कि चीन ने चाकलागाम इलाके के पास एक बड़ा बांध बना लिया है, जिससे वो आसानी से भारत में आ सकते हैं। हालांकि सरकार यहां पर 2 हजार किमी का हाईवे भी बना रही है ताकि सेना की पहुंच यहां हो जाए। गाओ के दावे सच हैं या नहीं, इसपर हम कुछ नहीं कह सकते। लेकिन उन्होंने जिस बात की चिंता जताई है, उस ओर ध्यान देना जरूरी है।
इससे पहले साल 2013 में चीन के सैनिक चाकलागाम के पास आ गए थे। यहां पांच दिनों तक रहे और 20 किमी अंदर तक घुस आए। हालांकि भारतीय सेना ने इन्हें यहां से बाहर निकाल दिया था। लेकिन इस बार माना जा रहा है कि ये चाकलागाम इलाके में ना केवल कैंप बना चुके है बल्कि पेट्रोलिंग भी कर रहे हैं। चिंता की बात ये है कि इस बार चीनी सैनिक यहां से वापस भी नहीं जा रहे हैं। इस बात को जानते हुए भी हर कोई चुप है। चीन हमेशा से ही अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा मानता रहा है और वह मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता है।
अरुणाचल प्रदेश को बड़ा नुकसान?
इन सबसे अरुणाचल प्रदेश का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि यहां कोई भी विदेशी कंपनी निवेश करने से डरती है। क्योंकि अगर यहां निवेश किया तो चीन में निवेश से हाथ धोना पड़ सकता है। अगर भारत यहां के विकास के लिए एशियन बैंक या फिर विश्व बैंक से ऋण लेना चाहे तो भी नहीं मिल पाएगा। इसके लिए हम साल 2009 का ही उदाहरण ले लेते हैं। तब भारत ने एशियन डेवलपमेंट बैंक के सामने एक परियोजना के लिए प्रस्ताव रखा। लेकिन चीन ने इसे ब्लॉक कर दिया। जिसके बाद दोनों ही बैंकों ने नई नीति बनाई जिसके तहत इन्होंने विवादित क्षेत्र को ऋण देने से इनकार कर दिया।
क्या हो सकता है उपाय?
इसके लिए उपाय केवल यही हो सकता है कि हम चीन के अतिक्रमण का करारा जवाब दें और उन देशों का रुख करें जो चीन की कब्जा करने की रणनीति पर चिंता व्यक्त करते हैं। इसके लिए हम जापान और अमेरिका की मदद ले सकते हैं। जापान ने 2014 और 2015 में अरुणाचल के विकास के लिए प्रस्ताव रखा था। मीडिया रिपोर्ट के मताबिक खुद जापान के वित्त मंत्री ने कहा था कि जापान अरुणाचल में विकास के लिए भारत का समर्थन करेगा।
चीन ने इसका विरोध किया
हालांकि उसके ऐसा कहे जाने के तुरंत बाद चीन ने इसका विरोध किया। चीन ने जापान के इस बयान को गलत बताया, हालांकि भारत ने जापान की मदद अभी तक नहीं ली है। यानी भारत को बड़ा कदम उठाते हुए अमेरिका और जापान की मदद ले लेनी चाहिए। अगर एक बार जापानी और अमेरिकी कंपनियों को अरुणाचल में आर्थिक हित दिखने लगे तो कल को चीन भी अरुणाचल पर कोई भी बयान देने से डरेगा और कब्जा करना महज उसके लिए एक सपना ही रह जाएगा। चीन ऐसा तब करता है जब अंतरराष्ट्रीय मानचित्रों में भी अरुणाचल प्रदेश को भारत का ही अंग बताया गया है।
'चीन वापस जाओ और नेपाल की जमीन को वापस दो'
मैंने ऊपर नेपाल का जिक्र किया था। चीन जब अपने दोस्त के साथ धोखा कर सकता है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो अपने दुश्मन के साथ क्या करेगा। नेपाल में चीन के खिलाफ काफी विरोध प्रदर्शन हो रहा है। यहां चीन वो सब कर चुका है जो वो भारत में करना चाहता है। हाल ही में नेपाल में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिसमें कहा गया है कि उसने नेपाल की 36 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा कर लिया है। सर्वे विभाग द्वारा जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने हुमला जिले में भदारे नदी में लगभग छह हेक्टेयर और करनाली जिले में चार हेक्टेयर भूमि पर कब्जा कर लिया है, जो अब तिब्बत के फिरंग क्षेत्र में बहती है।
ठीक इसी तरह, सानजेन नदी और रसुवा के जम्भू खोला की लगभग छह हेक्टेयर नेपाली भूमि पर भी कब्जा किया गया है। ये नदी दक्षिणी तिब्बत के केरुंग में भी बहती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने सिंधुपालचौक जिले के भोटेकोशी और खारेनखोला क्षेत्रों में भी 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर कब्जा किया हुआ है, जो अब तिब्बत के न्यालम क्षेत्र में है। संखुवासभा में, तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र में सड़क विस्तार के कारण नौ हेक्टेयर भूमि का कब्जा किया गया है, जहां कमूखोला, अरुण नदी और सुमजंग नदी के आसपास के क्षेत्र अब तिंगस्यान काउंटी क्षेत्र में आ गए हैं।
सर्वे के डाटा में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि कुछ हिस्से जैसे अरुण खोला, कामू खोला और सुमजंग के पास के कुछ स्थान अब तिब्बत के तिंगिस्यान क्षेत्र का हिस्सा बन गए हैं। यानी नेपाल को पता भी नहीं चला और उसकी जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया।
वहीं मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, नेपाल अपनी कई सौ हेक्टेयर भूमि खो देगा। जिसपर चीन लगातार कब्जा करता जा रहा है। चीन अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए अधिकतर देशों की जमीन और बंदरगाहों पर भी कब्जा करता जा रहा है। वह श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे देशों को कर्ज के जाल में पहले ही फंसा चुका है। इसके अलावा वह अफ्रीकी देशों को भी विकास के नाम पर फंसाकर उनकी जमीन पर कब्जा करता जा रहा है। इन्हीं देशों में अब वो भारत का नाम भी शुमार करना चाहता है। लेकिन भारत का एक बड़ा कदम उसे औंधे मुंह गिरा सकता है।