कुछ इस तरह मना था देश का पहला स्वतंत्रता दिवस
हिन्दुस्तान को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी, लेकिन राष्ट्रभक्त भारतीयों ने अपना पहला स्वतंत्रता दिवस इससे 17 साल पहले मना लिया था। जनवरी 1930 के पहले सप्ताह में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके तहत महीने के आखिरी रविवार को पूर्ण स्वराज के समर्थन में देशव्यापी आंदोलन करने का आवाह्न किया गया था। ऐसा माना गया कि इससे देशवासियों में राष्ट्रवादी भावना का संचार होगा और ब्रिटिश सरकार गंभीरतापूर्वक आजादी की मांग मानने को मजबूर होगी।
जनवरी 1930 के आखिरी रविवार को आजादी का दिन घोषित करने संबंधी प्रस्ताव कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पारित किया गया। साल 1930 के बाद से हर साल कुछ भारतीय 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने लगे। हालांकि जब अंग्रेजों ने उपमहाद्वीप छोड़ने का फैसला किया तो उन्होंने 26 जनवरी 1948 की बजाय 15 अगस्त 1947 को सत्ता हस्तांतरण के दिन के रूप में चुना।
इस दिन का चुनाव वॉयसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने इसलिए किया क्योंकि इसी दिन द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्रराष्ट्रों के समक्ष जापानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था। 15 अगस्त 1947 उसी समर्पण की दूसरी बरसी थी। इस तरह भारत को एक ऐसे दिन आजादी मिली जो राष्ट्रवादी भावना के नहीं बल्कि साम्राज्यवादी गौरव के अनुकूल था।
ब्रिटिश राज और स्वतंत्र भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस समारोह का औपचारिक समारोह आधी रात से थोड़ा पहले शुरू हुआ। ज्योतिषियों ने कहा था कि 15 अगस्त का दिन आजादी हासिल करने के लिए शुभ दिन नहीं है। इस तरह यह तय किया गया कि स्वतंत्रता दिवस समारोह को 14 अगस्त को ही शुरू कर दिया जाए, जिसके तहत संविधान सभा की एक विशेष बैठक हो।
स्वतंत्रता का समारोह एक ऊंचे गुंबद वाले सभाकक्ष में हुआ जो पूर्ववर्ती ब्रिटिश राज के दौरान विधान परिषद के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाता था। उस कक्ष में शानदार प्रकाश की व्यवस्था की गई और उसमें जगह जगह झंडे लगाए गए। कुछ झंडों को उन तस्वीरों के फ्रेम के भीतर भी रख दिया गया जिनमें पिछले सप्ताह तक ब्रिटिश वायसराय की तस्वीरें हुआ करती थीं। समारोह का शुभारंभ रात 11 बजे हुआ और सबसे पहले वंदेमातरम् गाया गया। उसके बाद दो मिनिट का मौन उन लोगों की याद में रखा गया जिन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान भारत में या भारत के बाहर अपनी जान की कुर्बानी दी थी। समारोह के आखिर में देश की महिलाओं की तरफ से राष्ट्रीय झंडा प्रस्तुत किया गया।
वंदेमातरम् और ध्वज प्रस्तुतिकरण के बाद भाषण का दौर चला। उस रात बोलने वाले तीन मुख्य वक्ता थे। इसमें एक थे चौधरी खालिकज्जमा जिन्हें हिन्दुस्तान के मुसलमानों की नुमांइदगी के लिए चुना गया था। उन्होंने बकायदा घोषणा की कि यहां के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इस नए आजाद मुल्क के प्रति अपनी वफादारी निभाने से पीछे नहीं हटेंगे। दूसरे वक्ता के तौर पर दर्शनशास्त्र के मशहूर ज्ञाता डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को चुना गया जो एक प्रसिद्ध वक्ता भी थे। राधाकृष्णन ने पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता के बीच सामंजस्य के बिंदु खोजने की दिशा में काफी काम किया था।
हालांकि इस समारोह में आकर्षण के केन्द्र बिदु स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे। उनका भाषण भावनाओं और अलंकार से भरपूर था। तब से आज तक उनके उस भाषण का उद्धरण बड़े पैमाने पर दिया जाता है। नेहरू ने कहा "मध्यरात्रि की इस बेला में जब पूरी दुनिया नींद के आगोश में सो रही है, हिन्दुस्तान एक नई जिंदगी और आजादी के वातावरण में अपनी आंख खोल रहा है। यह एक ऐसा क्षण है जो इतिहास में बहुत ही कम प्रकट होता है, जब हम पुराने युग से नए युग में प्रवेश करते हैं। जब एक युग खत्म होता है और जब एक देश की बहुत दिनों से दबाई गई आत्मा अचानक अपनी अभिव्यक्ति पा लेती है।"
यह भाषण काउंसिल हॉल में दिया गया। हॉल के बाहर सड़कों पर लोग जश्न में डूबे थे। हिंदू, मुसलमान और सिख सभी आजादी का जश्न साथ साथ मना रहे थे। एक अमेरिकन पत्रकार ने लिखा कि ऐसा लग रहा है जैसे नए साल की पूर्व संध्या पर न्यूयार्क के टाइम्स स्क्वायर का नजारा हो। भीड़ नेहरू को देखना चाहती थी। नेहरू की झलक पाने के लिए लोगों की भीड़ ने सुरक्षा घेरा तोड़ दिया और सीधे विधानपालिका भवन की तरफ बढ़ी। आखिरकार विधानसभा के मजबूत दरवाजों को बंद कर दिया गया। नेहरू का चेहरा खुशी से दमक रहा था।
इस पूरे कार्यक्रम मे आजादी के महानायक गांधी उपस्थित नहीं थे। गांधी उस समय कलकत्ता में थे। वहां भी गांधी ने ना ही किसी कार्यक्रम में हिस्सा लिया और न ही झंडा फहराया। 14 अगस्त की शाम को बंगाल के मुख्यमंत्री ने गांधी से पूछा कि 15 अगस्त का कार्यक्रम कैसे मनाया जाए तो गांधी ने कहा कि "चारों तरफ लोग भूख से मर रहे है, फिर भी आपकों लगता है कि हर तरह के विनाश और दंगों के बीच कोई कार्यक्रम किया जाए?"
महात्मा गांधी 15 अगस्त के दिन बहुत दुखी और खिन्न थे। जब हिन्दुस्तान टाइम्स के पत्रकार ने गांधी से देश की स्वतंत्रता के पहले दिन देश के नाम संदेश देने का आग्रह किया तो गांधी ने कहा कि "वह अंदर से खालीपन महसूस करते हैं।" गांधी ने देश की स्वतंत्रता का पहला दिन 24 घंटे का उपवास कर मनाया।
15 अगस्त 1947 को सबसे पहला कार्यक्रम गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन का शपथ ग्रहण का था जो 14 अगस्त 1947 की रात तक ब्रिटिश भारत के आखरी वायसराय थे। पूरे दिल्ली मे तीन सौ स्थानों पर तिरंगा लगाया गया था। मुम्बई के मेयर ने होटल ताज में रात्रिभोज का आयोजन किया था। हिंदुओं के शहर बनारस में 15 अगस्त को पहला तिंरगा मुस्लिम नेता ने फहराया था। उत्तर पूर्व के पहाड़ी शहर शिलांग में गवर्नर ने चार आदिवासी महिलाओ के साथ ध्वज फहराया था। दिल्ली में सभी नेताओ ने धोती और गांधी टोपी पहनी थी।
भारत स्वतंत्रता के बाद एक राष्ट्र के रूप में बना रहेगा इसका भरोसा अंग्रेज शासन को नहीं था। चर्चिल ने कहा था कि "अगर अंग्रेज भारत से चले जाते है तो उनके द्वारा निर्मित न्यायपालिका, स्वास्थ सेवांए, रेलवे और लोक निर्माण की संस्थाओं का पूरा तंत्र खत्म हो जाएंगा और हिन्दुस्तान बहुत तेजी से शताब्दियों पहले की बर्बरता और मध्ययुगीन लूट खसोट के दौर में चला जाएगा।"
लेकिन भारत ने ब्रिटेन की भारत के प्रति धारणा को पूरी तरह से गलत साबित किया और भारत देश दुनिया के सफलतम लोकतंत्र में स्थापित हुआ। अंग्रेजों के छोड़े गए एक जर्जर और कंगाल राष्ट्र को देश के लोकतंत्र ने 75 साल मे एक समृद्ध और सशक्त राष्ट्र में परिवर्तित कर दिया। स्वतंत्रता के 75वें साल में यही भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
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