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हिंदी दिवस: जब हम खुद बढ़ाएंगे हिन्दी का मान, तभी बढ़ेगा उसका सम्मान

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नई दिल्ली। आज हिंदी दिवस है और हिंदी हमारी राजभाषा भी है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से इसे राजभाषा का दर्जा दिए जाने का निर्णय लिया तथा 1950 में संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के द्वारा इसे देवनागरी लिपि में राजभाषा का दर्जा भी दे दिया गया। महात्मा गाँधी ने कहा था 'राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है'। यह सच है लेकिन साथ ही बदलते परिवेश में यह भी सच है क़ि हिंदी को आज उतना महत्व नहीं मिल पा रहा है जितने की अधिकारिणी यह है, जबकि यह हमारी संपर्क भाषा है, आम-जन की भाषा है और जीवित भाषा भी है। नए शब्दों को खुद में समाहित करने के लिए इसकी बाहें हमेशा खुली रही है। यह इसकी जीवंतता ही तो है। फिर भी, आज के दौर में अक्सर यह महसूस होता है की हिंदी अपने गुण और कौशल में दक्ष होते हुए भी पुरे दमख़म से खुद को सामने रखने में सकुचाती है। लेकिन स्वयं हिंदी ऐसा नहीं करती है, वह तो अभिव्यक्ति की अधिष्ठात्री है। ऐसी ज्यादती उसके साथ हम खुद करते हैं क्योंकि हम ही तो उसके वाहक हैं। जरूरत है इसपर सोचने की और इसे समझने की। आइए हिंदी दिवस पर ही इसकी शुरुआत करते हैं।
यह सच भी है की अभिव्यक्ति जब सहज रूप में अपनी भाषा में होती है तो वो शब्द शब्द मात्र नहीं रह जाते, उस शब्द की अनुभूति रूह में होने लगती है।

Hindi Diwas 2019
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English summary
Hindi Diwas 2019: When we ourselves will increase the value of Hindi, then only its honor will increase
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