#DoctorsStrike: राजनीति से परे कुछ सवाल उठाती है डॉक्टरों की ये हड़ताल
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों पर हुए हमले के विरोध में लगभग एक हफ्ते से न सिर्फ पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई हैं बल्कि देश भर में डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन भी जारी हैं। राजधानी दिल्ली में ही इस हड़ताल के चलते मरीज़ों को होने वाली परेशानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता कि राजधानी के छः बड़े अस्पतालों में लगभग 40000 मरीज़ों को इलाज नहीं मिल सका और एक हज़ार से अधिक ऑपरेशन टाल दिए गए। हड़ताल के कारण उपचार नहीं मिलने से पश्चिम बंगाल में अबतक छ लोगों और एक नवजात शिशु की मौत हो चुकी है। देश के अन्य राज्यों में भी कमोबेश यही हालात है।
डॉक्टरों की यह हड़ताल कितनी जायज़ है?
इन परिस्थितियों में सवाल यह उठता है कि डॉक्टरों की यह हड़ताल कितनी जायज़ है। यह बात सही है कि पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के साथ हुई घटना दुखद ही नहीं दुर्भाग्यपूर्ण भी है जिसका विरोध हर हाल में किया ही जाना चाहिए लेकिन जिनका मूलभूत कर्तव्य लोगों की जान बचाना हो उन्हें इतना तो सुनिश्चित करना ही चाहिए कि उनकी वजह से किसी की जान पर न बन आना, विरोध करने और अपने हक के लिए लड़ने के और भी तरीके हो सकते हैं जैसे काली पट्टी बांध कर आना या सफेद की जगह काला एप्रन पहनना या फिर कोई अन्य तरीका लेकिन उन्हें इतना तो सुनिश्चित करना ही चाहिए कि उनके कारण देश में अराजकता का माहौल पैदा ना हो क्योंकि उनका चिकित्सक धर्म उन्हें इस बात की अनुमति नहीं देता। उन्हें यह समझना चाहिए कि जिस दिन उन्होंने एक चिकित्सक बनने की सोची थी उन्होंने मानव समाज की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी और इसीलिए उन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है। शायद इसीलिए स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने भी डॉक्टरों से कहा है कि सरकार उनकी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन वे केवल प्रतीकात्मक विरोध करें और अपने कर्तव्यों का पालन करें। लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आह्वान पर 17 जून को देश व्यापी हड़ताल हुई ।
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यह ममता बनर्जी की विफलता है...
ऐसे में एक मुख्यमंत्री के रूप में निश्चित ही यह ममता बनर्जी की भी विफलता है कि ना सिर्फ वे डॉक्टरों का भरोसा जीतने में नाकाम रहीं बल्कि उनके अड़ियल व्यवहार ने डॉक्टरों के आक्रोश को एक देश व्यापी आंदोलन बना दिया। स्थिति केवल बंगाल ही नहीं बल्कि देश भर में दिन ब दिन बिगड़ती ही जा रही है। दरअसल यह शायद देश में पहली बार हुआ है कि एक राज्य के डॉक्टरों की हड़ताल को देश भर के डॉक्टरों का समर्थन मिला हो। शायद इसीलिए एक राज्य से देश में फैलती स्वास्थ्य सेवाओं की बिगड़ती परिस्थितियों पर गृह मंत्रालय ने भी रिपोर्ट मांगी है कि इस हड़ताल को खत्म करने के लिए राज्य सरकार ने क्या कदम उठाए हैं। हालांकि ममता सरकार अपनी चिर परिचित शैली में इस बार भी अपने राज्य की इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को सांप्रदायिक रंग देकर लोगों को भड़काने के लिए भाजपा को ही जिम्मेदार ठहरा रही है लेकिन जिस प्रकार से बंगाल की यह आग देश भर में फैलती जा रही है, वो भी जानती हैं कि परिस्थितियाँ उनके हाथ से निकलती जा रही हैं। यही कारण है कि जो ममता दो दिन पहले तक डॉक्टरों पर कठोर कार्यवाही करने की धमकी दे रही थीं आज डॉक्टरों से यह आश्वासन देते हुए काम पर लौटने की अपील कर रही हैं कि किसी डॉक्टर पर कोई कार्यवाही नहीं कि जाएगी।
मरीज हो रहे हैं परेशान, आखिर उनका क्या कसूर
लेकिन राजनीति से परे जब हम इस घटना को समझने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि यह स्थिति किसी भी समाज के लिए बेहद चिंताजनक है। एक अस्पताल में एक वृद्ध को उसके परिजन इलाज के लिए लेकिन आते हैं। दुर्भाग्यवश डॉक्टर तमाम कोशिशों के बावजूद उसे बचा नहीं पाते। लेकिन परिजन डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाते हैं और विवाद हिंसा का वो रूप लेता है कि दो डॉक्टर घायल हो जाते हैं ,इनमें से एक की तो जान पर बन आती है और उसे आई सी यू में भर्ती कराना पड़ता है। परतुं खेद का विषय यह है कि यह देश की कोई पहली घटना नहीं थी, इस प्रकार की घटनाएं पूरे देश में आए दिन होती रहती हैं। किंतु ऐसा भी नहीं है कि हर बार केवल डॉक्टर ही हिंसा का शिकार होते हैं। अभी कुछ समय पहले राजिस्थान के एक अस्पताल का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें जूनियर डॉक्टर मरीज के साथ मारपीट कर रहे थे। मध्यप्रदेश के गाँधी मेडिकल कॉलेज से भी हाल ही में इसी प्रकार की घटना सामने आई थी।
गंभीर मरीजों को देखने का दारोमदार भी जूनियर डॉक्टरों पर
आपको
जानकर
आश्चर्य
होगा
कि
जब
इस
तरह
की
घटनाओं
की
जांच
कॉलेज
की
ही
कमेटी
द्वारा
की
गई
तो
उसकी
रिपोर्ट
अत्यंत
चौकाने
वाली
थी।
जांच
में
यह
बात
सामने
आई
कि
मेडिकल
कॉलेज
जूनियर
डॉक्टरों
के
ही
भरोसे
चल
रहे
हैं
क्योंकि
सीनियर
डॉक्टर
अस्पताल
में
बहुत
कम
समय
के
लिए
ही
आते
हैं।
ऐसे
में
गंभीर
मरीजों
को
देखने
का
दारोमदार
भी
जूनियर
डॉक्टरों
पर
ही
पड़
जाता
है।
इस
कारण
न
सिर्फ
उन
पर
काम
का
अत्यधिक
बोझ
हो
जाता
है
बल्कि
सीरियस
पेशेंट्स
के
इलाज
और
उनके
परिजनों
को
संतुष्ट
करने
का
भी
दबाव
होता
है।
सरकारी
अस्पतालों
में
वैसे
भी
मरीजों
की
संख्या
अधिक
ही
रहती
है।
रिपोर्ट
में
कहा
गया
कि
इन
परिस्थितियों
की
वजह
से
जूनियर
डॉक्टरों
में
चिड़चिड़ापन
बढ़
रहा
है
और
इस
वजह
से
उनका
मरिजों
के
परिजनों
से
विवाद
हो
जाना
स्वाभाविक
ही
है।
यह
तो
हुई
सरकारी
अस्पतालों
की
बात
लेकिन
प्राइवेट
अस्पतालों
की
भी
अपनी
समस्याएँ
हैं।
मेडिकल कॉलेजों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है...
दरअसल पिछले कुछ समय से भारत में निजी क्षेत्र में कॉर्पोरेटनुमा मेडिकल कॉलेजों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है जिनमें फीस के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भारी भरकम रकम वसूल की जाती है। ऐसे कॉलेजों से डॉक्टर बनकर निकलने वाले चिकित्सकों की मानसिकता को सहज ही समझा जा सकता है। देश में ऐसे भी अनेक मामले आए हैं जब फाइव स्टार सुविधाओं से युक्त कॉरपोरेट कल्चर वाले अस्पतालों से मोटी रकम वसूलने के लिए इलाज में बिना मतलब की दवाइयां और जाँचे करवाना या फिर पूरा बिल चुकाए बिना परिजनों को मरीज़ का शव न सौंपना जैसी घटनाएं सामने आई हैं। इतना ही नहीं एक रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई थी कि इलाज की रकम बढ़ाने के लिए अनेक मामलों में डॉक्टर जानबूझकर नॉर्मल डिलीवरी के बजाए ऑपरेशन करते हैं। यह बात सही है कि हर डॉक्टर ऐसा नहीं होता लेकिन यह भी सच है कि ऐसे मुट्ठी भर डॉक्टर भी पुरे चिकित्सा जगत को बदनाम करने के लिए काफी होते हैं।और जब इस प्रकार की घटनाएं समाज में आए दिन सामने आती हैं तो डॉक्टरों के प्रति लोगों की मानसिकता में भी बदलाव आता है जो उनके प्रति असहिष्णुता को जन्म देती है।
समाज में विद्रोह के जो अंकुर फूटा है...
लेकिन इसका मतलब कतई नहीं है कि इन तर्कों से डॉक्टरों के प्रति हिंसा को जायज ठहराया जा रहा है। नहीं, कदापि नहीं। हिंसा हर हाल में अस्वीकार्य होनी चाहिए लेकिन इस प्रश्न का उत्तर तो एक सभ्य समाज के रूप में स्वयं हमें ही खोजना होगा कि जिस चिकित्सक को इस समाज में वो सम्मान प्राप्त था कि उसे "धरती के भगवान" का दर्जा दिया गया था आज उसका अपमान करने के संस्कार इस समाज में कहां से आए। इस विषय पर पूरे चिकित्सक समाज को भी आत्ममंथन करना चाहिए कि उनके प्रति समाज में विद्रोह के जो अंकुर फूटा है कहीं वो अनजाने में उन्हीं के आंगन से नहीं उपजा? क्योंकि जिस प्रकार की एकता पूरे देश के चिकित्सकों ने इस मामले में दिखाई है उस प्रकार की एकता अगर इन्होंने उन मामलों में भी दिखाई होती जब मरीजों के साथ अन्याय हुआ था और उन मुट्ठी भर डॉक्टरों को इस दिव्य सेवा से बेदखल करके उनका विरोध करते जिनके लालच ने सेवा को पेशा बना दिया तो निश्चित ही अपनी गरिमा बनाए रखते। लेकिन अब जब इस प्रकार की घटनाएं दोनों ही ओर से आम हो चली हैं तो सरकार को ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए और, डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समस्या की जड़ का समाधान करने हेतु ठोस उपाए अपनाने होंगे। इसी प्रकार डॉक्टरों को भी अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए वर्तमान हालातों को देखते हुए नए सिरे से खुद ही अपने लिए एक नई आचार संहिता बनानी चाहिए जिससे नए डॉक्टर चिकित्सा को सेवा धर्म का जरिया समझें मात्र धन कमाने वाला पेशा नहीं।
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