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दीनदयाल उपाध्याय: स्वदेशी चिंतन के सबसे बड़े प्रवर्तक

By प्रभात झा, भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
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देश में जब भी सामाजिक - आर्थिक चिंतन की बात की जाती है तो गांधी , जेपी - लोहिया और दीनदयालजी का नाम लिया जाता है । हम किसी की देशभक्ति पर प्रश्नचिह्न नहीं लगा रहे , परंतु गांधीजी ने आजादी की लड़ाई लड़ी , जेपी ने आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ी, लोहियाजी समाजवादी चेतना के संवाहक बने और दीनदयालजी स्वदेशी आधारित सामाजिक -आर्थिक चिंतन के सर्वश्रेष्ठ चिंतक बने। जब मैं दीनदयालजी के बारे में सर्वश्रेष्ठ चिंतक की बात करता हूँ तो इसका प्रामाणिक आधार है । गांधीजी की शिक्षा लंदन में हुई , जेपी की शिक्षा अमेरिकी विश्वविद्यालय में हुई और लोहिया की शिक्षा जर्मनी में हुई थी । कमोवेश इन तीनों पर उन देशों का जरूर प्रभाव पड़ा , जहाँ वे अध्ययन करने गए थे । परंतु दीनदयालजी का अध्ययन स्वदेश में हुआ , इसलिए उनके मूल में स्वदेशी चिंतन प्राकृतिक रूप में अंतर्निहित है । इसे यों कहें कि वे प्रकृति प्रदत्त स्वदेशी चिंतक थे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । अपनी - अपनी विचारधारा के धरातल पर हमारी संस्कृति में सभी को श्रेष्ठ ही माना जाता है , इसलिए गांधीजी , लोहिया , जेपी के विचारों पर हम कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगाते हैं । हम इन सभी का आदर कल भी करते थे , आज भी कर रहे हैं और कल भी करेंगे ।

दीनदयाल उपाध्याय: स्वदेशी चिंतन के सबसे बड़े प्रवर्तक

भारत के श्रेष्ठ विचारकों में हम दीनदयालजी के एकात्म मानववाद का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि पं . दीनदयालजी भारत की चित्ति , भारत के जनमानस और भारत की संस्कृति को समझ समस्याओं के समाधान के लिए सदैव अग्रसर हुए । यही कारण है कि दीनदयालजी कल भी प्रासंगिक थे , आज भी हैं और विश्व राजनीतिक फलक पर उनका एकात्म - दर्शन भी प्रासंगिक रहेगा । अगर हम गौर से देखें तो हम पाएँगे कि हर विचारक का एक शब्द प्रिय होता है , जैसे गांधीजी का ' अहिंसा ' , नेहरूजी का ' आराम - हराम ' , लोहियाजी का ' चौखंभा राज्य ' , जयप्रकाशजी का ' संपूर्ण क्रांति ' , शास्त्रीजी का ' जय जवान - जय किसान ' । इसी तरह दीनदयालजी का प्रिय शब्द रहा ' अंत्योदय ' , अंत्योदय यानी अंतिम व्यक्ति का उदय ।

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भारतीय राजनीति में विनोबा भावे ने भी ' सर्वोदय ' शब्द दिया , पर अंत्योदय में यह बात निहित है ' सबका साथ , सबका विकास ' । जब अंतिम व्यक्ति का विकास होगा तो उसके ऊपर सभी व्यक्तियों का विकास अंतर्निहित है । अंत्योदय की अंतरात्मा स्वत : अपनी उद्घोषणा करती है कि अगर अंत्योदय होगा तो ' सबका साथ सबका विकास ' स्वतः हो जाएगा। सामाजिक जीवन में और समाज के आर्थिक जीवन में यदि हमारी अर्थव्यवस्था अंत्योदय युक्त होगी तो समाज - जीवन की चित्ति की साधना स्वतः सफल होती जाएगी । अंत्योदय शब्द में संवेदना है , सहानुभूति है , प्रेरणा है , साधना है , प्रामाणिकता है , आत्मीयता है , कर्तव्यपरायणता है तथा साथ ही उद्देश्य की स्पष्टता है । दीनदयालजी कहा करते थे कि ' जब तक अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उदय नहीं होगा , भारत का उदय संभव नहीं है ' । वे अश्रुपूरित आँखों से आँसू पोंछने और उसके चेहरे पर मुसकराहट को अंत्योदय की पहली सीढ़ी मानते थे।

दीनदयाल उपाध्याय: स्वदेशी चिंतन के सबसे बड़े प्रवर्तक

जिस देश के आर्थिक चिंतन में अंतिम पंक्ति के व्यक्ति का उदय न हो , वह राष्ट्र न केवल आर्थिक दृष्टि से , बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी भटक जाता है । अंत्योदय सामाजिक कर्तव्य की प्रेरणा की पहल है । यह किसी राजनीतिक दल का शब्द नहीं है । सर्वकल्याणकारी , सर्वस्वीकारी और फलकारी है । अतः सरकार किसी की भी हो , उस सरकार के चित्ति में अंत्योदय की लौ सतत प्रज्वलित रहनी चाहिए । ' प्रबलता को प्रणाम , दुर्बलता को दुलत्ती ' इस नीति - सिद्धांत पर कोई भी राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता । प्रबलता की कर्तव्यपरायणता में निर्बलता को दूर करने का साहस होता है । अतः प्रबलता की सामर्थ्य का सार्वजनिकीकरण करते हुए निर्बल को सबल बनाने का पुनीत कार्य अंत्योदय में अंतर्निहित है , जो अंत्योदय की आत्मिक पुकार है । अंत्योदय के मूल में दीनदयालजी ने कोई चुनावी लाभ नहीं देखा , क्योंकि उनका जीवन स्वतः अंत्योदय से प्रेरित था । वे समाजोत्थान के लिए अपनी हड्डी गलाने में विश्वास रखते थे । उनके शब्द और आचरण में दूरी नहीं थी ।वर्षों के चिंतन के बाद उन्होंने पाया कि भारतीय जीवन और सांस्कृतिक चिंतन को जमीन पर उतारने के लिए अगर कोई नीति अंत्योदय आधारित नहीं होगी तो हम भारतीय संस्कृति से , सद्भाव से गाँव की आत्मा से और शहरी आवश्यकता से कोसों दूर चले जाएँगे । दीनदयालजी के अंत्योदय का आशय राष्ट्रश्रम से प्रेरित था । वे राष्ट्रश्रम को राष्ट्रधर्म मानते थे । उनकी मान्यता रही कि राष्ट्रश्रम प्रत्येक नागरिक का राष्ट्रधर्म है । अत : कोई श्रमिक वर्ग अलग नहीं है , हम सब श्रमिक हैं । अत : राष्ट्रश्रम राष्ट्रधर्म का दूसरा नाम है ।

दीनदयाल उपाध्याय: स्वदेशी चिंतन के सबसे बड़े प्रवर्तक

दीनदयालजी के अंत्योदय का आशय यह भी था कि समाज की योजनाएँ सबके लिए वरण्य तो हों , परंतु वरीयता अंतिम व्यक्ति को मिले । उनके चिंतन में सरकार की हर योजना के पीछे गाँव होना चाहिए । उनकी मान्यता थी कि आजादी के बाद सरकार की योजनाएँ ग्रामोन्मुखी न होकर नगरोन्मुखी ज्यादा रहीं और यही कारण है कि आज गाँव सूने हो रहे हैं तथा नगरों में रहना दूभर हो गया है । वे ग्राम और शहर के बीच संतुलित संबंध चाहते थे । आजादी के बाद जो सरकारें आईं , उनके चिंतन में यह भाव नहीं दिखा । यही कारण है कि आज अंत्योदय की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है । इसी भाव के साथ दीनदयालजी के अंत्योदय के सपने को कैसे साकार किया जाए , इसी दृष्टि से कुछ चिंतकों से और दीनदयालजी के साथ रहे लोगों से आलेख माँगे गए , और उन आलेखों से अंत्योदय की परिभाषा सामने आई है । हमारी यह पहल रही कि समाज के बीच दीनदयालजी की अंत्योदय की भावना क्या रही , यह लोग समझें । यह सफल तब होगा , जब आप पढ़ेंगे समझेंगे और इसे भारतीय जीवनशैली में उतारने की कोशिश करेंगे ।
यहाँ यह कहने में मुझे कोइ संकोच नहीं है कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंत्योदय शब्द के अपनी गरीबोन्मुखी योजनाओं से उसे साकार करने की दिशा में एक नहीं अनेक साहसिक निर्णय लिए हैं। मसला जनधन योजना का हो, उज्जवला योजना हो, आयुष्मान योजना हो, शौचालय योजना हो, प्रधानमंत्री आवास योजना हो, मुद्रा योजना हो, स्वछता अभियान हो, १८ से ४० साल के लोगो को पेंशन लाभ के दायरे में लाना, सामाजिक सुरक्षा की गारंटी को लेकर पेंशन की अनेक योजनाए गरीब किसानो के खाते में छह हजार रुपये वार्षिक भेजने, इसके साथ ही ठेले खोमचे लगाने वालो से लेकर गरीबो की जिंदगी में मुद्रा योजना के माध्यम से परिवर्तन लाने की अहम योजना| ऐसी अनेक योजनाए लागू हुई, जिनसे सौ करोड़ से अधिक भारतियों के जीवन पर सीधा असर पड़ा| सरकार वही अच्छी होती है, जिसकी किरणे ' अंत्योदय ' अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के जीवन में नया सवेरा लाये।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

English summary
Deendayal Upadhyay: The biggest promoter of Swadeshi thought
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