सत्ता के लिए मारामारी की वजह से एमपी में बेकाबू हुई कोरोना महामारी
एक महामारी से कैसे नहीं जूझना चाहिए मध्यप्रदेश उसका जीता जागता उदाहरण है. जब महामरी से बचाव के उपाय किये जाने थे तब मध्यप्रदेश में सरकार गिराने और बचाने का खेल खेला जा रहा था . नतीजे के दौर पर मध्यप्रदेश में कोरोना का फैलाव बहुत तेजी से हुआ है इंदौर तो कोरोना का हॉटस्पॉट बन ही चुका है साथ ही राजधानी भोपाल और उज्जैन जैसे शहरों में भी स्थिति भी कम गंभीर नहीं हैं. कोरोना से होने वाले मृत्यु दर के मामले में भी मध्यप्रदेश देश के शीर्ष राज्यों में शामिल है. मध्यप्रदेश में सरकार गिरने से पहले तक शिवराज और प्रदेश भाजपा के और नेता खुले रूप से यह कहते रहे कि कोरोना कोई बड़ा खतरा नहीं है. अब सत्ता हथियाने के बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान इसका दोष जमातियों को दे रहे हैं जबकि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा प्रदेश में कोरोना फैलने के लिए कमलनाथ सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही कहानी बयान कर रही है.
दुनिया कर रही कोरोना वैक्सीन का इंतजार, भोपाल एम्स ने इस दवा से ठीक किए कोविड-19 के मरीज
जब कोरोनो वायरस अपने पैर पसार रहा था
लगभग
पूरे
मार्च
माह
के
दौरान
जब
कोरोनो
वायरस
अपने
पैर
पसार
रहा
था
तो
मध्यप्रदेश
में
कमलनाथ
सरकार
के
स्वास्थ्य
मंत्री,
तुलसी
सिलावट
"भाजपा
सिंधिया
योजना"
के
तहत
अपनी
ही
सरकार
गिराने
के
लिये
बैंगलोर
में
आराम
फरमा
रहे
थे.
इसके
बाद
मध्यप्रदेश
में
कमलनाथ
सरकार
गिरने
के
बाद
मुख्यमंत्री
के
तौर
पर
शिवराजसिंह
चौहान
की
वापसी
होती
है
जो
लगभग
29
दिनों
तक
बिना
मंत्रीमंडल
के
ही
सरकार
चलाते
रहे.
इस
दौरान
वे
अकेले
ही
स्वास्थ्य
मंत्री
सहित
पूरी
कैबिनेट
की
"जिम्मेदारी"
निभाते
रहे.
इस
उठापठक
के
बीच
प्रदेश
का
स्वास्थ्य
विभाग
खुद
ही
बीमार
रहा.
शुरूआती
दौर
मैं
तो
भोपाल
में
तो
कुल
कोरोना
संक्रमितों
में
से
आधे
से
अधिक
केस
स्वास्थ्य
विभाग
के
ही
थे
.
खुद
स्वास्थ्य
विभाग
के
प्रिंसिपल
सेक्रेटरी
भी
कोरोना
पॉजिटिव
पायीं
गयीं.
दरअसल
मध्यप्रदेश
की
सत्ता
के
लिये
महामारी
को
नजरअंदाज
किया
गया.
कमलनाथ
सरकार
गिराने
के
बाद
23
मार्च
की
रात
शिवराजसिंह
चौहान
द्वारा
चौथी
बार
प्रदेश
के
मुख्यमंत्री
पद
की
शपथ
ली
गयी
और
इसके
ठीक
बाद
24
मार्च
को
रात
आठ
बजे
प्रधानमंत्री
द्वरा
पूरे
देश
में
लॉकडाउन
की
घोषणा
कर
दी
गयी.
इस
सम्बन्ध
में
कमलनाथ
द्वारा
भी
मोदी
सरकार
पर
आरोप
लगाया
है
कि
‘मध्यप्रदेश
में
भाजपा
की
सरकार
बनवाने
की
वजह
से
देश
में
लॉकडाउन
लगाने
का
फैसला
लेने
में
देरी
की
गयी
जिसकी
वजह
से
देश
में
कोरोना
वायरस
की
स्थिति
गंभीर
होती
गयी.'
कोरोना से निपटने के लिए क्या किया गया
शिवराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद मंत्रिमंडल के अभाव में कोरोना से निपटने के उपाय के तौर पर प्रदेश भाजपा संगठन द्वारा एक टास्कफोर्स बनाया गया जिसमें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री सहित प्रदेश भाजपा संगठन के पदाधिकारियों, कई और विधायकों को शामिल किया गया. इस टास्कफोर्स में कैलाश विजयवर्गीय भी शामिल किये गये जो यह बहुचर्चित बयान दे चुके हैं कि "भारत में 33 करोड़ देवी देवता हैं, यहां कोरोना कुछ नहीं कर पायेगा". बहरहाल टास्कफोर्स क्या काम करेगी और इसके पास क्या अधिकार होंगें इसके बारे स्पष्टता नहीं हो सकी. इसके बाद मध्यप्रदेश सरकार द्वारा भी एक टास्कफोर्स का गठन किया गया यह भी अपने आप में नये प्रकार का प्रयोग था. इस टास्कफोर्स में केवल स्वास्थ्य अधिकारियों को ही शामिल किया गया. 29 दिनों बाद शिवराज सरकार के मिनी मंत्रिमंडल का गठन किया गया जिसमें केवल 5 मंत्री बनाये गये. अब मुख्यमंत्री सहित 6 लोग मिलकर मध्यप्रदेश की सरकार चला रहे हैं.
मध्यप्रदेश मॉडल
2014 से पहले भाजपा के दो मुख्यमंत्रियों नरेंद्र मोदी के गुजरात माडल और शिवराज के मध्यप्रदेश माडल की खूब चर्चा होती थी. भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी अपने आखिरी दांव के तौर पर गुजरात विकास माडल के बरअक्स मध्यप्रदेश का माडल पेश किया था. गुजरात माडल जैसा भी रहा हो अब पूरे देश में लागू हो गया है इधर करीब पंद्रह महीनों के ब्रेक के बाद शिवराजसिंह चौहान चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये हैं और इसी के साथ मध्यप्रदेश में एकबार फिर "शिवराज माडल" की वापसी ही गयी. इससे पहले वे 13 साल तक लगातार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इन गंभीर चुनौतियों के बीच कोरोना महामारी से निपटने की शिवराज शैली अपने पुराने ही ढ़र्रे पर चल रही है जिसमें सारा जोर इमेज बिल्डिंग और धुआंधार विज्ञापन पर है. जबकि जमीनी हालत यह है कि राज्य के 31 जिलों में एक अदद आईसीयू बेड तक नहीं हैं, महामारी से निपटने के लिये पूरा सूबा निजी अस्पतालों के हवाले हैं जिनकी तरफ से घनघोर लापरवाही देखने को मिल रही है फिर वो चाहे इंदौर का गोकुलदास अस्पताल हो या उज्जैन का आर.डी.गार्डी अस्पताल.
शिवराज सरकार का कोरोना के इलाज के लिये भरोसा
शिवराज सरकार कोरोना के इलाज के लिये सरकारी से ज्यादा प्राइवेट अस्पतालों पर भरोसा कर रही है. जबकि सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिये बने विशेष वार्ड खाली हैं. इसकी शुरुआत शिवराज सरकार द्वारा प्रदेश के तत्कालीन स्वास्थ्य आयुक्त प्रतीक हजेला को हटाने से हुई थी. गौरतलब है कि प्रतीक हजेला असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस के समन्वयक रह चुके हैं जिन्हें बाद में मध्यप्रदेश भेज दिया गया था. शिवराज सरकार द्वारा हटाये जाने से एक दिन पहले प्रतीक हजेला ने प्रेस को दिये गये अपने ब्रीफिंग में कोरोनोवायरस मरीजों के इलाज के लिए सरकार के किये गये उपायों के बारे में विस्तार से बताया था जिसमें उन्होंने इसके लिये तैयार किये गये सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों का विवरण दिया था. इस विवरण में उन्होंने बताया था कि ‘भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा और सागर में छह सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें कुल मिलाकर 394 बेड की क्षमता और 319 वेंटिलेटर हैं.' लेकिन इसके अगले ही दिन एक अप्रैल को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा प्रतीक हजेला को राज्य के स्वास्थ्य आयुक्त पद से तत्काल स्थानांतरित करने का आदेश जारी कर दिया गया. हालांकि इसके पीछे कोई ठोस कारण नहीं बताया गया. इस सम्बन्ध में मीडिया द्वारा प्रतीक हजेला को हटाये जाने का कारण "कर्तव्य की घोर लापरवाही" बताया गया था. इसके बाद शिवराज सरकार द्वारा कोरोना मरीजों को सरकारी अस्पतालों से निजी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में स्थानांतरित करने की अनुमति दी जाती हैं. इसी फैसले के तहत भोपाल में चिरायु अस्पताल और इंदौर में अरबिंदो हॉस्पिटल को भी कोविद -19 उपचार केंद्र घोषित किया गया है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि अरबिंदो अस्पताल के संस्थापक विनोद भंडारी और चिरायु अस्पताल के मालिक अजय गोयनका का नाम जग प्रसिद्ध "व्यापम घोटाले" के साथ जुड़ा है और वर्तमान में यह दोनों व्यापम घोटाले के आरोपी के रूप में जमानत पर हैं.
कोरोना वायरस का फैलाव
बहरहाल प्रदेश में कोरोना वायरस का फैलाव तेजी के साथ हो रहा है लेकिन इससे निपटने के लिए मोदी सरकार की तरह शिवराज सरकार की भी कोई को ठोस कार्ययोजना नजर नहीं आ रही है. उलटे हालात यह है कि राज्य प्रशासन पर कोरोना के आंकड़ों को छुपाने के आरोप लग रहे हैं, टेस्ट की रिपोर्ट आने में दस दिन से अधिक का समय लग रहा है और हजारों की संख्या में कोरोना के जांच सैंपल पेंडिंग बताये जा रहे हैं. बीते 8 मई को पत्रिका अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में करीब नौ हजार सेम्पल की रिपोर्ट राज्य के हेल्थ बुलेटिन में दर्ज नहीं की गयी. किसी को पता नहीं की इन सेम्पलस के नतीजे क्या हैं, ऐसे में राज्य सरकार द्वारा कोरोना मरीजों को लेकर जो आंकड़े दिये जा रहे हैं उसपर संदेह करने के ठोस कारण है. इस बात की पूरी आशंका है कि राज्य सरकार द्वारा अपनी कमियों और लापरवाही को छुपाने के लिये कोरोना मरीजों के आंकड़ों को कम बताया जा रहा है. पिछले दिनों कांग्रेस नेता जीतू पटवारी द्वारा भी राज्य सरकार द्वारा कोरोना संक्रमित मरीजों के आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए आंकड़ों में हेराफेरी का आरोप लगाया है. इस सम्बन्ध में उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को बाकायदा पत्र लिखकर कोरोना संक्रमित आंकड़ों को पारदर्शी रूप से सही आंकड़े जारी करने की मांग की है. यह जरूरी भी है, कोरोना ऐसा संक्रमण है जिसे छुपाकर रखने की "रणनीति" बहुत घातक साबित हो सकती है. इसके उलट दुनिया भर रणनीति यह है कि कोरोना संक्रमितों के मामलों को तेजी से उजागर किया जाये जिससे इसके फैलाव को रोका जा सके. शिवराज सरकार को इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है.
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)