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Bharat Jodo Yatra: यात्रा से नहीं, भारतीय विचार स्वीकारने से बनेगी बात

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का कश्मीर में समापन हो गया। जिसमें वो राजनीतिक बयानबाजी और विचारधारा की बात भी करते रहे। क्या उनकी यात्रा में उन्होंने भारतीय विचार को समझा और उसे स्वीकार करने का प्रयास किया?

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congress image and ideology of rahul gandhi bharat jodo yatra

Bharat Jodo Yatra: राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को कश्मीर पहुंचकर समाप्त हो गयी। 7 सितंबर 2022 को कन्याकुमारी से शुरू हुई यह यात्रा श्रीनगर तक चली। इस यात्रा के पीछे राहुल गांधी की चुनावी पहचान बनाने का प्रयास था इसमें कोई शंका नहीं है। लेकिन यात्रा जैसे प्रतीकात्मक संकेतों से क्या उपयुक्त पहचान बन पाएगी यह सोचने और देखने की बात होगी।

इतना जरूर है कि राहुल गांधी ने यात्रा के दौरान जिन लोगों के साथ फोटो खिंचवाई उससे उन लोगों को पहचान मिली। वैसे यह यात्रा ऐसे ही कांग्रेसियों और उनके साथियों को जोड़ने के लिए थी ऐसा कहना ही ठीक होगा। यह सही है कि भारतीयों को समझने के लिए यात्रा का उपयोग होता रहा है लेकिन विचार में स्पष्टता के लिए भारतीय संस्कृति और परंपरा को समझना ज्यादा जरूरी है। इस संदर्भ में राहुल गांधी को अपने विचार में स्पष्टता लाने में मदद मिली है तो किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

क्या है राहुल गांधी की पहचान ?

निश्चित तौर पर नेहरू परिवार के सदस्य होने के नाते ही राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व मिला है और यही उनकी अभी तक की पहचान है। बाकी उनकी कोई विचारधारा स्पष्ट नहीं हुई है। वे अपने आप को जैसे अभिव्यक्त करते हैं उससे तो यही लगता है कि कोई पहले बता देता है और वो बस बोल देते हैं। इससे विचारों में गड़बड़ी जाहिर होती है। शायद इसी वजह से उनकी नेतृत्व वाली पहचान नहीं बन पाई है। यह कहने की आवशकता नहीं है कि उनका अब तक का व्यवहार और वैचारिक प्रदर्शन देश के सामने कोई ठोस राजनीतिक पर्याय नहीं रख पाया है।

वैसे राहुल गांधी अभी भी अपने परदादा-दादी की पार्टी को एक वारिस की तरह चला रहे हैं और उनके ही पुराने लोग और पुराने दांवपेच पर भरोसा रखे हुए हैं। लेकिन इससे अपनी खुद की राजनीतिक दृष्टि और देश की समस्या के प्रति अपना विचार न तो स्पष्ट होता है, न ही इससे कोई अपनी पहचान बन पाती है। यही कारण है जनता तो दूर की बात, विपक्षी दल भी उनके नेतृत्व में विश्वास नहीं कर रहे हैं।

देश के दुश्मनों से घिरे रहने के कारण होगी बदनामी

राहुल गांधी को पहली बात यह समझना जरूरी है कि देश के भीतरी और बाहरी दुश्मनों से दोस्ती और उनके प्रभाव में रहने से उनकी अपनी पहचान खराब हो रही है। यह सही है कांग्रेस की स्थापना ही एक सेवानिवृत्त अंग्रेज अधिकारी ए ओ ह्यूम ने की थी। उसका उद्देश्य 1857 जैसी क्रांति को रोकना था। इसके लिए भारतीयों के गुस्से और ब्रिटिश हुकूमत से शिकायत को कम करने के लिए राजनीतिक मंच के रूप में कांग्रेस का गठन किया। इसलिए इसके ज्यादातर सदस्य उस वक्त की ब्रिटिश शिक्षा से तैयार हुए और ब्रिटिश प्रभाव में आए हुए भारतीय थे। आज भी ऐसा ही एक वर्ग कांग्रेस में वर्चस्व बनाए हुए है जो भारतीय संस्कृति और परंपरा से नफरत करता है और बाहरी लोगों की मदद से भारतीय सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करना चाहता है।

वैसे यह सभी जानते हैं कि भारतीय राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक प्रगति दुनिया को रास नहीं आती और यह बाहरी ताकतें आए दिन यहां के कुछ लोगों को हाथ में लेकर भारत में अराजकता फैलाकर सामाजिक माहौल बिगाड़ना चाहती हैं। भारत में रहने वाला यह वर्ग खुद को स्वतंत्र मानता है और एक अराजकवादी लोकतंत्र में विश्वास रखता है। यही वर्ग कांग्रेस को हथियार की तरह उपयोग करना चाहता है। ऐसे लोगों का साथ लेना सामान्य जनता को गवारा नहीं होता और यही राहुल गांधी की राजनीतिक पहचान बनाने में यह एक बड़ी अडचन नज़र आती है।

खोखली विचारधारा नकारने से पहचान मिलेगी

यह कहना कि कांग्रेस की कोई विचारधारा है, ठीक नहीं होगा। स्वतंत्रता आंदोलन से पनपी ग्राम स्वराज्य और महात्मा गांधी के रामराज्य की कल्पना को नेहरू ने कभी माना नहीं। स्वतंत्रता के बाद महात्मा गांधी और सरदार पटेल के जल्दी चले जाने से नेहरू के विचार ही कांग्रेस के विचार हो गए। इसी वजह से कांग्रेस के कई बंटवारे हुए और चुनाव चिन्ह भी बदलते रहे। लेकिन सत्ता में रहने के कारण नेहरू की बात मानी गई। नेहरू पर पाश्चात्य विचारों का प्रभाव था और उन्होंने सारी नीतियां पाश्चात्य विचार और उनकी प्रचलित पद्धति को आधार मानकर ही बनाई, चाहे वह संविधान हो, लोकतंत्र हो, शासन हो या फिर न्याय व्यवस्था हो।

आर्थिक-सामाजिक और शिक्षण नीतियां भी वैसी ही बनी। राहुल गांधी जब भारतीय स्थिति की आलोचना करते हैं या उनके बारे में उपहासात्मक बोलते हैं, तब यह भूल जाते है कि आज की सारी आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के लिए कांग्रेस की नीतियां ही ज़िम्मेवार रही हैं। हालांकि यह सही है कि आज नेहरू की यह सारी नीतियां दरकिनार हो चुकी हैं और कांग्रेस भी इनको छोड़ चुकी है।

आज न समाजवादी समाज रचना की कहीं बात हो रही है न किसी क्षेत्र में सरकार के एकाधिकार की बात है। जब देश कंगाली के कगार पर पहुंच गया था तो नेहरू की आर्थिक नीतियां पूरी तरह उलटनी पड़ी। आज की छद्म धर्मनिरपेक्षता भी कांग्रेस की राजनीति का ही परिणाम है। अंतरराष्ट्रीय संबंध में दब्बूपन की नीति ने भारत को कमजोर रखा यह भी विदित है। लेकिन राहुल गांधी अब भी इन्हीं नीतियों की बात करते दिखते हैं।

भारतीय विचार स्वीकारने से पहचान बनेगी

भारत को मिली आज़ादी देश को धर्म के आधार पर खंडित करके मिली है यह बात जितनी जल्दी राहुल गांधी समझेंगे उतना उनके लिए आसान होगा। पाकिस्तान और उसके साथी भारत के ही कुछ लोगों को भड़का कर यहां आतंक फैलाते हैं, यह बात भी स्पष्ट समझनी होगी। यह भी छुपा नहीं है कि जिन मुस्लिमों ने पाकिस्तान मांगा था उसमें से अधिकांश पाकिस्तान नहीं गए और यहां अपनी राजनीति करने लगे। अपेक्षा थी कि वह भारतीय बनकर रहेंगे। नेहरू-पटेल को भी यही उम्मीद थी। कुछ हद तक यह हुआ भी।

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लेकिन भारत में चुनावी राजनीति जैसे-जैसे रंग लाने लगी वोटबैंक का महत्व बढ़ता गया और सभी राजनीतिक दल तुष्टीकरण के सहारे वोट-बैंक बनाते गए और कांग्रेस से भी आगे निकल गए। एक ओर जहां हिन्दू को जाति में विभाजित किया गया, वहीं गैर हिन्दुओं को धर्म के नाम पर लामबंद किया गया।
भारत के बहुसंख्यक समाज के विचार, परंपरा और संस्कृति को नष्ट करके और उनको बेवकूफ बनाकर चुनाव जीतने के दिन अब नहीं रहे, यह बात स्पष्ट हो गई है। भारत एक प्राचीन विचार है, एक प्राचीन संस्कृति है जो हिन्दू के ही नाम से जानी जाती है उसको नकार कर इस देश का भला नहीं हो सकता। उसे स्वीकार करके ही आगे बढ़ा जा सकता है।
भारतीय संस्कृति और इसके मूल विचार की वजह से यह देश स्वभावतः धर्म निरपेक्ष है यह बात अगर समझ आयी तो भारतीय विचार स्वीकारने में आसानी होगी। भारतीय विचार कोई सांप्रदायिक विचार नहीं है ना ही वह किसी और के धर्म को असत्य बताते हैं, न उनके प्रति हिंसा की भावना रखते हैं। मानव जाति का कल्याण ही इस विचार का प्राण है। राहुल गांधी को भी अपनी संस्कृति की ओर मुड़ना होगा और उसमें अपनी पहचान खोजनी होगी।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
congress image and ideology of rahul gandhi bharat jodo yatra
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