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Farmers Loan: कर्ज माफी सत्ता की चाबी

By Dr. Neelam Mahendra
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नई दिल्ली। तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजों के परिणामस्वरूप कांग्रेस की सरकार क्या बनी, न सिर्फ एक मृतप्राय अवस्था में पहुंच चुकी पार्टी को संजीवनी मिल गई, बल्कि भविष्य की जीत का मंत्र भी मिल गया। जी हाँ, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने इरादे स्पष्ट कर चुके हैं कि किसानों की कर्जमाफी के रूप में उन्हें जो सत्ता की चाबी हाथ लगी है उसे वो किसी भी कीमत पर अब छोड़ने को तैयार नहीं हैं। दो राज्यों के मुख्यमंत्रियो ने शपथ लेने के कुछ घंटों के भीतर ही चुनावों के दौरान कांग्रेस की सरकार बनते ही किसानों के कर्जमाफ करने के राहुल गांधी के वादे को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है।

 Farmers Loan: कर्ज माफी सत्ता की चाबी

एक प्रकार से कांग्रेस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि 2019 के चुनावी रण में उसका हथियार बदलने वाला नहीं है। लेकिन साथ ही कांग्रेस को अन्दर ही अंदर यह भी एहसास है कि इसका क्रियान्वयन आसान नहीं है। क्योंकि वो इतनी नासमझ भी नहीं है कि यह न समझ सके कि जब किसी भी प्रदेश में कर्जमाफी की घोषणा से उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ता है, तो जब पूरे देश में कर्जमाफी की बात होगी तो देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा। मध्यप्रदेश को ही लें, कर्जमाफी की घोषणा के साथ ही मध्यप्रदेश की जनता पर 34 से 38 हज़ार करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ आ जाएगा।

रघुराम राजन का बयान

पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा है कि कर्जमाफी जैसे कदमों से देश को राजस्व का बहुत नुकसान होता है और इस प्रकार के फैसले देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि इन घोषणाओं का फायदा केवल सांठ गांठ वालों को ही मिलता है, गरीब किसानों को नहीं।उनके इस कथन का समर्थन कैग की वो रिपोर्ट भी करती है जो कहती है कि 2008 में कांग्रेस जिस कर्जमाफी के वादे के साथ सत्ता में आई थी, वो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई थी, जिस कारण उसका फायदा किसानों को नहीं मिल पाया। इसलिए जब वो राहुल जो चुनाव नतीजों के बाद अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मानते हैं कि "कर्जमाफी किसानों की समस्या का सही समाधान नहीं है", वो ही राहुल अब यह कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री को तब तक सोने नहीं देंगे जब तक वह किसानों का कर्जा माफ नहीं कर देते, तो उनके इस कथन से नकारात्मक राजनीति की दुर्गंध आती है।कहीं वो इन तीन प्रदेशों में कांग्रेस द्वारा किए गए कर्जमाफी का ठीकरा केंद्र के मत्थे तो नहीं मढ़ना चाहते?

राजनैतिक दल किसानों की कर्जमाफी की बात करते हैं

कुछ भी हो,इस प्रकार की बयान बाजी से वे केवल देश की भोली भाली जनता की अज्ञानता का लाभ उठाकर अपने तत्कालिक राजनैतिक स्वार्थ को हासिल करने का लक्ष्य रखते हैं न कि किसानों की समस्या को सुलझाने का लक्ष्य। समझने वाली बात यह भी है कि दरअसल जब राजनैतिक दल किसानों की कर्जमाफी की बात करते हैं, तो वे किसानों की नहीं अपनी बात कर रहे होते हैं। उनका लक्ष्य किसानों की समस्या का हल नहीं अपने वोटों की समस्या का हल होता है। उनकी मंज़िल किसानों की खुशहाली सुनिश्चित करना नहीं अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित करना होता है।

भला बुरा क्या समझे,क्या जाने क्या चाहे ?

यह बहुत ही खेद का विषय है कि आज हर राजनैतिक दल सत्ता चाहता है लेकिन इसे हासिल करने के लिए वो देश के लोकतंत्र का भी मज़ाक उड़ाने से नहीं हिचकता। जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था को देश की खुशाली और तरक्की का प्रतीक माना जाता था और जिस वोटर के हाथ सत्ता की चाबी होती थी, इन राजनैतिक पार्टियों की रस्साकस्सी ने उस लोकतंत्र और उसके नायक, एक आम आदमी, एक वोटर को आज केवल अपने हाथों की कठपुतली बनाकर छोड़ दिया है। क्योंकि वो इतना पढ़ा लिखा नहीं है, क्योंकि वो अपनी रोज़ी रोटी से आगे की सोच ही नहीं पाता, क्योंकि वो गरीब है, क्योंकि उसके दिन की शुरुआत पीने के लिए पानी की जुगाङ से शुरू होती है और उसकी सांझ दो रोटी की तलाश पर ढलती है, वो देश का भला बुरा क्या समझे,क्या जाने क्या चाहे ? वो किसान जो पूरे देश का पेट भरता है, जो कड़ी धूप हो या बारिश, सर्द बर्फीली हवाओं का मौसम हो या लू के थपेड़े, उसके दिन की शुरुआत कड़ी मेहनत से होती है लेकिन सांझ कांदा और सूखी रोटी से होती है।जो जी तोड़ मेहनत के बाद भी अपने परिवार की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की हर कोशिश में असफल हो जाता है वो देश की अर्थव्यवस्था के बारे में क्या जाने?

वादा और दावा

लेकिन देश के राजनैतिक दल जो चुनाव जीतकर देश चलाने का वादा और दावा दोनों करते हैं, वो तो देश और उसकी अर्थव्यवस्था का भला और बुरा दोनों समझते हैं! उसके बावजूद जब वे किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की बात करने की बजाए उन्हें कर्ज़ देने की बात करते हैं। जब ये राजनैतिक दल किसानों को इस कर्ज़ को लौटाने का सक्षम बनने की सोच देने के बजाए उसे माफ करके मुफ्तखोरी की संस्कृति को बढ़ावा देने की बात करते हैं तो स्पष्ट है कि ऐसा करके वे ना तो किसानों का सोचते हैं ना देश का। बल्कि वो इस प्रकार का लालच देकर किसानों को सत्ता तक पहुंचने का एक जरिया मात्र समझते हैं।सत्तासुख के लिए ये राजनैतिक दल देश की अर्थव्यवस्था और उसके भविष्य को भी ताक पर रख देते हैं। क्या राहुल गांधी के पास इस बात का जवाब है कि 2008 में कांग्रेस द्वारा देश भर में किसानों की कर्जमाफी के बावजूद 2018 में भी किसानों की स्थिति में कोई सुधार क्यों नहीं आया?

कर्जमाफी के बावजूद किसानों की आत्महत्या थम क्यों नहीं रहीं?

इसलिए बेहतर होता कि राहुल गांधी अपनी सोच का दायरा बढ़ाते, अपनी पार्टी से पहले देश का सोचते, अपने बयानों में परिपक्वता लाते, अब तक किसानों की नहीं,वोटों की सोच रहे थे, अब वोटों की नहीं किसानों की सोचें, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की सोचें क्योंकि उनकी इस प्रकार की गैर जिम्मेदार बयानबाजी से ना किसानों का फायदा होगा ना देश का। बल्कि अब भाजपा भी दबाव में आ गई है शायद इसीलिए भाजपा की असम सरकार ने किसानों के600 करोड़ रुपए का कर्ज माफ करने की घोषणा कर दी है और गुजरात की भाजपा सरकार ने ग्रामीण इलाकों में 6 लाख उपभोक्ताओं के सभी बकाया बिजली बिल माफ़ करने की घोषणा कर दी है।

अंततः देश को भी इसी दलदल में डुबो देंगे

सोचने वाली बात यह है कि इस प्रकार की जो परिपाटी शुरू हो गई है उससे देश पीछे ही जायेगा आगे नहीं। राजनैतिक दल तो इस दलसल में फंसते ही जायेंगे और अंततः देश को भी इसी दलदल में डुबो देंगे। अब भी समय है चुनाव आयोग स्थिति की गंभीरता का संज्ञान ले और चुनावों के दौरान इस प्रकार के वादों को रिश्वत देकर खरीदने की श्रेणी में लाकर गंभीर अपराध घोषित करे तथा ऐसी घोषणाओं को करने वाली पार्टी पर प्रतिबंध लगाए।

Comments
English summary
Farm loans of over 35 lakh farmers upto Rs. 2 lakh have been waived off which would be costing the state exchequer Rs. 35,000- 38,000 crore, but with MP’s rising debt it will not be a cakewalk for Congress.
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