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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव: जोगी के आने से दिलचस्प होगा त्रिकोणीय मुकाबला

By सुभाष रानडे, स्वतंत्र लेखक
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नई दिल्ली। जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें सर्वाधिक दिलचस्प मुकाबला होगा छत्तीसगढ़ में है। जहां अन्य राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी का मुख्य विपक्षी दल से सीधा मुकाबला है वहीं छत्तीसगढ़ में त्रिकोणीय चुनाव संघर्ष है। सत्तारूढ़ भाजपा के मुकाबले उसकी परंपरागत विरोधी कांग्रेस पार्टी तो है ही लेकिन कांग्रेस के बागी पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस भी सत्ता की दावेदार बनकर पेश हो रही है।

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छत्तीसगढ़ में दिलचस्प हुआ मुकाबला

छत्तीसगढ़ में दिलचस्प हुआ मुकाबला

आदिम जाति की परंपराओं को संजोकर रखे छत्तीसगढ़ में आधे से ज़्यादा आबादी आदिवासियों की है। बहुसंख्यक होने के बावजूद आदिवासी राजनीति में हाशिये पर ही रहे है। 90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 39 सीटें आरक्षित हैं। इसके अलावा सामान्य वर्ग के लिए 51 सीटें हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में हर वर्ग राजनीतिक दलों को अपनी ताकत का एहसास करा रहा है। आदिवासी समाज जहां एक ओर भाजपा से नाराज चल रहा है, तो वहीं कांग्रेस से भी वह खुश नहीं है। दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी भी अपने वर्ग के वोटबैंक को खींचने में लगी है। छत्तीसगढ़ की कुल आबादी 2 करोड़ 55 लाख 45 हजार 198 है। जातिगत जनगणना 2011 के मुताबिक छत्तीसगढ़ में हिन्दू 93.2 प्रतिशत, मुसलमान 2.01 प्रतिशत, ईसाई 1.92 प्रतिशत, सिक्ख 0.27 प्रतिशत, बौद्ध 0.27 प्रतिशत, जैन 0.24 प्रतिशत और अन्य जातियां 1.93 प्रतिशत हैं। जबकि ओबीसी 48 प्रतिशत, एसटी 32 प्रतिशत, एससी 10 से 12 प्रतिशत, सामान्य वर्ग 8 से 10 प्रतिशत हैं।

2013 में कांग्रेस का 43.33 फीसदी वोट शेयर

2013 में कांग्रेस का 43.33 फीसदी वोट शेयर

2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 43.33 फीसदी वोट शेयर के साथ 39 सीटें जीती थीं और भाजपा ने 54.44 फीसदी वोट शेयर के साथ 49 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी। दूसरी तरफ, बसपा ने साल 2013 के चुनाव में सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे और उसे महज एक सीट ही हाथ लगी थी। उसका वोट शेयर 4.27 फीसदी रहा था। 18 सालों में छत्तीसगढ़ ने बहुत से उतार-चढ़ाव देखे हैं चाहे वह सामाजिक हों या राजनीतिक, लेकिन इन सभी के बावजूद भाजपा गत 15 सालों से सत्ता पर काबिज होने में सफल रही और डॉक्टर रमन सिंह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहे। छत्तीसगढ़ में रमन सरकार का तीसरा कार्यकाल, जो आगामी नवंबर में पूरा हो जाएगा, राजनीतिक झंझवतों से घिरा रहा है। जिन चुनौतियों का सामना पार्टी एवं सरकार को इस बार करना पड़ रहा है। वैसी चुनौतियां पिछले चुनाव के दौरान भी मौजूद थीं लेकिन वे इतनी उग्र नहीं थीं। सत्ता विरोधी लहर के तेज प्रवाह के साथ-साथ प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का पुनर्जीवित होना, उसके धारदार हमले, संगठन की सक्रियता, नेताओं व कार्यकर्ताओं की एकजुटता तो अपनी जगह है ही, बड़ी वजह है विभिन्न मोर्चों पर राज्य सरकार की नाकामी एवं जन असंतोष का विस्फोट। कम से कम गत दो वर्षों से सत्ता एवं संगठन को विभिन्न जनआंदोलनों का सामना करना पड़ा है। जिन्हें ऐन-केन प्रकारेण दबाने में सरकार को सफलता जरुर मिली लेकिन राख के नीचे चिंगारियां धधकती रही है। चावल कांड और सीडी कांड में भी रमन सिंह सरकार की खासी बदनामी हुई है।

बीजेपी ने फिर जताया रमन सिंह पर भरोसा

बीजेपी ने फिर जताया रमन सिंह पर भरोसा

इन सत्ताविरोधी कारकों के बावजूद भाजपा फिर एक बार रमन सिंह पर ही इसलिए दांव लगा रही है कि उसके पास उनके अलावा कोई दूसरा चेहरा नहीं है जिसकी पहचान सरगुजा से लेकर बस्तर तक हो। लगातार चौथी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा ने जहां एक ओर अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है, वही मुख्यमंत्री ने भी लोकलुभावन घोषणाओं की झड़ी लगा दी है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्य के सरकारी कॉलेजों, विश्विद्यालयों और शत प्रतिशत अनुदान प्राप्त अशासकीय कॉलेजों के शिक्षकों के लिए सातवें वेतनमान की घोषणा कर दी है। शिक्षकों को एक जनवरी 2016 से सातवें वेतनमान के अंतर्गत यूजीसी वेतनमान देने का ऐलान किया गया है। चुनाव से पहले सरकार 55 लाख महिलाओं और स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं को स्मार्ट फोन देगी। मुख्यमंत्री अटल विकास यात्रा के जरिए पूरे राज्य में अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं।

कांग्रेस को एक बार फिर सत्ता वापसी की उम्मीद

कांग्रेस को एक बार फिर सत्ता वापसी की उम्मीद

कांग्रेस एक बार फिर सत्ता वापसी की उम्मीद लगा रही है और रमन सिंह के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। कभी छत्तीसगढ़ को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था। इसमे कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस की जड़े यहां बेहद मजबूत है और बहुत ज्यादा प्रयास किए बिना यहां पार्टी को अच्छे वोट मिलते रहे हैं। इस वक्त कांग्रेस के साथ सबसे अच्छी बात ये दिख रही है कि वह एकाकार में है, संगठित है। अजित जोगी के बाहर होने के बाद कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसकी प्रदेशव्यापी लोकप्रियता हो लेकिन भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, चरणदास महंत, सत्यनारायण शर्मा, मोहम्मद अकबर, धनेंद्र साहू, रविंद्र चौबे जैसे वरिष्ठ नेता अपने-अपने इलाकों में खासा प्रभाव रखते हैं। कांग्रेस पार्टी ने ऐलान कर दिया है कि प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस का प्रयास है कि उसके सभी बड़े नेता चुनाव लड़ें ताकि ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल कर सरकार बनाई जा सके। कांग्रेस ने प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से 35 सीटों पर नाम तय कर दिये हैं और उम्मीदवारों को चुनावी तैयारी करने के निर्देश दे दिये हैं। बाकी सीटों पर तीन-तीन नामों का पैनल बनाकर स्क्रीनिंग कमेटी को भेजने का निर्णय किया गया है। कांग्रेस की योजना कुछ सांसदों को भी विधानसभा चुनाव लड़वाने की है। कांग्रेस ने टिकट वितरण, चुनाव प्रचार, घोषणापत्र और सत्ता पक्ष को घेरने के लिए विशेष रणनीति बनाई है। इसके साथ ही चुनावों से पहले राहुल गांधी की 20 से ज्यादा रैलियां कराने की योजना बनाई जा रही है।

जोगी की पार्टी का बीएसपी से गठबंधन

जोगी की पार्टी का बीएसपी से गठबंधन

उधर पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी की छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस प्रदेश में तीसरे विकल्प के तौर पर उभरने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है कि जोगी ने चुनाव से पहले मायावती की पार्टी बीएसपी के साथ गठबंधन कर लिया है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और राज्य के अन्य छोटे दलों को साथ लेकर मतदाताओं के सामने गैरभाजपाई-गैरकांग्रेसी विकल्प पेश किया जा सके। मायावती को लग रहा है कि कांग्रेस के साथ जाने में उनके हिस्से में कम सीटें आएंगी। इससे पार्टी का नुकसान हो सकता है। इसके बाद ही बीएसपी ने अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन का फैसला लिया है।

अनुसूचित जाति, जनजाति के मतदाताओं पर जोगी का खासा प्रभाव

अनुसूचित जाति, जनजाति के मतदाताओं पर जोगी का खासा प्रभाव

जोगी की मौजूदगी भले ही कांग्रेस के प्रतिबद्ध वोटों में सेंध लगाए, पर यह भी सच है कि उससे भाजपा के वोट भी बंटेंगे। अनुसूचित जाति, जनजाति के मतदाताओं पर जोगी का खासा प्रभाव है। भाजपा इसी बात से चिंतित है कि मौजूदा समय में अनुसूचित जाति की सीटों पर वह अपने वर्चस्व को कैसे बचाए रखें। वर्तमान में इस वर्ग के लिए आरक्षित 10 में से 9 सीटें भाजपा के कब्जे में है। इन सीटों पर इसलिए भाजपा का समूचा ध्यान सरकार के पक्ष में वातावरण बनाने, विकास कार्यों को तीव्र करने, जनता को उसका अहसास कराने तथा जन संगठनों की जायज मांगों पर त्वरित निर्णय लेने में है। इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि चुनाव आचार संहिता लागू होने से पूर्व सरकार कुछ ऐसे कदम उठा सकती है जो उसकी दृष्टि से सत्ता कायम रखने लाभकारी सिद्ध होंगे।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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English summary
Chhattisgarh assembly elections 2018: Ajit Jogi entry in alliance with Mayawati will be Intresting
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