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जिन्होंने अपने नाम के आगे नहीं लगाया चौकीदार, उनकी भी आवाज सुनेगा कोई?

By प्रेम कुमार
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नई दिल्ली। एक होड़ लगी हुई है। ट्विटर हैंडल पर अपने नाम के आगे 'चौकीदार’ लिखने की। यह होड़ नरेंद्र मोदी समर्थकों में है, बीजेपी के कार्यकर्ताओं और नेताओं में है और इसका असर मतदाताओं पर भी पड़ा है। मगर, मतदाताओं पर पड़े असर को समझने के लिए सिर्फ यह देखना काफी नहीं है कि कितने लोगों ने अपने नाम के आगे ट्विटर पर 'चौकीदार’ लिखा है। यह आंकड़ा अधिक महत्वपूर्ण होगा कि कितने लोगों ने इसकी अनदेखी की है।

ट्विटर पर 2.5 फीसदी मतदाता

ट्विटर पर 2.5 फीसदी मतदाता

देश में ट्विटर का इस्तेमाल करने वालों की संख्या फरवरी 2019 में 2 करोड़ 30 लाख से कुछ ज्यादा थी। अगर फेक ट्विटर हैंडल की बात को चर्चा में न रखें तो भी यह संख्या भारत के कुल मतदाताओं की महज 2.5 फीसदी ही है। इसमें भी कितने फीसदी लोगों ने अपने नाम के आगे ‘चौकीदार' लिखाया है यह महत्वपूर्ण आंकड़ा होगा। रैंडम तरीके से देखें तो यह आंकड़ा 10 में तीन के करीब होता है। यह व्यक्ति-व्यक्ति के सम्पर्क के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। किसी के लिए यह आंकड़ा 10 में 4, 5 भी हो। फिर भी किसी भी सूरत में यह नहीं कहा जा सकता कि हर दूसरे व्यक्ति ने अपने ट्विटर हैंडल पर अपने नाम के आगे ‘चौकीदार' लिख लिया हो।

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मुहिम से दूर है जो मौन, उनकी आवाज़ उठाएगा कौन?

मुहिम से दूर है जो मौन, उनकी आवाज़ उठाएगा कौन?

सवाल ये है कि जो लोग इस मुहिम का हिस्सा नहीं बने हैं उनकी संख्या क्या कुछ बोलती नहीं है? यह सच है कि यह संख्या शोर नहीं करती, लेकिन बोलती जरूर है। सुनने वाले इसे सुन भी सकते हैं। मगर, ऐसी आवाज़ जो खुद मौन रहकर बोल रही हो उसके सुर के साथ सुर कौन मिलाए। ऐसी संख्या के एकाधिक संदेश का ढिंढोरा कौन पीटे? यही कारण है कि मौन प्रतिक्रिया किसी अभियान का हिस्सा नहीं हुआ करतीं। एक अभियान तो बस एक संदेश लेकर चलता है लेकिन जो संदेश अभियानों से परे होते हैं उनमें एक नहीं कई संदेश होते हैं। आप देखें अगर किसी ने अपने नाम के आगे ‘ चौकीदार' लिख दिया तो उसका मतलब हुआ कि वह नरेंद्र मोदी समर्थक है और उनके अभियान का हिस्सा बनना चाहता है। लेकिन जिन्होंने ऐसा नहीं किया क्या वे नरेंद्र मोदी विरोधी हैं? अक्षरश: ऐसा भी नहीं है। ऐसे लोगों में तीन तरह के लोग हो सकते हैं।

एक, जिन्हें ऐसे अभियानों की परवाह नहीं दूसरा, जिन्हें इस अभियान से नहीं जुड़ना है, तीसरा, जो इस अभियान के विरोधी हैं। पहले किस्म के लोग कोई प्रतिक्रिया नहीं देते। दूसरे किस्म के लोग प्रतिक्रिया दें, ऐसा जरूरी नहीं है। तीसरे किस्म के लोग निश्चित रूप से प्रतिक्रिया देंगे। अब यह बात निश्चित है कि अभियान के साथ रहने वाले लोग अधिक विजिबल होते हैं और उनकी संख्या भी इस अभियान का विरोध करने वालों से अधिक होती है। यही कारण है कि अभियान चलाना हमेशा परिणाम देता है। जब राहुल गांधी ने ‘चौकीदार चोर है' का नारा दिया, तो यह नारा परवान चढ़ा। मगर, यह नारा अभियान नहीं बना। अगर यह नारा अभियान बन जाता तो इसी नारे से जोड़कर अपने नाम के आगे ‘चौकीदार' लिखने का अभियान चलाने की हिम्मत नरेंद्र मोदी में नहीं आ सकती थी। बाजी पलट चुकी है। ‘चौकीदार चोर है' को जोरदार तरीके से ‘चौकीदार' अभियान के सामने खड़ा करना ही कांग्रेस के लिए एकमात्र रास्ता है। इस हिसाब से देखें तो प्रियंका गांधी ने ‘चौकीदार' पर नये सिरे से बहस छेड़ने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि बड़े लोगों के घर चौकीदार होते हैं, आम मजदूर, किसानों के घर चौकीदार नहीं होते। एक ट्विटर हैंडल पर मजेदार प्रतिक्रिया देखने को मिली। मैं फकीर हूं, मैं चायवाला हूं, मैं मां गंगा का बेटा हूं, मैं मजदूर हूं, मैं स्वयंसेवक हूं, मैं चौकीदार हूं..मगर, ‘मैं प्रधानमंत्री हूं' भी कभी नरेंद्र मोदी बोलेंगे?

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ज़िम्मेदारी की टोपी ट्रांसफर

ज़िम्मेदारी की टोपी ट्रांसफर

‘चौकीदार चोर है' का जवाब ‘मैं चौकीदार हूं' क्या हो सकता है? क्या होना चाहिए? इसका मतलब साफ तौर पर ये है कि जो हूं सो हूं, क्या कर लोगे? जब नरेंद्र मोदी ने खुद को ‘देश का चौकीदार' बताया था, तब ये नहीं कहा था कि इस हर नागरिक देश का चौकीदार है। हर नागरिक की क्या उतनी ही जिम्मेदारी है जितनी प्रधानमंत्री की है? अगर नहीं, तो इस वक्त ज़िम्मेदारी की टोपी ट्रांसफर क्यों कर रहे हैं नरेंद्र मोदी? चौकीदारी का जिम्मा तो पीएम मोदी ने लिया था। अब यही जिम्मा समर्थकों की ओर क्यों सरका रहे हैं पीएम मोदी? मौन तो वे लोग भी हैं जिन्होंने अपने नाम के आगे ‘चौकीदार' लिख डाला है। मगर, उनका मौन शोर नहीं कर रहा। उसे सुनने वाला कोई नहीं है। नाम के आगे ‘चौकीदार' लिखे जाने की आवाज़ तो सुनाई देती है लेकिन उसी ‘चौकीदार' की बाकी आवाज़ दबकर रह जाती है। क्या ऐसे चौकीदार को देश में घटते रोज़गार की चिन्ता नहीं, पर्यावरण और सामाजिक सुरक्षा की चिन्ता नहीं, किसानों और गरीबों की चिन्ता नहीं? अगर है, तो क्या कभी कोई प्रतिक्रिया ‘चौकीदार' बने वफादारों के ट्विटर हैंडल से भी निकलेगी?

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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English summary
bjp narendra modi mai bhi chaukidar campaign
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