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शाह की शह पर और उग्र होंगे ट्रोलवीर

By सुभाष रानडे, स्वतंत्र लेखक
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नई दिल्ली। बोतल से बाहर निकालने के बाद भूत किसकी गर्दन पर सवार होगा, यह कहा नहीं जा सकता। अब भाजपा को यह हकीकत समझ में आ गई है। पिछले महीनेभर में अफवाहें फैलने से नौ लोग मारे गए और अब मोदी सरकार व्हॉट्सएप कंपनी को अफवाहों पर रोक लगाने का आदेश दे रही हैं। इस कंपनी ने हाथ खड़े कर दिए हैं। उनके लिए अफवाहों पर रोक लगाना संभव नहीं। दरअसल यह मामला अब मोदी सरकार और भाजपा के हाथ से निकल गया है। राज्य सरकारों को अफवाह फ़ैलाने वालों पर नजर रखने का निर्देश देकर केंद्र सरकार ने हाथ झटक लिए हैं। अब सवाल यह है कि अफवाहों के इस भूत को कौन बोतल में बंद करेगा।

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पिछले महीने दिल्ली स्थित भाजपा के मुख्यालय में पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने सोशल मिडिया में भाजपा के लिए लड़ने वाले आईटी सेल के ट्रोलवीरों का एक बड़ा सम्मलेन आहूत किया था। इस सम्मेलन में अमित शाह ने इन वीरों का हौसला बढ़ाने वाला भाषण किया था। अपने पूरे भाषण में उन्होंने अफवाहों को रोकने, फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने और बलात्कार की धमकियां देना बंद करने के लिए नहीं कहा। इसके उलट उन्होंने इन ट्रोलवीरों की पीठ थपथपाई। अब कहा जा रहा है कि अफवाहें फैलाकर दंगा भड़काना देशद्रोह माना जाएगा। अवैध कृत्य नियंत्रण कानून के तहत कार्रवाई की चेतावनी दी जा रही है। इस कानून के तहत कार्रवाई करना आसान नहीं है। इसके लिए ठोस सबूत चाहिए। क्या भाजपा शासित राज्य सरकारें ऐसे सबूत जुटाएंगी? या यह काम केंद्र सरकार करेगी?

हाल ही में झारखण्ड में अफवाह फैलाकर हिंसा करने वाले जब जमानत पर छूटे तो उनका एक केंद्रीय मंत्री ने फूलमालाओं से स्वागत किया। यह करने के बाद भी मंत्रीजी कहते है कि वह कानून का हमेशा सम्मान करते रहे हैं। यह किस स्तर की संवेदनशीलता है? यदि केंद्रीय मंत्री ही अफवाहखोर हत्यारों को हार पहनाएंगे तो अफवाह फ़ैलाने वालों तक कौनसा सदेश पहुंचेगा? केंद्रीय गृह मंत्रालय और आईटी मंत्रालय अफवाहों पर अंकुश लगाने की डींगे किसके दम पर हांक रहे हैं?

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सोशल मिडिया पर किसी का नियंत्रण नहीं है। उसे नियंत्रित किया भी नहीं जा सकता। यह माध्यम दोधारी तलवार की तरह हैं। इसका उपयोग सकारात्मक भी हो सकता है और इस पर अफवाहें फैलाकर लोगों की जान भी ली जा सकती हैं। राजनितिक विरोधियों के खिलाफ इस हथियार का चालाकी से इस्तेमाल किया जा रहा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया के दुरुपयोग के खिलाफ अभी तक एक शब्द भी नहीं बोले। लगता है भाजपा के ये ट्रोलवीर सिर्फ मोदी-शाह जोड़ी के प्रति निष्ठावान है। अन्यथा वे विदेशमंत्री सुषमा स्वराज के खिलाफ मोर्चा नहीं खोलते। चार वर्ष पहिले की और आज की सुषमा स्वराज में काफी फर्क है। इसकी दो ख़ास वजह हैं। पहिली यह कि पूरा विदेश मंत्रालय मोदी और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल चलाते हैं। विदेशमंत्री के रूप में सुषमा स्वराज के पास कोई ख़ास काम ही नहीं है और दूसरी यह कि अब उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता।

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इसलिए वे सिर्फ वही काम करती हैं जो उनके कार्यक्षेत्र में हो, बशर्ते उसमें 'मोदीनीति' आड़े न आए। सोशल मीडिया के जरिए लोग उनसे संपर्क साधते हैं। वे तत्परता से उनके काम करती हैं। मोदी मंत्रिमंडल में अपनी अलग पहचान कोई कायम रख नहीं पाया, इसके अपवाद सिर्फ सुषमा और नितिन गडकरी हैं। इन दोनों ने अपने काम से अपनी स्वतंत्र पहचान कायम रखी हैं। गडकरी आरएसएस के ख़ास लोगों में हैं लेकिन इस मामले में सुषमा का पक्ष कमजोर हैं। इसलिए उनको निशाना बनाना मोदी-शाह के ट्रोलवीरों के लिए आसान रहा है।

सुषमा ने अंतरधर्मीय विवाह करने वाले दंपति का समर्थन किया और पासपोर्ट दफ्तर के अधिकारी का तबादला किया। लव जिहाद मानने वाले ट्रोलवीर इससे भड़क उठे और उन्होंने आक्रमण शुरू किया। उन्हें यह होश भी नहीं रहा कि वे अपने ही मंत्री के विरुद्ध हमलावर हो रहे हैं। इससे कई भाजपा नेताओं को झटका लगा लेकिन उनमें से किसी के पास भी खुलकर बोलने का साहस न होने से वे खामोश रहे। उन्हें भय था कि सुषमा के समर्थन में बोलने का मतलब मोदी-विरोध माना जाएगा। ये नेता जानते हैं कि ऐसे वक्त में जब लोकसभा चुनाव निकट है, मोदी की वक्रदृष्टि उन्हें महंगी पड़ सकती हैं। जहां जम्मू-कश्मीर में पीडीपी से समर्थन वापस लेने का फैसला गृहमंत्री राजनाथ सिंह की गैरजानकारी में होता हो वहां अन्य मंत्रियों की हैसियत क्या होगी, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन सुषमा , राजनाथ नहीं है। जो साहस राजनाथ नहीं दिखा पाए, वह सुषमा ने दिखाया। सुषमा ने इन ट्रोलवीरों से सीधे मुकाबला किया।

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मोदी को सोशल मीडिया की ताकत बराक ओबामा के कारण समझ में आई। ओबामा ने इस ताकत का उपयोग कर अमेरिकी युवाओं को परिवर्तन के लिए प्रेरित किया; लेकिन ऐसा करते हुए उसका इस्तेमाल घातक कृत्यों के लिए नहीं होने दिया। इसके विपरीत डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी गोरों में राष्ट्रवाद का भूत सोशल मीडिया के माध्यम से ही जगाया। उसका उन्होंने सत्ता हासिल करने के लिए लाभ उठाया। मोदी का राष्ट्रवाद अल्पसंख्यकों के विरोध में हिन्दुओं को गोलबंद करने का है। इसीलिए हिन्दू लड़की का मुस्लिम युवक से शादी करना इनके ट्रोलवीरों को रास नहीं आया। सुषमा स्वराज ने उत्तरप्रदेश के अंतरधर्मीय जोड़े का समर्थन कर भाजपा के हिन्दू राष्ट्रवाद की उपेक्षा की है।

पिछले चार साल में सोशल मीडिया से विद्वेष का दूषित वातावरण बनाया गया और यही व्हॉट्सअ‍ॅप से फैलाई जा रही अफवाहों की वजह बना। विद्वेष के इस भूत ने अब विकराल रूप धारण किया है। गलती सोशल मीडिया की नहीं बल्कि उसका उपयोग करने वालों की है। उसका दुरूपयोग किया गया, क्योंकि ऐसा करने के लिए उनसे कहा गया। देश में कानून-व्यवस्था बनाए रखना सत्ताधारियों का प्राथमिक कर्तव्य है, लेकिन इसका पालन किया नहीं गया। यदि केंद्रीय मंत्रियों को ही ट्रोल किया जाता हो और प्रधानमंत्री ही इस बारे में मौन धारण करे तो उनमें और मनमोहन सिंह में क्या फर्क है।

भाजपा नेतृत्व को इस बात का अहसास हो चुका है कि सुषमा स्वराज के विरुद्ध मोर्चा खोलकर उसके सोशल मीडिया वीरों ने गलती की लेकिन लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इन वीरों की लगाम कसे जाने की कोई संभावना नहीं है। इन वीरों को सन्देश दिया गया है कि 'सुषमा अध्याय' भूल जाओ और अपने 'लक्ष्य' पर ध्यान केंद्रित करों। 'लक्ष्य' क्या है, यह सोशल मीडिया में अपनी तलवारें भांजकर खड़े ट्रोलवीर अच्छी तरह जानते है। इनकी तलवारों की धार और तेज होने की आशंका दिखाई देने लगी है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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English summary
bjp amit shah 2019 lok sabha elections trollers narendra modi Sushma Swaraj
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