अन्ना ने की है बड़ी गलती, लोकपाल के लिए मोदी सरकार पर नहीं दिखाए तेवर
नई दिल्ली। अन्ना हजारे का अनशन ख़त्म हो गया। 7 दिन तक 81 साल की उम्र में भी वे अनशन पर रहे। उनके जज्बे का आदर किया जाना चाहिए। राष्ट्र के हित में लोकपाल के लिए, किसानों के लिए उनका यह आंदोलन निस्वार्थ और गैर राजनीतिक है। ऐसे लोग कहां मिलते हैं।
अन्ना
ने
माना
राजनीति
में
हुआ
उनका
इस्तेमाल
अन्ना
हजारे
ने
2019
में
स्वीकार
किया
है
कि
2011
और
2014
में
चुनाव
जीतने
के
लिए
आम
आदमी
पार्टी
और
बीजेपी
ने
उनका
इस्तेमाल
किया।
राजनीति
में
इस्तेमाल
होना
अपने
हाथ
में
नहीं
होता।
पता
भी
नहीं
चलता
है
और
कोई
आपका
इस्तेमाल
कर
लेता
है।
अन्ना
हजारे
की
सादगी
को
राजनीति
ने
ठग
लिया,
तो
यह
उनकी
कमजोरी
नहीं
है।
इसे
राजनीति
की
चतुराई
कहा
जाना
चाहिए।
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क्यों कुन्द हुई अन्ना की धार?
अन्ना हजारे को यह बात सोचने की जरूरत है कि उनके आंदोलन की धार कुन्द क्यों हुई? जबकि, वास्तव में ऐसा लगता है कि अन्ना हजारे की पूछ बढ़ गयी है। अब वे 7 दिन आंदोलन करते हैं तो उनकी मांग मानने के लिए राज्य सरकार तैयार हो जाती है और केंद्र सरकार भी दूत भेज कर उन्हें मना लेती है। वे सरकार के भरोसे में भी आ जाते हैं। पहले जैसी जिद नहीं कर पाते। क्यों?
मोदी,
केजरीवाल,
ममता
को
अन्ना
ने
बख्श
दिया
अन्ना
हजारे
के
स्वभाव
के
अनुसार
यह
जिद
क्यों
नहीं
बनती
थी
कि
जब
तक
नरेंद्र
मोदी
सरकार
लोकपाल
नियुक्त
नहीं
कर
लेते
है,
वे
अनशन
करते
रहेंगे?
यही
जिद
वे
अरविन्द
केजरीवाल
सरकार
के
ख़िलाफ़
भी
लोकायुक्त
की
मांग
पर
कर
सकते
थे।
ममता
बनर्जी
के
ख़िलाफ़
भी
लोकायुक्त
कानून
को
कमजोर
बनाने
के
विरोध
में
वे
अनशन
पर
बैठ
सकते
थे।
रालेगण
सिद्धि
में
मंगलवार
को
ख़त्म
हुए
अनशन
से
बेहतर
परिणाम
उन्हें
मिल
सकते
थे।
मगर,
अन्ना
ने
ऐसे
मौके
बनाने
की
कोशिश
नहीं
की।
अब किसी के ख़िलाफ़ नहीं बोलते अन्ना
पहले और अब में सबसे बड़ा फर्क ये है कि अब अन्ना हजारे सत्ता के ख़िलाफ़ नहीं बोलते। वे साफ कर देते हैं कि उनका आंदोलन किसी राजनीतिक दल या सरकार के ख़िलाफ़ नहीं है। आखिर अनशन शुरू करने से पहले उन्हें ऐसी घोषणा क्यों करनी पड़ती है, "ये मेरा अनशन किसी व्यक्ति, पक्ष और पार्टी के खिलाफ में नहीं है। समाज और देश की भलाई के लिए बार-बार मैं आंदोलन करता आया हूं, उसी प्रकार का ये आंदोलन है।"
मोदी
सरकार
के
ख़िलाफ़
खड़ा
क्यों
नहीं
होना
चाहते
अन्ना?
ऐसी
घोषणा
के
पीछे
अन्ना
की
क्या
विवशता
हो
सकती
है।
एक
बात
जो
इस
घोषणा
में
साफ
तौर
पर
पढ़ी
जा
सकती
है
कि
अन्ना
को
वर्तमान
मोदी
सरकार
के
ख़िलाफ़
खड़ा
होना
गवारा
नहीं
है।
क्यों?
क्या
उन्हें
लगता
है
कि
यह
सरकार
उनके
आंदोलन
की
उपज
है?
नरेंद्र
मोदी
सरकार
अन्ना
आंदोलन
का
परिणाम
है,
यह
कहा
जा
सकता
है।
मगर,
अब
जबकि
खुद
अन्ना
मान
रहे
हैं
कि
उनका
राजनीतिक
इस्तेमाल
किया
गया
था
तो
इस
सरकार
के
लिए
लोकपाल
की
कीमत
पर
अन्ना
सहानुभूति
नहीं
रख
सकते।
यूपीए सरकार के ख़िलाफ साजिश का हथियार बन गये अन्ना?
अन्ना से यह गलती हुई है, हो रही है। वर्तमान मोदी सरकार को लोकपाल नहीं देने पर भी अपने आंदोलन के प्रकोप से बचाए रखने की वजह से कांग्रेस को यह मतलब निकालने का अधिकार मिल जाता है कि पूर्व में हुआ आंदोलन सिर्फ और सिर्फ यूपीए सरकार के ख़िलाफ़ साजिश का हिस्सा थी। खुद के इस्तेमाल होने की बात कहकर भी अन्ना की इसकी मानो पुष्टि ही कर रहे हैं।
अन्ना
से
अब
नहीं
डरती
सरकार
अन्ना
के
रूख
से
वर्तमान
सत्ता
का
डर
ख़त्म
हो
गया
है।
उन्हें
लगता
है
कि
वे
अन्ना
को
मना
ही
लेंगे।
अन्ना
को
हैंडल
करने
का
तरीका
भी
उन्होंने
सीख
लिया
है।
उन्हें
अनशन
करने
दिया
जाए।
उन्हें
मनाने
का
नाटक
पहले
दिन
से
हल्के
तरीके
से
जारी
रखें।
फिर
प्रयास
में
थोड़ी
गम्भीरता
लाएं।
और,
आखिर
में
उच्चस्तरीय
प्रयास
से
अन्ना
के
स्वाभिमान
को
इज्जत
देते
हुए
दिखें
और
उनकी
सारी
मांगें
मान
लें।
अन्ना
को
ऐसा
महसूस
हो
मानो
उनका
अनशन
सफल
हो
गया
हो।
...इसलिए अलग-थलग पड़ जाते हैं अन्ना
सरकार समर्थक वर्ग और पार्टियां दंतहीन विषहीन अनशन से डरने की जरूरत नहीं समझतीं। चूकि कांग्रेस के मन में अन्ना हजारे के लिए यह भावना है कि वे बीजेपी और आरएसएस की ओर से इस्तेमाल हुए, इसलिए कांग्रेस उनसे जुड़ना नहीं चाहती। क्षेत्रीय दलों की आकांक्षाएं राष्ट्रीय हो ही नहीं पाती हैं कि वह अन्ना आंदोलन को उस स्तर पर समर्थन दे। ऐसे में अन्ना हजारे अलग-थलग पड़ जाते हैं।
पहले
जैसे
नहीं
रह
गये
अन्ना
अब
अन्ना
कालाधन
लाने
की
बात
नहीं
करते,
भ्रष्टाचार
मिटाने
की
टाइम
लिमिट
नहीं
देते
और
न
ही
वह
अपने
आंदोलन
को
व्यापक
आधार
देने
की
कोशिश
करते
दिखते
हैं।
मन
में
कहीं
न
कहीं
ये
बात
रहती
है
कि
वर्तमान
सरकार
उनके
ही
आंदोलन
की
उपज
हैं।
यही
सॉफ्ट
कॉर्नर
अन्ना
हजारे
के
आंदोलन
की
दुश्मन
बन
गयी
है।
अब
अन्ना
पहले
वाले
अन्ना
नहीं
रह
गये।
पहले विफलता में भी जीत का भाव हुआ करता था
पहले आंदोलन विफल होने पर भी जीत का भाव नज़र आता था। आज आंदोलन के सफल होने पर भी अन्ना को जीत का भाव नज़र नहीं आता। वे कहते हैं भी हैं कि उन्हें चार साल से केवल और केवल झूठे भरोसे मिलते रहे। सवाल ये है कि कोई एक बार झूठ बोल सकता है, बार-बार नहीं। अन्ना हजारे से अगर कोई सरकार चार साल से झूठ बोल रही है, तो दोषी खुद अन्ना हजारे हैं। उन पर लोकपाल नहीं देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के विरोध में रामलीला मैदान आकर अनशन नहीं करने की शिकायत बनी रहेगी। आखिर अन्ना ने मोदी को अभयदान क्यों दिया?
(ये लेखक के निजी विचार हैं)