मोदी सरकार का आखिरी दांव: पढ़ें लागत पर डेढ़ गुना MSP का सियासी कैल्कुलेशन
नई दिल्ली। 2019 लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दल अपने-अपने तरकश के तीर पैने कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर से पिछड़े वोटों की डुगडुगी बजाकर खुद पीएम नरेंद्र मोदी तो चुनावी अभियान का शंखनाद भी कर चुके हैं। चूंकि बीजेपी सत्ताधारी दल है, ऐसे में सबसे कठिन चुनौती भी उसी के सामने हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से हर कोई एक ही सवाल पूछना चाहता है- क्या 2019 में भी चलेगी मोदी लहर? यह सवाल इसलिए है, क्योंकि 5 साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन अधूरे वादों की लंबी फेहरिस्त अभी बाकी है।
मोदी सरकार ने इसी सूची के एक वादा बुधवार को बाहर निकाला और ट्विटर पर कुछ यूं ऐलान किया- ''मुझे अत्यंत खुशी हो रही है कि किसान भाइयों-बहनों को सरकार ने लागत के 1.5 गुना MSP देने का जो वादा किया था, आज उसे पूरा किया गया है।'' दोराय नहीं कि मोदी सरकार का यह फैसला बड़ा है, लेकिन इसमें फंसा पेंच उससे भी ज्यादा बड़ा है।
मुझे अत्यंत खुशी हो रही है कि किसान भाइयों-बहनों को सरकार ने लागत के 1.5 गुना MSP देने का जो वादा किया था, आज उसे पूरा किया गया है। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इस बार ऐतिहासिक वृद्धि की गई है। सभी किसान भाइयों-बहनों को बधाई।
— Narendra Modi (@narendramodi) July 4, 2018
MSP के पीछे आंकड़ों का खेल समझ जाएगा किसान
पीएम मोदी ने लागत पर 1.5 गुना MSP का वादा तो निभा दिया, लेकिन किसान की समस्या इससे हल होती नहीं दिख रही है। यूपीए-2 में किसान के हाथ नहीं लगा और मोदी सरकार ने जो ऐलान अब किया है, वह कार्यकाल के अंतिम दिनों में जाकर किया है। अब देखिए कि आखिर किया क्या है? तो किया ये गया है कि जिस धान की उत्पादन लागत 2017-18 में 1117 आ रही थी, उसकी उत्पादन लागत मोदी सरकार ने 1166 आंकी है। मतलब महंगाई के इस दौर में किसान की लागत में सिर्फ 51 रुपए का इजाफा किया और इस पर डेढ़ गुना बढ़ाकर प्रति क्विंटल 200 रुपए की बढ़ोतरी कर दी गई। किसान को पिछले 10 साल से जिस धान के 1550 रुपए प्रति क्विंटल मिल रहे थे, अब एक दशक बाद 1750 रुपए मिलेंगे।
किसान को इस प्रकार से मिलना चाहिए था डेढ़ गुना समर्थन मूल्य
सच यह है कि किसान के लिए डेढ़ गुना बढ़ोतरी का मतलब है समर्थन मूल्य पर डेढ़ गुना बढ़ोतरी। उदाहरण के तौर पर किसान को 2017-2018 में प्रति क्विंटल धान की कीमत 1550 रुपए मिली, इस पर उसे डेढ़ गुना कीमत 3825 रुपए मिलनी चाहिए थे। इस हिसाब से देखें तो मोदी सरकार ने उसे दिया क्या, सिर्फ 1750 रुपए। मतलब उत्पादन लागत पर 50 फीसदी बढ़ाकर दी गई ये रकम अब भी किसान की जरूरत के हिसाब से 50 प्रतिशत कम है। सबकुछ निर्भर करता है कि सरकार उत्पादन लागत को किस प्रकार से आंक रही है, यदि वह सभी खर्चों को लागत मान ही नहीं रही तो किसान के साथ न्याय कैसे होगा, क्योंकि वह तो उस पैसे को खर्च कर ही रहा है।
2019 में क्षेत्रीय दल बनाएंगे किसानों की हालत को सबसे बड़ा मुद्दा
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह किसान वोटों को कैसे संभालती है। इक्का-दुक्का राज्यों को छोड़ दें तो किसान कभी बीजेपी का पारंपरिक वोटर नहीं रहा। 2014 में मोदी लहर के दौरान किसान का बीजेपी की ओर आकर्षण हुआ, लेकिन अब उसमें नाराजगी है। दूसरी ओर मोदी लहर में सबकुछ गंवा बैठे क्षेत्रीय दल बदला लेने को उतारू हैं। इन दलों की पकड़ किसानों तक काफी अच्छी है और वे किसानों को बीजेपी के खिलाफ करने में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहेंगे। ऐसे में यह देखना बेहद अहम रहेगा कि लागत पर समर्थन मूल्य बढ़ाने का बीजेपी का फार्मूला क्या 2019 में मोदी सरकार की वापसी करा सकेगा?