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हर तरफ बेशुमार आदमी..फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी

By राजीव ओझा
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नई दिल्ली। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में अर्थव्यवस्था और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन-डीईएसए) ने एक रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक, 2027 तक भारत की आबादी चीन से ज्यादा हो जाएगी। अगले आठ साल में भारत, चीन को पीछे छोड़ देगा। यानी भीड़ कई गुना बढ़ जाएगी। लेकिन अपने मोबाइल फोन में डूबी और सोशल मीडिया में उलझी इस बेकदर भीड़ को देख निदा फाजली की ये लाइन याद अती हैं ... हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी..फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी...आज के शहरों में ऑप्टिक फाइबर का तानाबाना मजबूत हो रहा लेकिन परिवार और समाज को जोड़ने वाला इमोशनल फाइबर कमजोर होता जा रहा।

इतने बेखबर कि पड़ोस की खबर नहीं

इतने बेखबर कि पड़ोस की खबर नहीं

हम इतने तनहा और आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं कि पड़ोस में कोई गुजर जाता और हमें खबर ही नहीं होती। ऐसी ख़बरें तो बार बार आ रही हैं। जैसे कुछ ही दिन पहले दिल्ली से एक खबर थी कि एक घर में 95 साल के बुजुर्ग और उनकी 79 वर्षीय बहन मरे पाए गए। दोनों ने शादी नहीं की थी। पड़ोसियों को तब पता चला जब घर से दुर्गन्ध आने लगी। इसके बाद उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से ऐसी ही एक और खबर थी जहां एक दम्पति करीब एक महीने पहले मर चुकी अपनी युवा बेटी की लाश के साथ रह रहे थे। पिछले साल की ही तो बात है नोएडा में एक जर्नलिस्ट बबिता बासु अपने फ्लैट में मरी पड़ी रहीं और बंगलुरु में रहने वाले उनके बेटे को तीन हफ्ते बाद पता चला। बेटा एक साल से मां से मिला नहीं था। ऐसी ही एक झकझोर देने वाली खबर आगरा से जनवरी 2017 में आई थी। एक जवान बेटी अपनी मां के कंकाल के साथ छह महीने से रह रही थी और बेटी की मौत के करीब बीस दिन बाद मकान मालिक को पता चला की मां-बेटी मर चुकी हैं। कितनी घटनाये गिनाई जाएँ। भीड़-भाड में रहते हुए भी इंसान इतना तनहा क्यों है। हम कैसे समाज में रह रहें हैं। कहने को तो हम 4जी, 5जी नेटवर्क में जी रहे। हर समय चैटिंग और मेसेजिंग में उलझे रहते लेकिन अपनों से बात किये या मिले सालों साल गुजर जाते। यह स्थिति बहुत चिंताजनक है। दरअसल यह इंसानों की नहीं रोबोट्स की बढ़ती आबादी है। इसको समझने के लिए कुछ घटनाओं का जिक्र थोड़ा विस्तार से जरूरी है।

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साल गुजर जाता पर कोई अपना मिलने नहीं आता

साल गुजर जाता पर कोई अपना मिलने नहीं आता

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है। मिर्ज़ापुर के हथिया फाटक निवासी दिलावर खान 2015 में चुनार से एसआई पद से सेवानिवृत्त हुए थे। वह मकान में अपनी पत्नी, पुत्री जीनत के साथ रहते थे। दो पुत्र अनवर हुसैन और आफताब हुसैन अलीगढ़ में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। बेटे तीन साल बाद घर आए तब खुलासा हुआ कि दरोगा और उसकी पत्नी एक महीने से मृत पड़ी बेटी के शव के साथ रह रहे थे। कहतें हैं रिटायर्ड दरोगा, उसकी पत्नी और मृत बेटी अर्ध विक्षिप्त थे। लेकिन सवाल उठता है कि तीन साल तक बेटे घर क्यों नहीं लौटे?

इसके कुछ दिनों बाद दिल्ली के भारत नगर के राणा प्रताप बाग स्थित एक घर में बुजुर्ग भाई-बहन मृत मिले। राजकुमारी (79) का शव कमरे में फर्श पर मिला, जबकि लकवे का शिकार बीमार भाई चमनलाल खोसला (95) का शव बरामदे में चारपाई पर मिला। पड़ोसियों ने बताया कि चमनलाल और उनकी बहन राजकुमारी पड़ोसियों से मिलते-जुलते नहीं थे। चमनलाल को पड़ोसियों ने पिछले सात माह से देखा तक नहीं था। राजकुमारी डाकघर से रिटायर्ड थीं, जबकि चमनलाल एलआईसी से रिटायर्ड थे। चमन का भाई व भतीजा फोन पर कभी कभार ही उनका हालचाल लेते रहते थे। रिश्तेदार हाल चाल लेने पहुंचे तो खुलासा हुआ कि करीब चार दिन पहले ही बहन उसके बाद भाई की मौत हो चुकी थी। क्यों दोनों वृद्ध भाई बहन एकाकी जीवन जीने को मजबूर थे?

...फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी

...फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी

बात 2017 की है। ताजमहल के शहर आगरा में बस्ती के बीचोबीच एक खंडहर सी अनजान कोठरी में छह महीने से मरी पड़ी अपनी मां के कंकाल के साथ रह रही एक लड़की भी मर गई लेकिन उसके 20 दिन बाद मकान मालिक को पता चला की घर में माँ-बेटी की लाश पड़ी है। वह कंकाल एक करोड़पति परिवार की बेटी और एक अरबपति परिवार की बहू का था। कंकाल 70 साल की विमला अग्रवाल का था और 20 दिन से पड़ी लाश उनकी बेटी वीना की थी। लोग बताते हैं विमला के पिता गोपाल दास अग्रवाल की गिनती अपने जमाने के बड़े सेठों में होती थी। आगरा रावतपाड़ा में आलीशान मकान था उनका। उनका विवाह इलाहाबाद के बेहद प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। पति कैलाश चंद बड़े गल्ला व्यापारी थे। जेठ बालमुकुंद इलाहाबाद के सिरसा नगर पंचायत के चार बार चेयरमैन रहे। उनके बाद भतीजे भानू प्रकाश दो बार चेयरमैन रहे। यह जानकारी उनके दूसरे भतीजे एवं बाल मुकुंद के बेटे श्यामकांत अग्रवाल ने दी थी।

विमला की शादी 1955 में हुई थी। ससुराल इलाहाबाद के मेजा में था। भवन पीली कोठी के नाम से जाना जाता है। तीन साल बाद ही उनके पति कैलाश चंद का बीमारी से निधन हो गया। उनकी एक ही बेटी थी वीना। उसे लेकर विमला आगरा आ गईं। उन्होंने ससुराल में आना जाना भी नहीं रखा। विमला की ससुराल और मायका भी सम्पन्न था। लेकिन उनकी जिंदगी आगरा के उस खँडहर से मकान में कटी जिसमें खाने का एक दाना तक न था, बिजली का कनेक्शन महीनों से कटा हुआ था। आखिर वो कौन सी वजह थी जिसमें दोनों इस हालत में पहुँच गईं। रिश्तेदारों ने बतया था वीना खूबसूरत और संस्कारी थी। उसे किसी डाक्टर से प्यार हो गया था। जो शादी का वादा कर आगे की पढ़ाई करने विदेश गया तो फिर कभी वीना से नहीं मिला और वीना उसका इंतजार करते करते मर गई। वीना की कहानी गुलजार की फिल्म मौसम से काफी कुछ मिलती जुलती लगती है। लेकिन विमला और वीना की दर्दनाक दास्तान फिल्मी नहीं समाज में एकाकीपन की सच्ची कहानी है। लेकिन ऐसी खबरें तूफान नहीं खड़ा करतीं। आजकल ज़माना छद्म मुद्दों पर हंगामा करने वालों का है, सोशन मीडिया पर मैनेज्ड लाइक्स और हिट्स का है। मन करे तो निदा फजली की ये लाइने पढ़ लीजिएगा..

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी
सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी

शहर जैसे-जैसे बड़ा होने लगता है तो ओप्टिकल फाइबर का तानाबाना फैलने लगता है और फैमिली, समाज और शहर को जोडऩे वाला इमोशनल फाइबर कमजोर पड़ने लगते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने सौ साल पहले किया था आगाह

स्वामी विवेकानंद ने सौ साल पहले किया था आगाह

समाज में जो स्थिति आज है उसका इशारा करीब सौ साल पहले ही स्वामी विवेकानंद ने न्यूयॉर्क में एक इंटरव्यू के दौरान किया था। तब उन्होंने कहा था हो सकता है हम अपनों के सम्पर्क में हों लेकिन उनसे जुड़ाव ख़त्म होता जा रहा।

क्या शहरों में ये फासले इतने बड़े हो जाते हैं कि अपनों के एग्जिस्टेंस को ही भुला दिया जाता है? यहां सवाल छोटे या बड़े शहर का नहीं है, सवाल हमारी परवरिश, संस्कारों और पर्सनॉलिटी का है। सवाल इसका है कि हमारी इमोशनल और सोशल बॉन्ड्स कितनी मजबूत हैं। स्कूलों में तो मॉरल वैल्यूज के बारे में पढ़ाया जाता है लेकिन हम इमोशनली कितने स्ट्रांग हैं ये तो हम परिवार में ही सीखते हैं। ये सबको सोचना होगा कि हमारे इर्दगिर्द के फासले इतने बड़े न हों जाएं कि इंसानों की बस्ती में सब अजनबी नजर आएं।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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Alone in crowd
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