पाकिस्तान के ऊपर से ना उड़कर मोदी ने दिया क्या संदेश?
नई दिल्ली। पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल न करने का फैसला कर भारत ने एक तरह से पड़ोसी को यह कड़ा संदेश देने की कोशिश की है कि जब तक वह आतंकवाद पर रोक नहीं लगाएगा, उसके साथ किसी तरह की नरमी बरती जाएगी। किर्गिस्तान की राजधानी बिशकेक में आयोजित होने वाले शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) समिट के लिए पीएम मोदी के एयरक्राफ्ट का पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र से होकर गुजरना बीते दिनों खबरों में था। बुधवार को भारत सरकार की ओर से पूरी तौर पर साफ कर दिया गया है कि प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से होकर नहीं जाएंगे बल्कि ओमान, ईरान और सेंट्रल एशियन देशों से होते हुए बिश्केक जाएंगे। हालांकि इस फैसले के पीछे कोई कारण नहीं बताया गया है, लेकिन एक तरह से स्पष्ट है कि भारत ने अपने रुख के अनुरूप यह फैसला लिया है।
आतंकी गतिविधियों में शामिल है पाकिस्तान
भारत का साफ नजरिया है कि पाकिस्तान भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता रहा है और पाकिस्तान की ओर से इस पर कोई कार्रवाईनहीं की जाती। इसके मद्देनजर भारत ने एक तरह से तय कर रखा है कि जब तक पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों को नहीं रोकता, उसके साथ सख्ती से ही पेश आया जाएगा। बिश्केक में 13-14 जून को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक होनी है। इसी बैठक में प्रधानमंत्री मोदी को हिस्सा लेना है। एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में हुई थी। भारत इस संगठन का 2005 से पर्यवेक्षक रहा है। इसके अलावा, भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके स्थायी सदस्य बने थे। उसके बाद से इस संगठन का महत्व बढ़ गया था।
सुषमा गई थीं पाकिस्तान होकर
इससे पहले 21 मई में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बिश्केक गई थीं। तब उन्होंने पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल किया था। ध्यान रखने की बात है कि उससे पहले ही पुलवामा में आतंकवादी हमला किया गया था। पुलवामा हमले के लिए जैश ए मोहम्मद को जिम्मेदार माना गया था। तब पाकिस्तान यह भी नहीं स्वीकार कर रहा था कि पुलवामा हमले में उसका कोई हाथ है। पुलवामा हमले को गंभीरता से लेते हुए भारत ने बालाकोट पर जवाबी हमला किया था। इसके बाद पाकिस्तान ने अपने हवाई क्षेत्र पूरी तरह बंद कर दिए थे। बाद में दक्षिणी पाकिस्तान से गुजरने वाले दो हवाई क्षेत्र खोले थे। जब सुषमा स्वराज ने पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल किया था, तब इस तरह की बातें भी शुरू हो गई थीं कि शायद पाकिस्तान के साथ संबंधों में कुछ नरमी आ रही है। हालांकि इसका कोई स्पष्ट संकेत तब भी नहीं मिल रहा था।
पाकिस्तान ने दी थी मंजूरी
प्रधानमंत्री मोदी के पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल को लेकर भी यही कहा जा रहा था कि उनकी ओर से ऐसा किया जा सकता है। इस आशय की खबरें भी थीं कि भारत की ओर से पाकिस्तान से इस पर फैसला लेने की बात की गई है। जानकारियां यहां तक आई थीं कि पाकिस्तान इसके लिए तैयार भी हो चुका है। पाकिस्तानी अधिकारियों की ओर से इसकी पुष्टि भी कर दी गई थी कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के अनुरोध को सैद्धांतिक रूप में मंजूरी दे दी है। यह भी कहा गया था कि प्रक्रियागत औपचारिकताएं पूरी कर लिए जाने के बाद भारत को इससे संबंधित फैसले के बारे में भी बता दिया जाएगा। असल में इमरान खान के प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद से पाकिस्तान वैश्विक जगत को इस तरह का संदेश देने की कोशिश करता रहा है कि वह भारत के साथ अच्छे संबंधों का हिमायती है और वह दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना चाहता है।
इमरान ने लिखी थी पिछले दिनों चिट्ठी
पाकिस्तानी अधिकारियों की ओर से यह उम्मीद भी जताई गई थी कि भारत पाकिस्तान के शांति वार्ता प्रस्ताव पर सकारात्मक रवैया अख्तियार करेगा। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हाल ही में एक पत्र लिखा गया था जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान को सभी मुद्दों के समाधान की जरूरत है। इस पत्र में यह उम्मीद भी जताई गई थी कि भारत इस ओर ध्यान देगा। इसके बावजूद पाकिस्तान की ओर से की जाने वाली गतिविधियां बताती हैं कि यह सब कुछ दिखावा के अलावा कुछ भी नहीं रहा है। पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल के मामलों को भी इसी तरह देखा जा रहा है। लेकिन भारत ऐसा कुछ भी नहीं होने देना चाहता जिससे इस तरह का संदेश जाए कि आतंकवाद पर उसके रुख में किसी तरह की नरमी आई है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहा है। इसके उलट उसकी ओर से लगातार दिखावा किया जा रहा है।
पाक विदेश मंत्री की भी आई चिट्ठी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा पद ग्रहण के मद्देनजर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच फोन पर वार्ता, पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का नए विदेश मंत्री एस जयशंकर को पत्र लिखना भले ही प्रोटोकॉल के रूप में देखा जाए, लेकिन इस सबके जरिये भी पाकिस्तान यही करता नजर आता है कि वह अच्छे संबंधों का पैरोकार है। बालाकोट के बाद के इमरान खान के वक्तव्य को इसी परिप्रेक्ष्य में दिखाने की कोशिश की गई थी। इस सबको ध्यान में रखते हुए ही इस आशय की बातें की जाने लगी थीं कि बिश्केक में दोनों प्रधानमंत्रियों की बातचीत हो सकती है। लेकिन उचित ही भारत की ओर से स्पष्ट कर दिया गया कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है। इमरान खान के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किसी तरह की द्विपक्षीय बैठक की कोई योजना नहीं है।
भारत का कड़ा रुख बरकरार
इस सबसे पूरी तरह साफ है कि भारत न केवल अपने कड़े रुख पर कायम है बल्कि पाकिस्तान के लिए भी उसका स्पष्ट संकेत है कि जब तक वह आतंकवाद खत्म करने पर काम नहीं करेगा, उसके साथ किसी भी तरह का रिश्ता संभव नहीं है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि पाकिस्तान के रवैये को लंबे समय तक बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हालांकि अभी भी इस तरह का विचार रखने वाले कम नहीं हैं, जिनका मानना है कि भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत रखी जानी चाहिए और शांति स्थापना के प्रयास किए जाने चाहिए। यह होता भी रहा है और कई बार चीजें कुछ आगे बढ़ती भी नजर आई हैं। लेकिन इसी बीच फिर कोई नई आतंकी घटना हो जाती है और सारे प्रयास रुक जाते हैं।
पुलवामा हमले ने खोली पाक की कलई
इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी ऐसी उम्मीदें जताई गई थीं कि अब शायद हालात में कुछ बदलाव आए, लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत। पुलवामा हमले ने साबित कर दिया कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आने वाला नहीं है। ऐसे में कोई यह उम्मीद कैसे कर सकता है कि पाकिस्तान कभी सुधरेगा। इसके बावजूद कुछ लोगों को लग ही सकता है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करते, तो शायद दुश्मनी के धुंध के बादल कुछ छंटते। ऐसा सोचने वालों का तर्क भी है कि पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर खुद मोदी ने तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने न सिर्फ शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था बल्कि बहुत गर्मजोशी से स्वागत कर यह संदेश देने की कोशिश की थी कि वह पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंधों के पक्षधर हैं। बाद में भी प्रधानमंत्री मोदी एक बार बिना पूर्व निश्चित कार्यक्रम के उनके घर गए थे। पर अब हालात काफी बदल चुके हैं जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता।