पश्चिम बंगाल चुनाव: असदुद्दीन ओवैसी मुसलमान युवाओं के एक तबके के लिए हीरो क्यों
ओवैसी मुर्शिदाबाद स्टेशन पर उतरे तो मुसलमान युवक, ''देखो-देखो कौन आया, शेर आया-शेर आया'' कहकर नारे लगाने लगे. ओवैसी ने बीबीसी से बताया कि उन्हें ये युवा शेर क्यों कहते हैं.
27 मार्च की सुबह. समय 5 बजकर 45 मिनट. हावड़ा स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर छह पर अचानक से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने दस्तक दी.
प्लेटफॉर्म पर कुछ मुस्लिम युवक गुलदस्ते लिए खड़े थे. प्लेटफॉर्म पर नारा गूँजा- 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया, शेर आया.'
ओवैसी प्लेटफॉर्म पर हावड़ा से मुर्शिदाबाद जाने वाली ट्रेन गणदेवता एक्सप्रेस के सी-1 कोच में चुपचाप जाकर बैठ गए. ट्रेन छह बजे चल पड़ी. उस कोच में ओवैसी के कई समर्थक भी मौजूद थे. एक शख़्स ऐसा भी था, जो आने-जाने की पूरी यात्रा में ओवैसी के बगल में बिना कुछ बोले चुपचाप बैठा रहा.
कुछ ही देर में ओवैसी ने मोबाइल पर क़ुरान पढ़ना शुरू किया. क़रीब 40 मिनट तक क़ुरान पढ़ते रहे. ओवैसी पश्चिम बंगाल चुनाव में पहली बार रैली करने मुर्शिदाबाद से सागरदीघि जा रहे थे.
क़ुरान पढ़ने के बाद उन्होंने रैली में भाषण के लिए तैयारी की. कई तरह के डेटा वाले दस्तावेज़ निकाले और पढ़ते वक़्त अंडरलाइन करते गए.
'शेर आया-शेर आया'
इसी दौरान अचानक से उनके समर्थक आते रहे और ओवैसी के साथ सेल्फ़ी लेते रहे. क़रीब 11 बजे ट्रेन सागरदीघि स्टेशन पहुँची. ओवैसी के इंतज़ार में स्टेशन पर कुछ युवक खड़े थे. उतरते ही उनके समर्थकों ने नारा लगाना शुरू किया- 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया, शेर आया. हैदराबाद का शेर आया, शेर-ए-हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद.'
स्टेशन से ओवैसी अपने समर्थकों के साथ सीधे होटल चले गए और ढाई बजे के क़रीब स्टेशन के पास सुरेंद्र नारायण हाई स्कूल के मैदान में मंच पर आए.
फिर वही नारा- 'हैदराबाद का शेर आया, शेर-ए-हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद.' मैदान में 10 हज़ार की भीड़ आ सकती थी लेकिन पूरा भरा नहीं था.
ओवैसी ने अपने भाषण की शुरुआत इस घोषणा से की कि उनकी पार्टी फ़िलहाल दो सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. ओवैसी की इस घोषणा का भीड़ ने तालियों की गूंज से स्वागत किया.
बंगाल की जनता को ग़ैर-बंगाली भाषी जो भी नेता संबोधित करने आ रहे हैं, उनके लिए भाषा बाधा बन रही है.
ग्रामीण इलाक़ों से आए लोग हिन्दी या उर्दू नहीं समझते हैं. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी इस बात को मानते हैं कि पीएम मोदी और अमित शाह जब हिन्दी में भाषण देते हैं तो मुश्किल से 20 फ़ीसदी लोग ही समझ पाते हैं.
'बताओ मुसलमानों तुम क्या गाय हो?'
ओवैसी अपनी रैली में ममता बनर्जी के एक पुराने बयान का हवाला देते हुए कहते हैं, ''जब बीजेपी ने 2019 में 18 सीटों पर जीत दर्ज की तो मीडिया वालों ने ममता से पूछा कि क्या मुसलमानों ने वोट नहीं दिया? इसके जवाब में ममता ने कहा कि गाय दूध देती है तो लात भी मारती है. बताओ मुसलमानों तुम क्या गाय हो? बताओ मुझे आज? तो ममता ने ऐसा क्यों कहा?''
ट्रेन में ओवैसी ने भाषण की जो तैयारी की थी वो भाषण के दौरान साफ़ झलक रही थी. ओवैसी मुसलमानों की स्थिति पर कई रिपोर्ट का हवाला दे रहे थे. डेटा बता रहे थे कि मुसलमान नौकरी, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं के मामले में कैसे सबसे पीछे हैं.
ओवैसी ने ये भी पूछा कि 30 फ़ीसदी मुसलमानों की आबादी के हिसाब विधानसभा में कम से कम 100 विधायक बनने चाहिए थे, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ? ओवैसी ने ये भी कहा कि ममता 40 मुसलमानों को भी विधायक बना देंगी तो विधानसभा में गूंगे की तरह रहेंगे जबकि उनकी पार्टी के दो विधायक भी शेर की तरह दहाड़ेंगे.
ओवैसी रैली ख़त्म करने के बाद उसी ट्रेन से कोलकाता के लिए रवाना हो गए. इसी यात्रा के दौरान ओवैसी ने बीबीसी हिन्दी से बंगाल चुनाव और मुसलमानों को लेकर विस्तार से बात की. पहला सवाल उनसे यही पूछा कि आप आम आदमी की तरह ट्रेन से क्यों जा रहे हैं?
ओवैसी ने इस सवाल के जवाब में कहा, ''इसमें क्या दिक़्क़त है? नेताओं को ट्रेन से चलना चाहिए. उन्हें 'लार्जर दैन लाइफ़' की तरह लोग लेते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. इसमें कोई बुरी बात नहीं है. जब चॉपर की ज़रूरत पड़ेगी तो चॉपर लेंगे.''
ओवैसी क्या ख़ुद को शेर मानते हैं?
आपके समर्थक आपको शेर कहते हैं क्या आप भी ख़ुद को शेर मानते हैं, ''मैंने उनके रोका कि भाई नारे मत लगाइए क्योंकि ये रेलवे स्टेशन है. सियासत में आवाम के जज़्बात होते हैं. लोग मोहब्बत में थोड़ा ज़्यादा बोल भी देते हैं. पुकारते हैं. भई मैं तो इंसान हूँ. ये लोगों की मोहब्बत है, जिसके लिए मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूँ.''
क्या शेर का मेटाफ़र (रूपक) अनायास है? या इसका भी एक अपना संदर्भ है? क्या ऐसा नहीं है कि आपके समर्थकों को लगता है कि उन्हें एक ऐसा नेता चाहिए जो उनके लिए हर हालात में डटकर खड़ा रहे?
इस सवाल के जवाब में ओवैसी कहते हैं, ''देखिए मैं अपनी पार्टी को स्थापित करने की कोशिश कर रहा हूँ. मेरी कोशिश यही है कि जो हाशिए पर हैं, ख़ासकर के मुसलमान, जिन्हें राजनीतिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, उन्हें उनके हक़ मिले. मुझे मौक़ा मिला है तो मैं कोशिश कर रहा हूँ.''
कभी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके समर्थक उन्हें शेर कहते थे. मोदी को उनके समर्थक गुजरात का शेर कहते थे. क्या यह मेटाफ़र शिफ़्ट किया गया है? ओवैसी कहते हैं ''आप इसे ज़्यादा खींच रहे हैं. सियासत में इस तरह के नारे लगते हैं. मैं लोगों की मोहब्बत का एहतराम करता हूँ. मैंने तो रोका भी कि इस तरह के नारे मत लगाओ. पार्टी अहम है शख़्सियत की कोई अहमियत नहीं है. लोगों की मोहब्बत है लेकिन हम इसे रोकते भी हैं.''
'ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी को मुबारकबाद दी थी'
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जनाब अली हुसैन से पूछा कि बंगाल के मुस्लिम युवक असदुद्दीन ओवैसी को शेर क्यों कह रहे हैं? इस सवाल के जवाब में हुसैन ने कहा कि ओवैसी एक सांप्रदायिक चेहरा हैं क्योंकि धर्म के आधार पर विभाजनकारी नीति को आगे बढ़ा रहे हैं.
हालाँकि हुसैन को लगता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सेक्युलर राजनीति कर रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के मज़बूत होने के कारण क्या हैं? आख़िर ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी सत्ता के क़रीब पहुँचती दिख रही है?
इस सवाल के जवाब में ओवैसी ने कहा, ''देखिए, बीजेपी और आरएसएस की ग्रोथ में हर किसी ने साथ दिया है. इसमें ममता भी शामिल हैं. जब गुजरात जल रहा था तो ममता बीजेपी के साथ ही थीं. बीजेपी जिन-जिन राज्यों में मज़बूत हुई, वहाँ की कथित सेक्युलर पार्टियों की अहम भूमिका रही है. वो चाहे असम, बिहार, तेलंगाना या कर्नाटक हो, सबमें देखेंगे तो ओपनिंग दिलवाने का काम कथित सेक्युलर पार्टियों ने किया है."
"यूपी में देख लीजिए. वहाँ भी सपा और बसपा साथ रही. बीजेपी ने बंगाल में कांग्रेस और लेफ़्ट के वोट को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया. बीजेपी से जब ये पार्टियाँ हारने लगती हैं और हम चुनाव लड़ने आते हैं तो हार की ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर डालने लगते हैं.''
ओवैसी कहते हैं, ''आपकी ग़लतियों से ही बीजेपी आगे बढ़ रही है. आप हार रहे हैं तो मुझे ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. ये हमें अछूत मानते हैं और बीजेपी से इन्हें गठबंधन करने में कोई दिक़्क़त नहीं है. 2002 में तो ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी को मुबारकबाद दिया था.''
ओवैसी को कब तक 'अछूत' समझेंगी पार्टियां?
कोलकाता रिसर्च ग्रुप पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के कैंपेन को लेकर सर्वे और रिसर्च कर रहा है.
इसके रिसर्चर प्रियंकर डे कहते हैं, ''ओवैसी का यह सवाल बिल्कुल ठीक है. आप अगर बीजेपी से गठबंधन कर सकती हैं और ओवैसी को अछूत मानती हैं तो आपकी राजनीति में कहीं न कहीं दिक़्क़त है. ग़ैर-बीजेपी दलों को लगता है कि ओवैसी के साथ गठबंधन करने से उनकी प्रासंगिकता बढ़ जाएगी. लेकिन मुझे नहीं लगता है कि इन्हें लंबे समय तक रोककर रखा जा सकता है."
"मुझे लगता है कि आने वाले सालों में फुरफुरा शरीफ़ के अब्बास सिद्दीक़ी मुसलमानों के एक बड़े नेता बनकर उभरेंगे और ममता के लिए मुसलमानों से वोट पाना आसान नहीं होगा.''
प्रियंकर डे कहते हैं कि बंगाल में जाति और धर्म के आधार पर नेतृत्व और प्रतिनिधित्व की बात नहीं होती थी लेकिन बीजेपी के आने से होने लगी है. प्रियंकर के मुताबिक़ इस पहचान की राजनीति के मोर्चे पर टीएमसी, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां तीनों घेरे में हैं.
बिहार में आरजेडी या कांग्रेस जैसी पार्टियां अब ओवैसी की उपेक्षा कर पाएंगी? पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी को बिहार में पाँच सीटों पर जीत मिली. इसके अलावा उन्हें और कई सीटों पर नुक़सान उठाना पड़ा. लेकिन क्या अब आने वाले वक़्त में आरजेडी या कांग्रेस ओवैसी को 'अछूत' समझेंगी?
ओवैसी कहते हैं, ''बिहार में आज भी आरजेडी के नेता अहंकार और ग़ुरूर में डूबे हुए हैं. बिहार में विधानसभा में डिप्टी स्पीकर चुनाव हुआ और उन्होंने हमारी पार्टी के विधायक दल के नेता और प्रदेश अध्यक्ष अख़्तरुल ईमान से बात तक नहीं की. आप पूछते तक नहीं उनसे. क्या उन्हें कहना नहीं चाहिए था इस चुनाव में मदद की कीजिए. जिनके पेट में दर्द है दवा उन्हें मांगनी होगी न.''
अगर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को सरकार बनाने में कुछ विधायक कम पड़ेंगे तो क्या ओवैसी उन्हें समर्थन देंगे? इस सवाल के जवाब में ओवैसी कहते हैं, ''ममता बनर्जी तो मुझे ग़द्दार कह रही हैं. मैं पैसे लेकर आता हूं और एजेंट हूं. भविष्य में क्या होगा इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता. अभी हमको पार्टी के उम्मीदवार को जिताना है.''
ओवैसी की विरोधाभासी बातें?
ओवैसी ने अपनी रैली में भाषण के दौरान कहा कि 'ममता आपसे मुझे प्रोटेक्शन नहीं चाहिए, मेरे लिए अल्लाह काफ़ी है. वही मुझे प्रोटेक्शन देगा.' लेकिन दूसरी तरफ़ ओवैसी ग़रीबी, अशिक्षा, भेदभाव और प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर ममता को घेर रहे थे. क्या ओवैसी की ये बातें विरोधाभासी नहीं हैं?
इस सवाल के जवाब में ओवैसी कहते हैं, ''किसी भी सरकार का ये कर्तव्य होता है कि अपने नागरिकों का ख़याल रखे. आप कोई अहसान नहीं कर रहे हैं. लेकिन आप जता रहे हैं कि मैं तुम्हारा प्रोटेक्टर हूँ तो ये ग़लत है. भई तुमने क्या प्रोटेक्शन दिया? यह तो आपका संवैधानिक फ़र्ज़ है जिसमें आप फेल हो चुके हैं."
"जेल में मुसलमानों को बंद किया जा रहा है. स्कूली शिक्षा में मुसलमान पिछड़ रहे हैं. मुर्शिदाबाद में आर्सेनिक पानी है. यहाँ कोई यूनिवर्सिटी नहीं है. इसीलिए मैंने कहा कि प्रोटेक्शन की बात तो छोड़ ही दीजिए कम से कम इंसाफ़ ही कर दीजिए. जब इंसाफ़ करेंगे हमें सुरक्षा मिल जाएगी. ममता रैली में बोलती हैं कि वो हिन्दू ब्राह्मण हैं. आप क्या संदेश दे रहे हैं 27 फ़ीसदी आबादी को.''
क़ुरान की सूरह और चंडी पाठ
पश्चिम बंगाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई रैलियाँ कर चुके हैं. योगी की रैली को देखें तो साफ़ लगता है कि कोई मुसलमान इस रैली में क्यों आएगा.
योगी की रैली में मुसलमानों की बात नहीं होती है और अगर होती भी है तो बांग्लादेशी घुसपैठ और पाकिस्तानी के रूप में. ओवैसी की रैली में भी क़ुरान की आयतें, इस्लामिक नारे और एक ही समुदाय की बात होती है. ऐसे में कोई मुसलमान योगी की रैली में क्यों जाएगा और कोई हिन्दू ओवैसी की रैली में ख़ुद को कैसे कनेक्ट करेगा?
इस सवाल के जवाब में ओवैसी कहते हैं, ''अभी जो मेरी सीट पर बाज़ू में बैठा था वो कौन था? क्या वो मुसलमान थे? ममता बनर्जी अगर चंडी पाठ पढ़ सकती हैं तो मैं क्या क़ुरान की सूरह नहीं पढ़ सकता हूँ? फ़र्क़ ये है कि योगी आदित्यनाथ एक समावेशी भारत की बात नहीं करते हैं बल्कि एकांगी भारत की बात करते हैं. बतौर मुख्यमंत्री उनका रिकॉर्ड सबके सामने है. उन्होंने तो ये भी कह दिया कि भारत को पूरे विश्व में धर्मनिरपेक्षता की वजह से उसका मुकाम नहीं मिल रहा है."
"मैं तो सरकार के डेटा से समानता की बात कर रहा हूँ. यह लोकतंत्र केवल वोट लेने के लिए नहीं है बल्कि प्रतिनिधित्व देने के लिए भी है. जब आप बीजेपी से बचाने और हमारी तरक़्क़ी की बात करते हैं तो हम ये बताते हैं कि तुम ग़लत कह रही हो. हर ज़िले में यूनिवर्सिटी है लेकिन मुर्शिदाबाद में क्यों नहीं है? सीएए आया लेकिन ममता के सांसद संसद से ग़ायब रहे.''
औवेसी पर उनके विरोधी दक्षिणपंथी सियासत करने का आरोप लगाते रहे हैं. कई लोगों का कहना है कि वो अल्पसंख्यकों की असुरक्षा की भावना का फ़ायदा उठाने की कोशिश करते हैं.
ओवैसी की रैली में सबसे ज़्यादा युवा होते हैं. महिलाएं और बुज़ुर्ग नहीं होते हैं. ऐसा क्यों है? ओवैसी कहते हैं, ''आने वाला कल नौजवानों का है. वो इस बात को महसूस कर रहे हैं कि आने वाले कल के लिए राजनीतिक नेतृत्व पैदा करना है. ये नहीं चाहते हैं कि उनकी किस्मत का फ़ैसला कोई और करे. हम बुज़ुर्गों को लाने की कोशिश करेंगे. दोपहर के कारण महिलाएं नहीं आईं.''
मुस्लिम नौजवान ओवैसी को प्यार क्यों करते हैं?
ओवैसी से मुस्लिम नौजवान प्यार क्यों करते हैं? इस सवाल के जवाब में सागरदीघि के मुस्लिम नौजवानों ने कहा कि एक ही बंदा है जो संसद शेर की तरह बात करता है नहीं तो कोई उनकी बातें नहीं करता है.
आसिफ़ शेख नाम के एक युवा ने कहा, ''मोदी सरकार में जहाँ बीजेपी के क़रीबी बनने की होड़ है. जहाँ कथित सेक्युलर पार्टियाँ भी दबाव में हैं. वैसे वक़्त में ओवैसी साहब हमारे लिए एकमात्र उम्मीद हैं. इस डर के माहौल में भी अगर कोई साहस और बहादुर के साथ संसद में बोलता है तो वो हमारे शेर ओवैसी साहब हैं. इंशाअल्लाह उन्हें अल्लाह आबाद रखे.''
मुस्लिम युवाओं के इस प्यार पर ओवैसी कहते हैं, ''मैं कोई बड़ा काम नहीं कर रहा हूँ. किसी भी सांसद का ये काम है कि संसद में जनता की बात करे. यह कोई बड़ा काम नहीं है.''
ओवैसी बीजेपी के उभार के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. वो कहते हैं, ''कांग्रेस और सीपीएम को वोट पूरी तरह से बीजेपी में शिफ्ट कर गया है. लेकिन इन्हें लगता है कि मेरी वजह से ये हार जाएंगे. ममता बनर्जी आज भी वही कह रही हैं. ख़ुद को हिन्दू ब्राह्मण बता रही हैं."
"ये अपनी जातीय प्रभुत्व का खुलकर इज़हार कर रही हैं. हमलोग अब इलेक्टेरोडेट ऑटोक्रेसी की तरफ़ बढ़ रहे हैं. दिल्ली से लेकर चेन्नई तक धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण किया जा रहा है. कमलनाथ ने राम मंदिर में चाँदी की ईंटें देने की बात कही. प्रियंका गाँधी ने राम मंदिर के फ़ैसले का स्वागत किया.''
राहुल गाँधी के बारे में ओवैसी ने कहा, ''वो पानी के समंदर के तैराक हैं. मैं तो सियासी समंदर का तैराक हूँ. वो पुशअप मारते हैं भाई. चलिए ठीक है. एक बात समझ लीजिए वंशवाद की राजनीति अब नहीं चलने वाली है. ये देश पैग़ाम दे चुका है. अगर मैं भी कहूँगा कि मेरे पिता ये थे और उनके आधार पर वोट दीजिए. तो लोग यही कहेंगे कि बेटा तुम्हारे अब्बा ठीक थे, उनके लिए दुआ करेंगे. तुम अपनी राह देखो."
"राहुल अगर इसी तरह लड़ते रहेंगे तो मोदी की जीत कोई रोक नहीं सकेगा. हमें तो पाकिस्तान मुर्दाबाद कहने के लिए मजबूर किया जा रहा है.''