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बंगाल चुनाव: कैसे समय के साथ लाल से भगवामय हुआ नक्सलबाड़ी ?

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दार्जिलिंग: कभी देश में नक्सल मूवमेंट का जनक रहा बंगाल का नक्सलबाड़ी गांव समय के साथ-साथ लाल से केसरिया रंग में ढलता नजर आ रहा है। उत्तर बंगाल के कॉमर्शियल हब माने जाने वाले सिलीगुड़ी से 25 किलोमीटर दूर नक्सलबाड़ी में अब बदलाव की बयार साफ महसूस की जा रही है। हालांकि, यहां चप्पे-चप्पे पर गरीबी अभी भी दिखाई देती है, लेकिन नक्सली आंदोलन के उस दौर के मुकाबले परिवर्तन भी दिखाई पड़ता है। नक्सल आंदोलन से जुड़े लोग इस हालात के लिए लेफ्ट की विचारधारा में बदलाव और टीएमसी की नीतियों को जिम्मेदार मान रहे हैं। आज यहां बहुत ही कम जगहों पर ही वामपंथ की मौजूदगी दिखाई पड़ती है, जबकि दक्षिणपंथ की दस्तक कदम-कदम पर सुनाई पड़ती है।

लेफ्ट की अब कोई विचारधारा नहीं- पूर्व नक्सली

लेफ्ट की अब कोई विचारधारा नहीं- पूर्व नक्सली

बंगाल के नक्सलबाड़ी को कभी मशहूर माओवादी और नक्सल मूवमेंट के अगुवा कानू सान्याल के लिए ही जाना जाता था। 1960 के दशक में उनके साथ काम कर चुकीं तबकी नक्सलाइट रहीं शांति मुंडा अब 80 साल की हो चुकी हैं। इस इलाके को लाल से भगवा होते हुए देखने वाला उनसे ठोस गवाह शायद ही कोई मिल सकता है। वो कहती हैं, 'लेफ्ट जिम्मेदार है। अब उनकी कोई विचारधारा नहीं है। वो समझते हैं कि पैसा ही सबकुछ है। इस जमीन के लिए हमारी पूरी पीढ़ी ने संघर्ष किया। लेकिन सच्चाई ये है कि आज की हमारी अगली पीढ़ी या तो जमीन बेचने के लिए मजबूर है या लालच में जमीन बेच रही है। यहां तक कि मैंने भी अपना घर बनाने के लिए अपनी तीन कट्ठा जमीन बेची है।' उनकी शिकायत है कि पानी की किल्लत के चलते यहां खेती करना बहुत ही मुश्किल हो चुका है। लाचार होकर लोग शहरों में छोटे-मोटे काम की तलाश में जा रहे हैं।

आरएसएस ने यहां कड़ी मेहनत की है-सान्याल के संगठन की नेता

आरएसएस ने यहां कड़ी मेहनत की है-सान्याल के संगठन की नेता

कानू सान्याल के संगठन की महासचिव जुड़ीं दीपू हलदर कहती हैं, 'मैं ये नहीं कहती कि हमने सबकुछ गंवा दिया है, लेकिन हां हमने बहुत कुछ खो दिया है। इस हालात के लिए लेफ्ट फ्रंट जिम्मेदार है। क्योंकि, हमने 34 वर्षों तक पश्चिम बंगाल में शासन किया। लेकिन, हमारे नेताओं ने बंगाल के आम लोगों के लिए क्या किया ? हम विचारधारा में विश्वास करते हैं, लेकिन जब लेफ्ट विचारधारा भूल गया तो सबकुछ धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो गया।' जब एएनआई ने उनसे पूछा कि क्या लाल इलाका अब भगवा रंग में रंग चुका है तो वो बोलीं, 'लाल से भगवा एक दिन में नहीं हुआ है। यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ है, जिसने इस इलाके में बहुत कड़ी मेहनत की है। बीजेपी अकेले ये सब नहीं कर सकती थी।'

'टीएमसी 10 साल में ही लेफ्ट से आगे निकल गई'

'टीएमसी 10 साल में ही लेफ्ट से आगे निकल गई'

हलदर यहीं रुकने के लिए तैयार नहीं हुईं। उन्होंने इसके लिए ममता बनर्जी के कथित कुशासन को भी यहां भाजपा के उभरने का कारण माना है। उनके मुताबिक, 'इन हालातों के लिए ममता बनर्जी भी जिम्मेदार हैं। वामपंथी दलों ने जो 34 वर्षों में किया, टीएमसी तो 10 साल में ही उससे आगने निकल गई है। और अब वह रो रही हैं।' हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि सिर्फ भाजपा के झंडों से यह नहीं कहा जा सकता कि यह बीजेपी का इलाका हो गया है। लेकिन,वहीं एक गांव वाले ने कहा कि 'परिवर्तन संसार का नियम है।' माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र में पांचवें चरण में 17 अप्रैल को वोटिंग होनी है। बीजेपी ने यहां कांग्रेस के मौजूदा विधायक शंकर मालाकार और टीएमसी के रंजन सुंदास के खिलाफ आनंदमॉय बर्मन को टिकट दिया है। उन्होंने कहा है, 'मोदी जी का सबका साथ सबका विकास नक्सलबाड़ी के लोगों को पसंद आ रहा है। आप इस इलाके में बीजेपी के लिए लोगों का प्रेम देख सकते हैं और मैं यहां से जीतने जा रहा हूं।'

नक्सलबाड़ी से खत्म हो चुका है नक्सलवाद लेकिन.....

नक्सलबाड़ी से खत्म हो चुका है नक्सलवाद लेकिन.....

बता दें कि बंगाल में हिमालय की तराई का नक्सबाड़ी इलाका पांच दशक से भी पहले पूरे देश के लोगों की नजर में आया था। नेपाल से सटे इस इलाके में 1967 में लोगों ने एक विद्रोही आंदोलन शुरू कर दिया था, जो कुछ गांव वालों पर हुई पुलिस फायरिंग की वजह से हुआ था। इस फायरिंग में दो बच्चों समेत 11 गांव वाले मारे गए थे, जिसके बाद नक्सलाइट और माओवादी उग्रवाद ने देश के कई इलाकों में पांव फैला दिया और इसकी वजह से हजारों लोगों की जान जा चुकी है। तब इसकी अगुवाई कानू सान्याल ने की थी, जो बाद में मुख्यधारा में लौट आए थे। लेकिन, आज हकीकत ये है कि अपनी जन्म स्थली से नक्सलवाद तो खत्म हो चुका है पर देश के कुछ इलाकों में इसके नाम पर जमकर उगाही और निर्दोषों के कत्ल करने करने का खूनी खेल यूं ही चल रहा है।

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English summary
Bengal election:The Naxalbari area of Bengal, which was once the father of Naxal movement in the country, seems to be changing in color from red to saffron over time.
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