वाराणसी: गंगा की गोद में बायो टॉयलेट का विरोध, धरने पर बैठे काशीवासी
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वाराणसी। जिस गंगा को काशी और यहां आने वाले श्रद्धालु मां मानकर पूजा करते हैं उस गंगा के साथ खिलवाड़ होता देख अब काशीवासी विरोध करने को मजबूर हो गए हैं। दरसअल, इन दिनों गंगा में स्नान और यहां आने वाले लोगों की सुविधा के लिए गंगा की गोद में शौचालय बना दिया गया है। ये बायो टॉयलेट गंगा में बोट के ऊपर बना दिए गए हैं। इस मुद्दे पर अब समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने काशीवासियों के साथ मिलकर आंदोलन शुरू कर दिया है।शुक्रवार को शहर के दशाश्वमेध घाट पर सपा और नाविक समाज के लोगों ने मुंह पर पट्टी और हाथों में स्लोगन की तख्तियां लेकर विरोध शुरू किया। प्रदर्शनकारियों की मानें तो ये आंदोलन तब तक तक चलेगा जब तक मां गंगा की गोद से शौचालय नहीं हटाया जाता और जैसे-जैसे आंदोलन का समय बढ़ेगा आंदोलन और बड़ा रूप लेता जाएगा।
पहले ही विरोध पर झुका है प्रशासन
दरअसल, धर्म और आध्यात्मिक नगरी काशी में रोजाना लाखों की संख्या में सैलानियों और भक्तों का आना होता है। इस दौरान यहां बाबा विश्वनाथ के दर्शन और मां गंगा की आरती देखने के लिए भीड़ उमड़ती है। यही नहीं हर धामिर्क पर्वों पर देश के कोने-कोने से श्रदालु गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य भी कमाने और अपने सभी पापों को क्षय करने के लिए आज भी काशी आते हैं। यानी कुल मिलाकर कहा जाए तो काशी आने वाले लोग यहां गंगा को सिर्फ नदी ही नहीं, बल्कि अपनी मां मानते हैं।
विरोध के बाद हटाया गया था अलकनंदा क्रूज
प्रशासन की ओर से समय-समय पर होने वाले गंगा में प्रयोग और रोजी-रोटी के संकट के समय नाविक समाज और काशी के रहने वालों ने प्रशासन के तानाशाही रवैये का विरोध किया है, जिसमे प्रशासन को ही लोगों का आक्रोश देख झुकना पड़ा है। इसका ताजा उदाहरण अलकनंदा क्रूज है, जिसे विरोध के बाद अस्सी घाट से हटाकर और पीछे किया गया। शुक्रवार को लोगों ने गंगा की गोद में तैरने वाले शौचालय को लेकर विरोध शुरू किया है।
बायो टॉयलेट हटाए जाने तक जारी रहेगा विरोध
प्रदर्शन कर रहे लोगों का मानना है कि बायो टॉयलेट बने या तो इस पार बने या उस पार, लेकिन गंगा मां की गोद में नहीं, क्योंकि शौचालय तो शौचालय है फिर वो बायो टॉयलेट हो या फिर कुछ और हो, इसे हटाए जाने तक विरोध होता रहेगा।
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