जलती चिताओं के बीच रातभर नगर वधुओं ने किया नृत्य, 365 साल पुरानी है परंपरा
Varanasi news, वाराणसी। काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने रात भर डांस किया। एक ओर रोने-बिलखने की आवाज सुनाई देती रही तो वहीं दूसरी ओर संगीत की अलग-अलग धुन पर ये नगर वधुएं ठुमके लगाती रहीं। बता दें, यह परंपरा करीब 365 साल पुरानी हो चुकी है, जिसकी शुरुआत राजा मानसिंह ने करवाई थी।
नर्क के जीवन से मुक्ति की लालसा
कार्यक्रम की शुरुआत काशी के महाश्मशान के महाकाल के गर्भगृह से शुरू होती है, जहां देश के कोने-कोने से आने वाली ये डांसर बिना पैसा लिए डांस करती हैं। यह परम्परा करीब 365 साल पुरानी हो चुकी है। इस मामले पर यहां डांस करने आने वाली डांसर बताती हैं कि वो अपने नर्क के जीवन से मुक्ति और अगले जीवन में सम्मान जनक जीवन पाने की लालसा लेकर महाकाल के दरबार मे हाजरी लगती हैं।
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जलती चिताओं के बीच पूरी रात चलती है महफिल
इसके बाद चिताओं के बीच मंच पर पूरी रात संगीत की महफिल चलती है और दूर-दूर से आए लोग आनंद लेते हैं। पिछले दो सालों से यहां पद्मश्री सोम घोष भी शिरकत कर रही हैं और उनके गीत पर ये नगर वधुएं अपना नृत्य दिखती आ रही है।
राजा मानसिंह ने की थी परंपरा की शुरुआत
काशी की इस ऐतिहासिक परम्परा के बारे में बताते हुए मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि काशी के दशाश्वमेध घाट के करीब जब राजा मानसिंह ने अपने महल का निर्माण कराया था तो उन्होंने महाश्मशान पर महाकाल के मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया। जीर्णोद्धार के बाद राजा मानसिंह ने आयोजन की इच्छा रखते हुए तत्कालीन समय के कई नामचीन कलाकारों को निमंत्रण भिजवाया, लेकिन श्मशान पर कार्यक्रम की बात जान सभज ने मना कर दिया, जिसके बात उस वक्त की नगर वधुओं ने महाश्मशान के आयोजन में अपना संगीत का कार्यक्रम पेश किया। इस परम्परा का निर्वहन आज भी किया जाता है। इस आयोजन में अब वाराणसी सहित, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली सहित कई राज्यों से नगर वधुएं आती हैं।
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