काशी के महाश्मशान में खेली गई चिता भस्म की होली, VIDEO
Varanasi news, वाराणसी। वैसे तो होली पूरे देश मे मनाई जाती है, लेकिन पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र की होली कई मायनों में खास होती है। दरसअल, देवों के देव महादेव के काशी में महाश्मशान पर भी होली खेलने की परम्परा सदियों से चली आ रही है, जिसकी शुरुआत राजा मानसिंह ने की थी। इस होली में अबीर और गुलाल नहीं, बल्कि जली हुई चिताओं की राख से होली खेली जाती है। यही नहीं चिता भस्म की इस होली का आयोजन वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर होता है, जिसमें काशीवासियों के साथ ही महाश्मशान पर रहने वाले अघोरी भी शामिल होते हैं। एक तरह 'खेले मशाने में होली, दिगम्बर खेले मशाने में होली' का संगीत बजता है और लोगों एक दूसरे के साथ भस्म और चिताओं की राख से होली खेलते हैं।
देश विदेश से आते है सैलानी
आकाश में उड़ रहे सितारों की रात और जलती चिताओं के बीच श्मशान में होली खेलने का यह नजारा काशी के मणिकर्णिका घाट का है। दरअसल, पुराणों ने ऐसी मान्यता है कि यहां मौत पर भी उत्सव मनाया जाता है। यही वजह है कि रंगभरी एकादशी को बाबा विश्वनाथ माता गौरा का विदाई कराने के बाद काशी लौटते हैं तो काशी के रहने वाले लोगों के साथ साथ महाश्मशान पर रहने वाले अघोरी भी सबसे पहले यहां जलती चिताओं के बीच ढोल नगाड़े और संगीत के साथ नेताओं की जली हुई राख से होली खेलते हैं, जिसे चिता भस्म की होली के नाम से जाना जाता है।
चिता भस्म की होली खेली
इसी कड़ी में मणिकर्णिका घाट पर हजारों की संख्या में ढोल नगाड़े और डमरू के साथ काशीवासी और अघोरी साधुओं ने कंकाल मुंड पहनकर जलती चिताओं के बीच सबसे पहले चिता को भस्म अर्पण शवों को किया और उसके बाद आपस में एक दूसरे के साथ चिता भस्म की होली खेली।
क्या है मान्यता
मणिकर्णिका घाट पर रहने वाले गुलशन कपूर और संजय झिंगरन ने बताया कि आदि अनादि काल से यह परम्परा चली आ रही है। जब बाबा विश्वनाथ माता गौरा का विदाई करा कर काशी लौटे थे तब से दूसरे दिन यानी द्वादशी को उन्होंने अपने भक्तों के साथ महा शमशान पर होली खेली थी उसी परंपरा आज भी निभाई जाती है। आज तक यह परंपरा चली आ रही है इसे देखने के लिए देश और विदेश से भी सैलानियों का हुजूम उमड़ता है।
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