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उत्तराखंड: हरदा-यशदा के बीच बढ़ती नजदीकियां, विरोधी गुट के लिए दे रही खास संकेत

उत्तराखंड में हरीश रावत और यशपाल आर्य के बीच बन रहे नए राजनैतिक रिश्ते

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देहरादून, 18 अक्टूबर। विधानसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड कांग्रेस की तस्वीरें बदलने लगी ​है। यशपाल आर्य के कांग्रेस में घर वापसी के बाद से ही हरीश रावत और यशपाल आर्य के बीच नए समीकरण बन रहे हैं। इसकी गवाह दो तस्वीरें हैं, जो इस नए रिश्ते के सियासी मायने लगाने के लिए काफी हैं। पहली तस्वीर यशपाल आर्य के कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद की जब हरीश रावत के दिल्ली स्थित आवास पर उनकी पत्नी ने यशपाल और उनके बेटे का तिलक लगाकर घर में स्वागत किया। दूसरी तस्वीर हल्द्वानी की हैं, जब हरीश रावत यशपाल आर्य के घर पहुंचे तो यशपाल की पत्नी ने हरीश रावत का चुनरी ओढ़ाकर तिलक लगाकर घर पर सम्मान किया। साफ है कि आने वाले दिनों में उत्तराखंड कांग्रेस में समीकरण बदले हुए नजर आएंगे।

तब हरीश रावत के कारण छोड़ी थी पार्टी

तब हरीश रावत के कारण छोड़ी थी पार्टी

2017 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यशपाल आर्य ने बेटे संजीव आर्य के साथ कांग्रेस को छोड़कर भाजपा ज्वाइन की। तब यशपाल के जाने का मुख्य कारण हरीश रावत को माना गया। यशपाल के अध्यक्ष रहते भी हरीश रावत से कई बार सियासी युद्ध नजर आता रहा। इसके बाद हरीश रावत, इंदिरा ह्रदयेश और प्रीतम सिंह कांग्रेस में बड़े चेहरे बन गए। 2022 चुनाव से पहले इंदिरा का निधन होना कांग्रेस के लिए बड़ी छति बताई जाने लगी। हरीश रावत को भी अपने कुमाऊं क्षेत्र में बड़े चेहरे की तलाश शुरू हो गई। हालांकि हरीश रावत और यशपाल के रिश्तों को लेकर हमेशा तल्खी दिखती रही। लेकिन अचानक यशपाल आर्य की घर वापसी की खबरें आने लगी। और आखिरकार यशपाल आर्य ने बेटे के साथ चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में घर वापसी कर दी।

ये द​लित कार्ड का चेहरा तो नहीं

ये द​लित कार्ड का चेहरा तो नहीं

पंजाब प्रभारी के तौर पर पूर्व सीएम हरीश रावत पर कई बार सवाल खड़े होते रहे। ​​विपक्ष ही नहीं कांग्रेस के अंदरखाने भी हरीश रावत के प्रभारी रहते पंजाब में सियासी घमासान को लेकर हरीश रावत घिरते नजर आए। दलित सीएम बनते ही हरीश रावत ने विपक्षियों के मुंह चुप कराने को उत्तराखंड में दलित कार्ड खेलना शुरू कर दिया। अब कांग्रेस के अंदर हरीश रावत के दलित चेहरे को लेकर चर्चांए तेज हो गई। इस बीच यशपाल के घर वापसी की चर्चा ने दलित कार्ड को ही कारण माना गया। अब यशपाल आर्य और हरीश रावत के बीच बनते नए ​राजनैतिक रिश्तों को भी इससे जोड़ा जा रहा है। लेकिन सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या हरीश रावत यशपाल आर्य को सीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। या कांग्रेस के दूसरे दलित चेहरों के ​लिए यशपाल के जरिए मजबूती देना चाह रहे हैं।

यशपाल की घर वापसी का श्रेय लेने की हौड़

यशपाल की घर वापसी का श्रेय लेने की हौड़

यशपाल आर्य के घर वापसी को लेकर प्रीतम और हरीश खेमा सक्रिय नजर आ रहा है। प्रीतम खेमा लगातार दावा कर रहा है कि यशपाल आर्य को कांग्रेस में लाने और ज्वाइन कराने में प्रीतम सिंह का सबसे बड़ा हाथ है। जबकि हरदा कैंप इसे अपनी सियासी जीत बता रहा है। हरीश रावत जिस गर्मजोशी से यशपाल आर्य का सम्मान करते और कराते हुए नजर आ रहे हैं । उससे भी हरीश रावत के यशपाल आर्य के प्रति बढ़ती नजदीकियां और पार्टी में लाने के श्रेय से जोड़ा जा रहा है। कांग्रेस में यशपाल आर्य को लाने को लाने को लेकर श्रेय लेने की हौड़ सी मची है। ऐसे में हरीश रावत कहां पिछे रहने वाले हैं।

बढ़ती नजदीकियां कांग्रेस के विरोधी गुट के लिए बुरी खबर

बढ़ती नजदीकियां कांग्रेस के विरोधी गुट के लिए बुरी खबर

हरीश रावत और यशपाल आर्य के बीच बढ़ती नजदीकियां कांग्रेस के दूसरे खेमे के लिए बुरी खबर है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि हरीश रावत और यशपाल आर्य भविष्य में कांग्रेस के अंदर एक दूसरे की संभावनाएं भी बनती हुई नजर आ रही है। यदि कांग्रेस सत्ता में वापसी करने लायक सीटें लेकर आ पाई तो सीएम चेहरे के तौर पर या तो यशपाल आर्य हरीश रावत का समर्थन करेंगे या हरीश रावत खुद सीएम नहीं बन सके तो यशपाल आर्य के तौर पर दलित सीएम का कार्ड खेलेंगे। इससे विरोधी गुट का सीएम चेहरे के तौर पर पत्ता कटता साफ नजर आ रहा है। वैसे भी चन्नी को सीएम बनाकर राहुल गांधी ने दलित कार्ड खेला है और वे इस प्रयोग को और राज्यों में आजमाना चाहते हैं ताकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की छवि दलित हितैषी बने और बसपा जैसी पार्टियों के पास कांग्रेस का जो वोट बैंक चला गया था उससे फिर वापस लाने में मदद मिले और कांग्रेस फिर से लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सके। इस तरह एक तीर से कई निशान साधे जा सकते हैं। और उत्तराखंड को पहला दलित सीएम दिलाने का हरीश रावत ऐतिहासिक श्रेय भी ले लेंगे और विरोधी गुट को मात भी दे सकेंगे

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English summary
Uttarakhand: The growing closeness between Harda-Yashda, giving special indications for the opposing faction
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