जलमग्न होता लोहारी गांव और गांव वालों के डूबते सपने, जानिए जलसमाधि ले चुके इस गांव की कहानी
देहरादून, 22 अप्रैल। उत्तराखंड में देहरादून के कालसी ब्लॉक का लोहारी गांव अब जलसमाधि ले चुका है। व्यासी जल विद्युत परियोजना के लिए गांव को जलसमाधि दे दी गई है। अब गांव में रह रहे 70 से ज्यादा परिवार पास के ही एक स्कूल में रहकर सरकार से विस्थापन की मांग कर रहे हैं। गांव वालों का सिस्टम और सरकार से एक ही सवाल है कि उनके साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया है, वह कहां तक सही है। कम से कम सरकार को उनके विस्थापन के बारे में सही तरह से सोचना चाहिए था, दूसरों को रोशन करने के लिए उन्हें अंधेरे में क्यों रखा गया। बिजली का उत्पादन शुरू होने के बाद अब गांव का जलस्तर कम हुआ तो एक बार फिर गांव वाले अपने खंडहर बन चुके घरों में पहुंचकर फिर से अपनी भावनाओं को नहीं रोक पाए। इस बीच वन इंडिया की टीम ने भी मौके पर पहुंचकर इस पल को अपने कैमरे में कैद करने की कोशिश की।

यमुना नदी पर बनी है जल विद्युत परियोजना
उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश कहा जाता है। यहां के प्राकृतिक संसाधन देश ही नहीं विदेश को भी रोशन कर रहे हैं। जिसका लाभ सभी को मिल रहा है। अब देहरादून जिले के लोहारी गांव में यमुना नदी पर बनी जल विद्युत परियोजना से सालाना 330 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होना है। 120 मेगावाट की लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना के लिए आवश्यक सभी स्वीकृतियां प्राप्त करने के बाद वर्ष 2014 में परियोजना पर दोबारा कार्य शुरू हुआ। 1777.30 करोड़ की लागत वाली इस परियोजना के डूब क्षेत्र में सिर्फ लोहारी गांव ही आ रहा है।

24 घंटे में गांव खाली करने का मिला था फरमान
5 अप्रैल को लोहारी गांव के लोगों को इस बात की सूचना मिली कि अगले 24 घंटे मेंं उन्हें गांव खाली करना है, जिसके बाद गांव में पानी आना शुरू हो जाएगा। आनन-फानन में ग्रामीणों ने अपने घरों के जरुरी सामान पास के स्कूल में पहुंचाया। अपने ही हाथों से बनाए घर को तोड़ा और पास के स्कूल में ही टेंट लगाकर विरोध करना शुरु किया। इस बीच धीरे-धीरे गांव जलमग्न हो गया।

बिजली बननी शुरू, जलस्तर हुआ कम
22 अप्रैल को जब वन इंडिया की टीम गांव पहुंची तो पता चला कि टरबाइन शुरू होने के कारण पानी का स्तर काफी कम हो गया। एक बार फिर गांव वाले अपने गांव पहुंचकर जरुरी सामान उठाने लगे। फिर उन यादों को ताजा करने लगे जो कि अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। शुक्रवार को पानी का जल स्तर कम हुआ तो ग्रामीण एक बार फिर खंडहर हो चुके गांव में बचे हुए सामान को लेने पहुंचे। चौखट निकालते हुए रणवीर चौहान ने कहा कि वे घर तो नया बना लेंगे लेकिन यहां से यादें जुड़ी हुई है, उसको वे कैसे संजोयेंगे। रणवीर बताते हैं कि बच्चों को रिश्तेदारों के घर छोड़कर वे स्कूल में समय काट रहे हैं। जब तक सरकार उनके विस्थापन की मांग को पूरा नहीं करती तब तक वे ऐसे ही स्कूल में रहकर अपना विरोध जताएंगे।

पास के स्कूल में रह रहे ग्रामीण
शुक्रवार को गांव में फिर से गांववाले अपनी पुरानी यादें ताजा करने पहुंचे। जिन खेत खलियानों में सालों गुजारे आज वे पानी में समा चुके हैं। जो भी फिर से गांव में पहुंचा उनकी आंखे भर आई। जलमग्न हो चुके गांव के पास ही एक पुराना स्कूल है, इस स्कूल में करीब 50 परिवार अब अपना समय काटने को मजबूर हैं। जितना संभव हो पाया, ग्रामीणों ने अपनी फसलें समेटी। अब स्कूल को ही अपना आशियाना बनाया हुआ है। जब तक पानी का स्तर कम है तब तक ये लोग यहीं रहकर अपनी जिंदगी का काटने की बात कर रहे हैं। स्कूल में ही टेंट लगाया हुआ है। यहीं पर सामूहिक रुप से खाना बना रहे हैं। गांव की महिलाएं बताते हैं कि वे 20 से 22 साल पहले यहां शादी करके आए थे। लेकिन अब यहां से उन्हें जाना पड़ रहा है। इस गांव में उन्होंने अपने परिवार के साथ कई सपने देखे थे। अब बच्चों के भविष्य को लेकर वे चिंतित हैं। इस गांव में रहकर वे साथ पर्व और त्यौहार मनाते थे। लेकिन अब उनके देवी देवताओं और संस्कृति को छोड़कर वे दूसरी जगह नहीं जाना चाहते हैं। 70 से ज्यादा परिवार को अब भी सरकार के किसी आश्वासन का इंतजार है।

बिना विस्थापन के हम नहीं उठेंगे
गांव के सुखपाल तोमर अपने साथियों के साथ इसकी लड़ाई लड़ रहे हैं। वे बताते हैं कि 1972 में सबसे पहले उनके बुजुर्गों को मुआवजा मिला। तब सरकार ने कॉलोनी के लिए जगह मांगी। इसके लिए इकरारनामा हुआ। लेकिन गांव वालों ने अधिक जमीन के अधिग्रहण के लिए जमीन के बदले जमीन की मांग की। इसके बाद 9 बार जमीन का अधिग्रहण हुआ,
तब गांव के लोगों को डरा धमकाकर मामूली पैसा दिया गया। तब आजीविका चलाना मुश्किल हो गया। 1972 से 1990 तक गांव को 9 लाख रुपए टोटल पैसा दिया गया। 1992 में परियोजना बंद हो गई। 2013 में फिर शुरू हुई तो हमने समिति का गठन कर अपनी मांगे रखी। जिसमें जमीन के बदले जमीन की मांग कर रहे हैं। अब तक जो पैसा मिला वो पूरी पीढ़ी में खर्च हो गया। अब अचानक से मेरे खाते में पौने 4 लाख रुपए आए हैं। हमने खाते होल्ड कराए थे। इस रकम से हमारी भविष्य सुरक्षित नहीं है। हमारे घरों का कोई मूल्यांकन नहीं किया गया। हमारे साथ प्रशासन ने जबरदस्ती की है। 5 अप्रैल को साढ़े 5 बजे पैसे ट्रांसफर किए। साढ़े 6 बजे अधिकारियों ने गांव को खाली करने का नोटिस चस्पा किया। हमनें देश के लिए अपनी जमीन और गांव का त्याग कर दिया लेकिन हमारी अब तक किसी ने सुध नहीं ली है। हमारी मांग है कि हमारा विस्थापन होना चाहिए।

व्यासी बांध परियोजना एक नजर में
व्यासी बांध परियोजना में पावर हाउस से बिजली उत्पादन शुरू हो गया है। व्यासी परियोजना से आसपास के 6 गांव के 334 परिवार प्रभावित हो रहे है। लोहारी गांव लखवाड़ और व्यासी दोनों परियोजनाओं से प्रभावित हो रहा है। लखवाड़-व्यासी परियोजना के लिए वर्ष 1972 में सरकार और ग्रामीणों के बीच जमीन अधिग्रहण का समझौता हुआ था। 1977-1989 के बीच गांव की 8,495 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जा चुकी है. जबकि लखवाड़ परियोजना के लिए करीब 9 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना बाकी है। इस परियोजना के लोकार्पण के बाद पछवादून में अब छह विद्युत परियोजनाएं संचालित होंगी। इससे पहले पछवादून में छिबरौ, खोदरी, ढालीपुर, ढकरानी और कुल्हाल जल विद्युत उत्पादन केंद्र संचालित हो रहे हैं। व्यासी परियोजना देहरादून जिले के हथियारी जुड्डो में यमुना नदी पर स्थित रन आफ रिवर जलविद्युत परियोजना है। वर्ष 2014 में परियोजना का निर्माण कार्य शुरू किया गया। इस परियोजना की लागत 1777.30 करोड़ है। उत्तराखंड में दो बड़ी प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं लखवाड़ और व्यासी को 300 मेगावाट की लखवाड़ परियोजना 120 मेगावाट की व्यासी जल विद्युत परियोजना के लिए भी सारी औचारिकताएं पूरी हैं।
------------------------
लखवाड़ , कालसी, जिला देहरादून,
यमुना नदी पर निर्मित परियोजना
बांध की ऊंचाई - 204 मीटर (669 फीट)
उत्पादन क्षमता- 300 मेगावाट
परियोजना का कुल रकबा- 9.57 वर्ग किलोमीटर
निर्माण आरंभ - 1987