उत्तराखंड: जौनपुर का ऐतिहासिक राज मौण मेला, जड़ी बूटी से तैयार पाउडर से पकड़ते हैं मछलियां
देहरादून, 27 जून। उत्तराखंड विविध संस्कृति और परंपरा का प्रदेश है। यहां के पर्व, मेले और त्यौहार सबसे अलग और विशेष पहचान रखते हैं। ऐसे ही एक अनोखा मेला जौनपुर में आयोजित होता है, जिसे मौण मेला कहा जाता है। इस बार मौण मेला दो साल बाद आयोजित हुआ। इस मेले में अगलाड़ नदी में टिमरु पावडर डालकर पहले मछलियों को बेहोश किया जाता है। जिसके बाद मछलियां पकड़ने हजारों लोग नदी में कूद जाते हैं। इस मौके पर स्थानीय लोगों ने ढोल नगाड़ों की थाप पर जमकर लोकनृत्य भी किया।

20 हजार से अधिक लोग हुए शामिल
जौनपुर में आयोजित मेले में जौनपुर, रंवाई घाटी समेत आसपास क्षेत्र के 20 हजार से अधिक लोगों ने शिरकत की। सबसे पहले नदी के पास ढोल नगाड़ों के साथ ग्रामीण लोक गीतों के साथ पारंपरिक लोकनृत्य किया। फिर नदी में 8 क्विटंल से अधिक टिमरु पाउडर डाला गया। इसके बाद जाल लेकर लोग नदी में मछली पकड़ने को कूद गए। दावा है कि इस दौरान सैकड़ों क्विंटंल मछलियां पकड़ी गई हैं।

सालों की है परंपरा
नैनबाग क्षेत्र के करीब 16 गांवों के लोगों ने करीब दो से तीन सप्ताह तक टिमरू पाउडर बनाया। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा सालों से चली आ रही है। जो कि करीब 156 साल से मनाते हैं। दावा है कि मौण मेला 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने शुरू कराई जो कि लगातार जारी है।

ऐसे तैयार होता है पाउडर
मेले को लेकर लोगों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिलता है। जो कि करीब एक माह पहले से ही नजर आता है। एक माह पहले से टिमरू पाउडर को ग्रामीण मछली पकड़ने को नदी में डालते हैं। इस पाउडर को करीब एक माह पहले से बनाना शुरू किया जाता है। पाउडर को प्राकृतिक जड़ी बूटी और औषधीय गुणों से भरपूर टिमरु के पौधे की तने की छाल को सुखाते है। छाल को ओखली या घराट में पीसकर पाउडर तैयार होता है। पाउडर को नदी में डालते ही मछलियां बेहोश हो जाती है। जिससे मछलियां मर जाती हैं।

पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है मेला
मेले में सैकड़ों किलो मछलियां पकड़ी जाती है जिसे ग्रामीण प्रसाद स्वरूप घर ले जाते हैं और मेहमानों को परोसते हैं। मेले में विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं। मेला का उद्देश्य नदी और पर्यावरण का संरक्षण करना होता है साथ ही उद्देश्य नदी की सफाई करना होता है ताकि मछलियों को प्रजनन के लिए साफ पानी मिले। स्थानीय लोगों का कहना है कि पाउडर जल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है। इससे कुछ समय के लिए मछलियां बेहोश हो जाती है। जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं। साथ ही हजारों की संख्या में जब लोग नदी की धारा में चलते हैं तो नदी के तल में जमी हुई काई और गंदगी साफ होकर पानी में बह जाती है और मौण मेला के बाद नदी बिल्कुल साफ नजर आती है।