सीएम त्रिवेंद्र रावत पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई जांच के आदेश, हाईकोर्ट ने कहा- दर्ज हो एफआईआर
देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड हाई कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने पत्रकार उमेश शर्मा व अन्य के खिलाफ राजद्रोह मामले में राज्य सरकार द्वारा दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए सीएम पर लगे आरोपों की जांच सीबीआई को सौंप दी है। कोर्ट ने सीबीआई को एफआईआर दर्ज कर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत पर लगे करप्शन के आरोपों की जांच करने के लिए कहा है।
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यह आदेश न्यायमुर्त्ति रविन्द्र मैठाणी की एकलपीठ ने दिए है। जानकारी के मुताबिक, उमेश शर्मा व अन्य की तरफ से सोशल मीडिया पर एक व्यक्ति उनकी पत्नी के खिलाफ एक न्यूज़ डाली गई थी। इसे गलत मानते हुए उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 469, 471 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया था। बाद में सरकार की तरफ से इन लोगों के खिलाफ राजद्रोह का भी मुकदमा दायर किया गया था।
27 अक्टूबर को न्यायमुर्त्ति रविन्द्र मैठाणी की एकलपीठ पत्रकार व उनके अन्य साथियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए फेसबुक पर पत्रकार उमेश द्वारा मुख्यमंत्री पर लगाए आरोपों की सीबीआई जांच करने के आदेश दिए हैं। मामले के अनुसार एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने 31 जुलाई को देहरादून थाने में उमेश शर्मा के खिलाफ ब्लैकमेलिंग करने सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था।
मुकदमे के अनुसार, उमेश शर्मा ने सोशियल मीडिया में खबर चलाई की प्रो. हरेंद्र सिंह रावत व उनकी पत्नी डॉ. सविता रावत के खाते में नोटबन्दी के दौरान झारखंड से अमृतेश चौहान ने पैंसे जमा किए और यह पैसे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को देने को कहा। इस वीडियो में डॉ. सविता रावत को मुख्यमंत्री की पत्नी की सगी बहन बताया गया है। रिपोर्ट कर्ता के अनुसार ये सभी तथ्य असत्य हैं और उमेश शर्मा ने बैंक के कागजात कूटरचित तरीके से बनाये हैं। उसने उनके बैंक खातों की सूचना गैर कानूनी तरीके से प्राप्त की है।
इस बीच सरकार ने आरोपी के खिलाफ गैंगस्टर भी लगा दी थी। उमेश शर्मा ने अपनी गिरफ्तारी पर रोक के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल व अन्य ने पैरवी करते हुए कहा था कि नोटबन्दी के दौरान हुए लेनदेन के मामले में उमेश शर्मा के खिलाफ झारखंड में मुकदमा दर्ज हुआ था। जिसमें वे पहले से ही जमानत पर हैं। इसलिए एक ही मुकदमे के लिए दो बार गिरफ्तारी नहीं हो सकती। जबकि उनके खिलाफ दर्ज गैंगस्टर एक्ट के बारे में सरकार हाईकोर्ट में कोई जबाव नहीं दे सकी।
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