चमोली पर भगवान का कहर ? रेनी गांव के लोगों का दावा- मंदिर हटाने की वजह से आई तबाही
Uttarakhand Glacier Burst: देहरादून। उत्तराखंड के चमोली जिले में बीते रविवार कुदरत का कहर जल प्रलय के रूप में टूट पड़ा। ग्लेशियर फटने के बाद नीती घाटी में रैणी गांव के पास आई भयंकर बाढ़ ने जमकर तबाही मचाई। अभी तक 35 से अधिक शव बरामद हो चुके हैं जबकि 150 से अधिक लोग लापता हैं। इलाके के लोग आज भी अपनों को तलाश कर रहे हैं। तबाही के पीछे ग्लेशियर फटने को जिम्मेदार बताया जा रहा है जिसकी वजह से अचानक ढेर सारा पानी आ गया और इलाके में जल प्रलय सी स्थिति हो गई। वहीं रैणी गांव के बुजुर्गों का कहना है कि इस तबाही के पीछे भगवान का कहर है।
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इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक रैणी गांव के बुजुर्ग इस तबाही के लिए उनके गांव के मंदिर को हटाये जाने को जिम्मेदार बताते हैं। उनका कहना है कि मंदिर को हटाये जाने से देवी का गुस्सा उन पर टूटा है और यह इलाके में मौत और तबाही लेकर आया है।
देवभूमि
के
लोगों
की
देवताओं
में
आस्था
उत्तराखंड
देवभूमि
है
और
यहां
पर
लोगों
के
जीवन
में
देवताओं
का
बड़ा
ही
महत्व
रहा
है।
प्रकृति
के
साथ
जुड़े
उत्तराखंडवासी
हमेशा
से
प्रकृति
के
साथ
छेड़छाड़
का
विरोध
करते
रहे
हैं।
उत्तराखंड
में
बद्रीनाथ,
केदारनाथ,
गंगोत्री
और
यमुनोत्री
जैसे
चारधाम
के
साथ
ही
हर
इलाके
में
अपने
देवता
हैं।
स्थानीय
लोगों
का
मानना
है
कि
ये
देवता
उनकी
रक्षा
करते
हैं।
रैणी
ही
वह
गांव
है
जहां
से
1973
में
विश्व
प्रसिद्ध
चिपको
आंदोलन
की
शुरुआत
हुई
थी
जिसमें
स्थानीय
लोग
पेड़
काटने
से
रोकने
के
लिए
पेड़
के
ऊपर
चिपक
जाया
करते
थे।
जब 2013 में उत्तराखंड में आपदा आई थी तो उस समय भी उत्तराखंड में बड़ी संख्या में लोगों ने इसके लिए धारी देवी के मंदिर हटाये जाने को इसकी वजह बताया था। रुद्रप्रयाग जिले में श्रीनगर के पास स्थित धारी देवी मंदिर को हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट के चलते हटाया गया था। मंदिर को हटाये जाने का स्थानीय लोगों ने भारी विरोध किया था। विरोध करने वालों में भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी शामिल रही थीं। बाद में धारी देवी मंदिर का पानी के ऊपर पिलर पर खड़ा किया गया था।
प्रशासन
ने
हटा
दिया
था
मंदिर
रैणी
गांव
का
मंदिर
ऋषिगंगा
और
धौलीगंगा
के
मिलन
स्थल
पर
हुआ
करता
था।
नदी
किनारे
स्थित
मंदिर
तक
पहुंचने
में
स्थानीय
लोगों
को
मुश्किल
होती
थी
जिसके
बाद
एक
छोटा
मंदिर
सड़क
किनारे
बना
दिया
गया
ताकि
बुजुर्ग
लोग
भी
मंदिर
तक
पहुंच
सके।
लेकिन पिछले साल पॉवर प्लांट के अधिकारियों ने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर इस मंदिर को हटा दिया था। उस दौरान स्थानीय लोगों ने इसका भारी विरोध किया था। उस दौरान अधिकारियों ने इसे दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने का वादा किया था लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ।
अधिकांश स्थानीय लोगों का मानना है कि मुख्य मंदिर को बाढ़ ने आकर धोया है जो देवता के कहर को साफ दिखाता है। जिस दिन उन्होंने मंदिर को हटाया, उन्होंने देवी के क्रोध को बुलावा दे दिया था। हम जानते हैं कि जो कुछ भी त्रासदी सामने आई है वह ईश्वरीय अभिशाप है।
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