सिद्धपीठ सुरकंडा देवी मंदिर रोपवे को लेकर श्रद्धालुओं में जबरदस्त उत्साह, 2 माह में 75 हजार से ज्यादा पहुंचे
देहरादून, 27 जून। सिद्धपीठ सुरकंडा देवी मंदिर के लिए रोपवे शुरू होने के बाद से श्रद्धालुओं में उत्साह बढ़ता हुआ नजर आ रहा है। दो माह में लगभग 75 हजार से अधिक श्रद्धालु रोपवे से सुरकंडा मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंच चुके हैं। जिसके बाद ट्रालियों की संख्या भी 12 से बढ़कर 16 हो गई है।

रोपवे सेवा शुरू होने से पहले श्रद्धालुओं को सुरकंडा मंदिर पहुंचने के लिए कद्दूखाल से लगभग डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती थी, जिसमें एक घंटे का वक्त लग जाता था। एक मई को सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सुरकंडा पहुंचकर विधिवत रोपवे सेवा का शुभारंभ किया था। तब से दो माह के अंतर्गत लगभग 75 हजार श्रद्धालु रोपवे से दर्शनों के लिए सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर पहुंच चुके हैं। सुरकंडा देवी मंदिर जाने के लिए लगभग 05 करोड़ की लागत से बने रोपवे की लंबाई 502 मीटर है। इसकी क्षमता लगभग 500 व्यक्ति प्रति घंटा है। सुरकंडा देवी मंदिर रोपवे सेवा, उत्तराखंड के राज्य के गठन होने के बाद पहली महत्वपूर्ण रोपवे परियोजना है जिसका निर्माण राज्य पर्यटन विभाग द्वारा किया गया है। सुरकंडा रोपवे सेवा शुरू होने से श्रद्धालु कद्दूखाल से मात्र 5 से 10 मिनट में सुगमता पूर्वक साल भर मां सुरकंडा देवी के दर्शन कर सकेंगे। इसका किराया आने जाने का 177 रुपए तय किया गया है।
माता सती का सिर गिरने की वजह से सुरकंडा पड़ा नाम
सुरकंडा मंदिर 2750 मीटर की ऊंचाई पर है। यह मसूरी चंबा मोटर मार्ग पर धनोल्टी से 8 कि०मी० की दूरी पर है। नई टिहरी से 41 कि०मी० की दूरी पर चंबा मसूरी रोड पर कद्दुखाल स्थान है जहां से लगभग 2.5 कि०मी० की पैदल चढाई कर सुरकंडा माता के मंदिर तक पहुंचा जाता है। हालांकि अब यहां रोपवे शुरू हो गया है। मान्यता है कि सती तपस्वी भगवान शिव की पत्नी एवं पौराणिक राजा दक्ष की पुत्री थी। दक्ष को अपनी पुत्री के पति के रूप में शिव को स्वीकार करना पसंद नहीं था। राजा दक्ष द्वारा सभी राजाओं के लिए आयोजित वैदिक यज्ञ में भगवान शिव के लिए की गई अपमान जनक टिप्पणी को सुनकर सती ने अपने आप को यज्ञ की ज्वाला में फेंक दिया। भगवान शिव को जब पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो अत्यंत दुखी और नाराज हो गए और सती माता के पार्थिव शरीर को कंधे पर रख हिमालय की और निकल गए। भगवान शिव के गुस्से को एवं दुःख को समाप्त करने के लिए एवं सृष्टी को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को सती के नश्वर शरीर को धीरे धीरे काटने को भेजा। सती के शरीर के 51 भाग जहां जहां गिरे वहां पवित्र शक्ति पीठ की स्थापना हुयी और जिस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया जो बाद में सुरकंडा नाम से प्रसिद्ध हो गया।