'उत्तराखंड में भी हो दलित सीएम', हरीश रावत के ऐलान में छिपा है गहरा राज, जानिए असली कहानी
उत्तराखंड में दलित सीएम को लेकर हरीश रावत ने चला नया दांव
देहरादून, 23 सितंबर।पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाने के बाद कांग्रेस दलित कार्ड को लेकर आगामी विधानसभा चुनाव में जा रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव, पंजाब प्रभारी और पूर्व सीएम हरीश रावत ने उत्तराखंड में भी दलित सीएम बनाने को लेकर अपनी राय रखी है। जिससे कांग्रेस के अंदर और भाजपा में भी बैचेनी साफ नजर आ रही है। हरीश रावत के दलित सीएम बनाने को लेकर क्या है रणनीति, जानने की कोशिश करते हैं।
मैदानी सीटों पर कांग्रेस का वोट बैंक बढ़ाना
उत्तराखंड में 18 से 20 परसेंट का दलित वोटबैंक है। जिसका असर मैदानी सीटों पर ज्यादा है। जो कि हरिद्वार, यूएसनगर औ देहरादून जिले में है। इतना ही नहीं दलित वोटर का उत्तराखंड की 20 से ज्यादा सीटों पर प्रभाव है, जो हार जीत तय करते हैं। मैदानी सीटों पर वोट भाजपा, कांग्रेस और बसपा में बंटता है। जो कि इस बार आम आदमी पार्टी के हिस्से भी जा सकता है। इतना ही नहीं पिछले चुनावों में बसपा से ये वोट दूसरे दलों की तरफ झुका है। ऐसे में इस वोट को अपनी और करने के लिए हरीश रावत ने दलित सीएम का कार्ड खेला है।
भाजपा को तराई में हराना
किसान आंदोलन के चलते भाजपा के सामने तराई सीटों पर वोटबैंक की चिंता सता रही है। इसबार विधानसभा चुनावों में तराई सीटों से सरकार बनाने और गिराने के समीकरण बनते नजर आ रहे हैं। भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष और सीएम दोनों तराई सीट से ही दिए हैं। किसान अगर भाजपा को वोट नहीं करते हैं तो भाजपा दलित और सिख वर्गों को साधकर वोटों को संतुलित करने की कोशिश करेगी। जबकि कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल से है। और एक कार्यकारी अध्यक्ष तराई से है। लेकिन वे हर समीकरणों के हिसाब से बनाए हैं। हरीश रावत तराई सीट पर किसानों और दलित दोनों वर्गों का वोट अपने पक्ष में कराने को हर दांव खेल रहे हैं।
सीएम के तौर पर खुद का विकल्प तैयार करना
हरीश रावत के दलित सीएम के पीछे की रणनीति अपना विकल्प तैयार रखना भी माना जा रहा है। हरीश रावत 73 वर्ष में राजनीति में उम्र के ऐसे पड़ाव में भी है। जहां से उनकी उम्र को लेकर भाजपा और कांग्रेस के दूसरे गुट भी कई बार सवाल करते रहते हैं। ऐसे में हरीश रावत कांग्रेस की सरकार आने पर खुद का कोई विकल्प तैयार रखना चाहते हैं। जिससे वे खुद सीएम न बन पाए तो अपने करीबी दलित चेहरे को सीएम बनाकर अपनी राजनैतिक इच्छा को पूरा कर सकते हैं। इससे वे कांग्रेस के अंदर दूसरे सीएम के उम्मीदवारों की दावेदारी को खत्म करना चाहते हैं।
अपने सबसे करीबी दलित नेता की दावेदारी
कांग्रेस के अंदर दलित चेहरे के रुप में प्रदीप टम्टा ही एक मात्र मजबूत चेहरा हैं। जो कि हरीश रावत के सबसे करीबी नेताओं में शामिल हैं। लोकसभा का चुनाव हो या राज्य सभा का। हरीश रावत ने हमेशा से ही प्रदीप टम्टा को आगे रखा है। जिसके परिणामस्वरूप प्रदीप टम्टा ने भी हमेशा सीएम से लेकर हरीश रावत के हर फैसले के साथ मजबूती से खड़े रहते हैं। ऐसे में हरीश रावत अपने सबसे करीबी प्रदीप टम्टा को भी दूसरे विकल्प के तौर पर आगे खड़ा कर रहे हैं। प्रदीप टम्टा के अलावा कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.जीत राम और पूर्व विधायक नारायण राम आर्य दलित चेहरे हैं। लेकिन हरीश रावत के सबसे करीबी प्रदीप टम्टा ही हैं।
विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के जनाधार पर नजर
हरीश रावत भले ही उत्तराखंड के नेता हैं, लेकिन वे राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं। उनके पास पंजाब का प्रभार भी है। पंजाब में दलित चेहरा लाने के बाद अब वे उत्तराखंड में भी दलित चेहरे को लाने की वकालत कर रहे हैं। इसके पीछे की रणनीति हरीश रावत के आने वाले विधानसभा चुनावों में 5 राज्यों में कांग्रेस के वोटबैंक और जनाधार को बढ़ाने की है। इन राज्यों में कांग्रेस की टक्कर भाजपा के अलावा आप से भी है। जो कि दलित वोट को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटी है। इतना ही नहीं उत्तराखंड और पंजाब के सहारे वे 2024 के लोकसभा चुनावों पर भी फोकस कर रहे हैं। जिससे केन्द्रीय नेतृत्व और हाईकमान की नजरों में खुद का कद बढ़ा सकें। हरीश रावत का दलित कार्ड चुनाव में असर कर गया तो वे हाईकमान की पहली पसंद बन जाएंगें।