उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत, CBI जांच के आदेश पर लगाई रोक
देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) को सुप्रीम कोर्ट से गुरुवार को बड़ी राहत मिली है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें हाई कोर्ट ने उत्तराखंड सीएम के खिलाफ सीबीआई जांच को मंजूरी दी थी। इतना ही नहीं, अदालत ने इस मामले में नोटिस जारी किया है और चार हफ्ते में जवाब मांगा है। बता दें कि सीएम रावत के मीडिया समन्वयक दर्शन सिंह रावत ने 28 की शाम को बताया था कि सीएम पर झूठा आरोप लगाने वाले पत्रकार के प्राथमिकी को रद्द करने और सीबीआई जांच के हाई कोर्ट के आदेश खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है।
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पत्रकार उमेश शर्मा व अन्य की तरफ से सोशल मीडिया पर प्रो. हरेंद्र सिंह रावत व उनकी पत्नी डॉ. सविता रावत के खिलाफ एक न्यूज़ डाली गई थी। इसे गलत मानते हुए उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 469, 471 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया था। बाद में सरकार की तरफ से इन लोगों के खिलाफ राजद्रोह का भी मुकदमा दायर किया गया था। 27 अक्टूबर को न्यायमुर्त्ति रविन्द्र मैठाणी की एकलपीठ पत्रकार व उनके अन्य साथियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए फेसबुक पर पत्रकार उमेश द्वारा मुख्यमंत्री पर लगाए आरोपों की सीबीआई जांच करने के आदेश दिए थे।
उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। इसके अलावा उत्तराखंड सरकार ने भी विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। साथ ही सीएम रावत ने हाई कोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए याचिका में कहा है कि वह प्रदेश के चुने हुए मुख्यमंत्री हैं और राजनीतिक लाभ लेने के लिए इस विवाद में बेवजह उनका नाम घसीटा गया है। कहा कि उमेश शर्मा की हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में उनके खिलाफ किसी भी तरह की जांच या सीबीआई जांच की मांग नहीं की गई थी।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री को सुने बगैर ही हाईकोर्ट द्वारा इस तरह का सख्त आदेश देने से सब भौंचक्के रह गए। क्योंकि पत्रकारों की याचिका में रावत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध भी नहीं किया गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इससे अलग हाईकोर्ट के किसी और आदेश पर टिप्पणी नहीं की है।