सावन स्पेशल: उत्तराखंड के ये 5 शिव मंदिर हैं खास, जहां शिवभक्तों की पूरी होगी आस
देहरादून, 2 जुलाई। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां हर मंदिर का अपना एक विशेष स्थान है। 14 जुलाई से सावन का महीना शुरू होने जा रहा है। जिसे हिंदू धर्म में सबसे खास माना जाता है। इस महीने में हर दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। सावन का महीना शिव का महीना होता है। इस वर्ष सावन 14 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा पर समाप्त हो रहा है। आइए जानते हैं उत्तराखंड के प्रसिद्ध शिव मंदिरों के बारे में-

जागेश्वर धाम
जागेश्वर धाम को भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसे योगेश्वर नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की दीवारों पर ब्राह्मी और संस्कृत में लिखे शिलालेखों से इसकी निश्चित निर्माणकाल के बारे पता नहीं चलता है। हालांकि पुरातत्वविदों के अनुसार मंदिरों का निर्माण 7वीं से 14वीं सदी में हुआ था। इस काल को पूर्व कत्यूरी काल, उत्तर कत्यूरी व चंद तीन कालों में बांटा गया है। जागेश्वर एक हिंदू तीर्थ शहर है और शैव परंपरा में धामों (तीर्थ क्षेत्र) में से एक है। इसमें दंडेश्वर मंदिर, चंडी-का-मंदिर, जागेश्वर मंदिर, कुबेर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, नंदा देवी या नौ दुर्गा, नव-ग्रह मंदिर, एक पिरामिड मंदिर और सूर्य मंदिर शामिल हैं। जागेश्वर कुमाऊं क्षेत्र में अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित है।

बैजनाथ
उत्तराखण्ड के बागेश्वर जनपद में गोमती नदी के किनारे एक छोटा सा नगर है। यह अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है,जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रूप में मान्यता प्राप्त है। बैजनाथ उन चार स्थानों में से एक है, जिन्हें भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत 'शिव हेरिटेज सर्किट' से जोड़ा जाना है। बैजनाथ को प्राचीनकाल में "कार्तिकेयपुर" के नाम से जाना जाता था, और तब यह कत्यूरी राजवंश के शासकों की राजधानी थी। बैजनाथ बागेश्वर मुख्यालय के 20 किमी उत्तर में स्थित है। पर्यटकों को आकर्षित कर पायेगा।

त्रियुगीनारायण
त्रियुगीनारायण मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में स्थित एक हिंदू मंदिर है। प्राचीन मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवान् नारायण भूदेवी और लक्ष्मी देवी के साथ विराजमान हैं। इस प्रसिद्धि को इस स्थान पर विष्णु ने देवी पार्वती के शिव से विवाह के स्थल के रूप में श्रेय दिया जाता है और इस प्रकार यह एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है। विष्णु ने इस दिव्य विवाह में पार्वती के भ्राता का कर्तव्य निभाया था, जबकि ब्रह्मा इस विवाहयज्ञ के आचार्य बने थे। इस मंदिर की एक विशेष विशेषता एक सतत आग है, जो मंदिर के सामने जलती है। माना जाता है कि लौ दिव्य विवाह के समय से जलती है जो आज भी त्रियुगीनारायण मंदिर में विद्यमान है। मन्दिर के सामने ब्रह्मशिला को दिव्य विवाह का वास्तविक स्थल माना जाता है। मान्यता है कि भगवान भोले नाथ और पार्वती का विवाह इस मंदिर मैं त्रेता युग में हुआ था।

काशी विश्वनाथ मंदिर
उत्तरकाशी ऋषिकेश से 154 किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश-गंगोत्री मार्ग पर है। विश्वनाथ मंदिर इस क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन पवित्र मंदिर है। काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर को 1857 में सुदर्शन शाह की पत्नी महारानी श्रीमती खनेती द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। वर्तमान मंदिर का निर्माण पहले से मौजूद प्राचीन वेदी पर पारंपरिक हिमालयी मंदिर वास्तुकला के साथ 1857 ई. किया गया था। मान्यता है कि भगवान शिव इसे कलियुग के दूसरे निवास स्थान के रूप में मानते हैं। इस स्थान को भगवान शिव ने सौम्य माना है। इसी वजह से उत्तरकाशी को सौम्यकाशी भी कहा जाता है। शिव मंदिर के परिसर में मार्केंडेय और साक्षी गोपाल जी का मंदिर खास महत्व रखता है।

नीलकंठ महादेव मंदिर
उत्तराखंड के ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। उसी समय उनकी पत्नी, पार्वती ने उनका गला दबाया जिससे कि विष उनके पेट तक नहीं पहुंचे। इस तरह, विष उनके गले में बना रहा। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था। गला नीला पड़ने के कारण ही उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहां भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।
मुनी की रेती से नीलकंठ महादेव मंदिर सड़क मार्ग से 30-35 किमी की दूरी पर है।
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