2013 के महाप्रलय जैसी तबाही की तरफ फिर बढ़ रहा केदारनाथ, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
दिल्ली। उत्तराखंड के चार धाम में से एक केदारनाथ में 2013 में भीषण आपदा आई थी जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके बाद केदारनाथ को आबाद करने के लिए जो निर्माण कार्य किए जा रहे हैं उससे इलाके में फिर वैसी ही आपदा आ सकती है। देहरादून में आयोजित सेमिनार में आए वैज्ञानिकों ने कहा कि जिस तरह से केदारनाथ में रिकंस्ट्रशन प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं वह काफी चिंता का विषय है। देहरादून में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने सेमिनार आयोजित किया जिसमें प्रधानमंत्री के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन ने भी भाग लिया। इस सेमिनार में वैज्ञानिकों ने केदारनाथ की संवेदनशील पारिस्थितिकी के बारे में बताते हुए यहां हो रहे पुनर्निर्माण की वजह से होने वाले नुकसान की तरफ ध्यान खींचा है।
समाधि स्थल के लिए खोदा गया गड्ढा खतरनाक
उत्तराखंड के विज्ञान और तकनीक विभाग और इसरो के साथ काम कर रही संस्था उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर एमपीएस बिष्ट ने कहा कि समाधि स्थल के लिए केदारनाथ मंदिर के ठीक 50 मीटर पीछे 100 मीटर चौड़ा और 50 फीट गहरा गड्ढा खोदा गया है। यह गड्ढा भविष्य में काफी खतरनाक साबित हो सकता है। अगर इस गड्ढे को खुला छोड़ा गया तो इसमें हर जाड़े में बर्फ भरेगा। 2019 में इसमें 48 फीट बर्फ जमा था। बिष्ट ने कहा कि केदारनाथ के इलाके में पहले से बड़े ग्लेशियर हैं और वहां हम इस तरह के गहरे गड्ढे खोद रहे हैं। यह निश्चित तौर पर उस क्षेत्र की संवेदनशील इकोलॉजी को बिगाड़ेगा। उस इलाके में हाल में भूकंप आने की घटनाएं बढ़ी हैं। 2013 जैसा महाप्रलय दूसरी बार आए, हम ऐसी परिस्थिति क्यों पैदा कर रहे हैं?
केदारनाथ में बिना सोचे-समझे पुनर्निर्माण
बिष्ट ने केदारनाथ इलाके में लगातार अवैज्ञानिक तरीके से किए जा रहे निर्माण कार्य की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि पहले केदारनाथ मंदिर तक जाने के लिए मंदाकिनी नदी की दाहिनी ओर से सड़क था जिसको 2013 की आपदा में भारी नुकसान हुआ। अब नदी की बायीं ओर से नौ किलोमीटर लंबा रास्ता बनाया गया है जो कि पूरी तरह से अवैज्ञानिक है। पूर्वजों ने दाहिनी तरफ से सड़क बहुत सोच-समझकर बनाया था। उन्होंने बताया कि मंदाकिनी की बायीं ओर किसी भी तरह का निर्माण भूस्खलन और हिमस्खलन लाएगा क्योंकि उधर के ग्लेशियर कमजोर हैं।
आ सकती है 2013 जैसी तबाही
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक के मुताबिक, केदार का अर्थ ही होता है दलदली जमीन और ऐसे इलाके में 50 फीट गहरा गड्ढा खोदना मुसीबत को आमंत्रित करेगा क्योंकि चोराबाड़ी ताल के पास पहले से ग्लेशियर हैं जिसकी वजह से 2013 में तबाही आई थी। उन्होंने कहा कि केदारनाथ में बनाई गई सड़क सबसे संवेदनशील क्षेत्र में हैं जहां कई ग्लेशियर हैं। ग्लेशियर के दबाव में सड़क कभी भी टूट सकती है।
क्लियरेंस लेना सरकार का काम: कंस्ट्रक्शन एजेंसी
इस बारे में उत्तराखंड सरकार में मंत्री और आधिकारिक प्रवक्ता मदन कौशिक ने इस बारे में पूछे जाने पर टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि कंस्ट्रक्शन का काम एक एजेंसी को देकर आउटसोर्स किया गया है और यह उनका काम है कि पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृति लें। इसके जवाब में आउटसोर्स एजेंसी वुडस्टोन कंस्ट्रक्शन के मैनेजर मनोज सेमवाल ने कहा कि केदार घाटी में निर्माण कार्य के लिए क्लियरेंस लेना सरकार का काम है, हमारा नहीं। उन्होंने कहा कि 2013 की आपदा के ठीक बाद हमने केदारनाथ मंदिर तक जाने के लिए सड़क बनाई थी क्योंकि तब वहां पहुंचने का कोई साधन नहीं था। इसके लिए क्लियरेंस लिया गया था। अब हमलोग समाधि स्थल के निर्माण में लगे हैं तो इसके लिए भी सरकार ने पर्यावरण मंत्रालय से क्लियरेंस लिया होगा।
समाधि स्थल क्या है?
8वीं सदी के आदि गुरु शंकराचार्य के बारे में कहा जाता है कि उनका देहावसान केदारनाथ में ही हुआ था। उनकी स्मृति में ही यह समाधि स्थल बनाया जा रहा है। 20 करोड़ के बजट से बन रहे इस समाधि स्थल के निर्माण में दिसंबर 2019 तक 10 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत गोल गड्ढे में आदि शंकराचार्य की थ्रीडी मूर्ति बैठाई जाएगी। तीर्थयात्री गड्ढे में प्रवेश कर आदि शंकराचार्य की मूर्ति की परिक्रमा कर सकेंगे और फिर दूसरे गेट से भैरो मंदिर की तरफ जा सकेंगे। मूर्ति के पास ही मेडिटेंशन सेंटर भी बनाया जाएगा। इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए उद्य़ोगपतियों ने 60 करोड़ रुपए दिए हैं।
केदारनाथ महाप्रलय 2013
16-17 जून 2013 को केदारनाथ घाटी में भारी बारिश की लैंडस्लाइड हुआ और चोराबाड़ी ताल टूट गया था। पत्थरों और चट्टानों से भरे सैलाब ने केदारनाथ को तबाह कर दिया था। इस महाप्रलय में हजारों लोग मारे गए थे।
केदारनाथ महाप्रलय: पढ़िए उस कयामत की रात की रूह सर्द कर देने वाली कहानी