उत्तराखंड में पहाड़ के साथ नीचे खिसक रहा है कुंवारी गांव, झील का निर्माण, क्या कह रहे हैं वैज्ञानिक ? जानिए
देहरादून, 26 जून: उत्तराखंड में जब भी कुदरत की तबाही की चर्चा होती है तो केदारनाथ त्रासदी की यादें ताजा हो जाती हैं। वहां के पर्यावरण पर मंडरा रहे खतरे हमेशा से वैज्ञानिकों और सरकारों के लिए चिंता की वजह रही है। लेकिन, इस दौरान वहां एक ऐसी बात का पता चला है, जो हालात की गंभीरता को देखते हुए तत्काल कदम उठाने की ओर ध्यान खींच रहा है। वहां रिवर-लिंकिंग परियोजना की संभावना का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। ऐसा करते हुए उन्हें इस बात की जानकारी मिली है कि वहां पिंडारी ग्लेशियर के पास एक झील बन गई है, जिसके दबाव के चलते और भूस्खलन की वजहों से पहाड़ सहित एक गांव नीचे की ओर खिसकना शुरू हो गया है।

पिंडारी ग्लेशियर के पास एक किमी लंबी झील बनी
ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन का भयावह रूप देवभूमि उत्तराखंड में एकबार फिर साफ नजर आने लगा है। यहां बागेश्वर के पास स्थित कुंवारी गांव के पास पिंडारी ग्लेशियर में अंग्रेजी के वी (V) आकार की एक झील का निर्माण हो गया है। यह झील करीब 1 किलोमीटर लंबी और 50 मीटर चौड़ी है। कुदरत के इस बदलाव का पता भी नहीं चलता अगर वैज्ञानिक और एक्सपर्ट पिंडारी ग्लेशियर के पास प्रस्तावित रिवर-लिंकिंग प्रोजेक्ट को लेकर जमीन का सर्वे नहीं कर रहे होते। देश में इस तरह का यह पहला प्रोजेक्ट है। कुंवारी गांव समुद्र तल से करीब 1,700 मीटर की ऊंचीई पर स्थित है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिंडारी ग्लेशियर के पास इस झील का निर्माण इलाके में 2013 और 2019 में हुए भूस्खलनों की वजह से हुआ है।(पहली तस्वीर में गांव की तस्वीर-प्रतीकात्मक। सौजन्य: उत्तराखंड टूरिज्म)

पहाड़ के साथ नीचे खिसकर रहा है कुंवारी गांव
लेकिन, अधिकारियों ने जो सबसे हिला देने वाली बात बताई है, वह ये है कि भूस्खलन और झील का असर यह पड़ा है कि पहाड़ की जिस ढलान पर कुंवारी गांव स्थित है, वह धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगा है। यही नहीं इसके चलते पिंडार नदी के पानी के प्राकृतिक बहाव में भी बाधा खड़ी हो रही है। यह नदी चमोली जिले के कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी से आकर मिलती है। बागेश्वर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने नाम नहीं जाहिर होने देने की गुजारिश करते हुए कहा है, 'हालांकि, झील से इस समय पानी का प्राकृतिक तौर पर रिसाव हो रहा है, लेकिन इसके चलते बाद में भयानक बाढ़ की नौबत आ सकती है, जिससे पिंडार और अलकनंदा नदियों के किनारे बसी बस्तियों को गंभीर नुकसान हो सकता है।'(दूसरी तस्वीर में गांव की तस्वीर-प्रतीकात्मक। सौजन्य: उत्तराखंड टूरिज्म)

105 किलो मीटर लंबी है पिंडार नदी
गौरतलब है कि उत्तराखंड का पेयजल विभाग नदियों को जोड़ने की एक महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रहा है। इसका लक्ष्य कुमाऊं क्षेत्र में पिंडीरी ग्लेशियर पर आधारित नदियों को बागेश्वर और अल्मोड़ा जिलों की बारिश पर निर्भर नदियों से जोड़ना है। बता दें कि पिंडारी ग्लेशियर से निकलने वाली पिंडार नदी 105 किलोमीटर लंबी है। इस नदी को बैजनाथ घाटी की गोमती और अल्मोड़ा जिले की बर्षा नदियों से जोड़ने का प्लान है। कुछ हफ्ते पहले पेयजल विभाग के सचिव नितिश झा ने बताया था, 'इस प्रोजेक्ट का लॉन्ग टर्म विजन बहुत ही महत्वाकांक्षी है, जिसका लक्ष्य अल्मोड़ा और बागेश्वर जिलों में पानी के मुद्दे का समाधान निकालना है, जहां विभिन्न पर्यावरणनीय और जलवायु से संबंधित वजहों से बर्षा नदियां सूख रही हैं।'

3 किमी लंबा है पिंडारी ग्लेशियर
गौरतलब है कि पिंडारी ग्लेशियर टूरिस्ट को भी आकर्षित करता है, जो ट्रेकिंग के लिए बहुत ही लोकप्रिय है। यह तीन ग्लेशियर ट्रेक- सुंदरधुंगा, कफनी का हिस्सा है। इन तीनों के लिए ट्रेकिंग बागेश्वर से ही शुरू होती है। उत्तराखंड सरकार की वेबसाइट के मुताबिक पिंडारी ग्लेशियर कुमाऊं का सबसे सुलभ ग्लेशियर है, जो 3 किलोमीटर लंबा और 250 मीटर चौड़ा है। इससे पिघले बर्फ से ही पिंडार नदी बनती है। अप्रैल से जुलाई और सितंबर से अक्टूबर ट्रेकिंग के लिए आदर्श समय है।

'कोई तात्कालिक खतरा नहीं है'
उत्तराखंड के केदारनाथ घाटी में 2013 में आई तबाही को दुनिया भूली नहीं है। इसलिए कुंवारी गांव पर मंडरा रहे खतरे के बारे में सोचकर भी बदन सिहर जाता है। वैसे फिलहाल उत्तराखंड के अधिकारियों का कहना है कि पिंडारी ग्लेशियर के पास बनी झील से फिलहाल 'कोई तात्कालिक खतरा नहीं है।' लेकिन,भूकंप के लिए भी संवेदनशील होने और जलवायु परिवर्तन की भयावह स्थिति ने हमेशा अलर्ट रहने को जरूर मजबूर कर दिया है।