उत्तराखंड घूमने जा रहे हैं तो जंगली फल और पहाड़ों में फलों का राजा काफल खाया क्या?
जंगली फल और पहाड़ों में फलों का राजा है काफल
देहरादून, 26 मई। काफल, जंगली फल और पहाड़ों में फलों का राजा कहा जता है। जो कि उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यत: हिमालय के तलहटी क्षेत्र में पाया जाने वाला एक वृक्ष या विशाल झाड़ी है। ग्रीष्मकाल में इस पर लगने वाले फल पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। इसकी छाल का प्रयोग टैंनिंग के लिए किया जाता है। काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही इसके फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाती है और हृदय रोग, मधुमय रोग उच्च एंव निम्न रक्त चाप नियान्त्रित होता है। इसका स्वाद मिश्रित होता है यानि रसीले, खट्टे और मीठे स्वाद से भरपूर होता है काफल।
सीजन में सड़कों के किनारे मिल जाते हैं काफल
यह पहाड़ों में युवाओं के रोजगार का भी प्रमुख साधन है। शुरूआत में इसका रंग हरा होता है और अप्रैल माह के आखिर में यह फल पककर तैयार हो जाता है, तब इसका रंग बेहद लाल हो जाता है। इसका दाम चार सौ रुपये प्रति किलो तक होता है। काफल का वानस्पतिक नाम मेरिका एस्कुलाटा है। यह मध्य हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाला सदाबहार वृक्ष है। गर्मी के मौसम में काफल के पेड़ पर अति स्वादिष्ट फल लगता है, जो देखने में शहतूत की तरह लगता है। काफल 1300 मीटर से 2100 मीटर (4000 फीट से 6000 फीट) तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पैदा होता है। काफल को लेकर पहाड़ के लोकगीत भी हैं। बेडु पाको बार मासा, नरेन काफल पाको चेत मेरी छैला, पहाड़ के लोग गनगुनाते रहते हैं।
जानिए काफल के फायदे
काफल पेट के लिए काफी फायदेमंद बताया जाता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, तो यह एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है। यही नहीं इसके निरंतर सेवन से कैंसर एवं स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। इसका पेड़ कहीं उगाया नहीं जाता बल्कि अपने आप उगता है। इस फल को खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं। मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए काफल काम आता है। इसके तने की छाल का सार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिस तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है।
काफल को लेकर है मार्मिक लोककथा
पहाड़ में आज भी काफल को लेकर मार्मिक लोककथा है। पहाड़ के एक गांव में एक गरीब महिला और उसकी छोटी सी बेटी रहती थी। महिला छोटे मोटे काम कर अपना गुजर बसर करती थी। एक बार गर्मी के मौसम में महिला जंगल से एक टोकरी काफल तोड़कर लाई और आंगन में रख दिए। साथ ही बेटी से बोली इनका ध्यान रखना और खेत में चली गई। मासूम बच्ची काफलों की पहरेदारी करती रही। दोपहर में जब मां घर आई तो उसने देखा कि काफल की टोकरी में बहुत कम काफल बचे थे। मां ने देखा कि पास में बेटी सो रही है. थकी हारी मां को ये देखकर बेहद गुस्सा आ गया। उसे लगा कि मना करने के बावजूद उसकी बेटी ने काफल खा लिए हैं। यही सोचकर अत्याधिक क्रोध में उसकी आंखें बंद हो गई और उसने अपनी छोटी सी बच्ची को जमकर पीटा। गर्मियों की धूप में बैठी भूखी प्यासी बच्ची अपनी मां की मार सहन नहीं कर पायी और उसके प्राण चले गए। शाम होते-होते काफल की टोकरी फिर से पूरी भर गई। जब महिला की नजर टोकरी पर पड़ी तो उसे समझ में आया कि दिन की चटक धूप और गर्मी के कारण काफल मुरझा जाते हैं और शाम को ठंडी हवा लगते ही वह फिर ताजे हो गए। मां को अपनी गलती पर बेहद पछतावा हुआ और वह भी उसी पल सदमे से गुजर गई। लोककथाओं में कहते हैं कि वो दोनों मां-बेटी,चिड़िया बन गई और आज भी जब पहाड़ों में काफल पकते हैं तब बेटी रूपी चिड़िया कहती है ' काफल पाको मैं नि चाख्यो' अर्थात काफल पक गए, मैंने नहीं चखे। उसका जवाब मां रूपी दूसरी चिड़िया देती है 'पुर पुतई पुर पुर ' अर्थात पूरे हैं बेटी, पूरे हैं।