प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेल रहा पहाड़ी राज्य, आपदा नीति को लेकर कब गंभीर होगी सरकारें
प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेल रहा पहाड़ी राज्य उत्तराखंड, आपदा नीति को लेकर कब गंभीर होगी सरकारें
देहरादून, 21 अक्टूबर। उत्तराखंड में एक बार फिर आसमानी आफत तबाही का मंजर लेकर आई है। जो कि आपदाग्रस्त इलाकों के लोगों को गहरे जख्म दे गया। नैनीताल, यूएसनगर, चंपावत, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग जिलों में भारी नुकसान हुआ है। यह पहली बार नहीं कि पहाड़ी राज्य इस तरह की मुसीबत का सामना कर रहा हो। ये मंजर एक बार फिर 16-17 जून 2013 की याद ताजा कर गया है। जब केदारनाथ सहित राज्य के अन्य हिस्सों में तबाही हुई थी। उससे पहले भी पहाड़ी राज्य को कई बार ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है। लेकिन 21 साल में आपदा से निपटने को किसी तरह की नीति तैयार न होना। अब तक की सरकारों पर सवाल खड़े कर रहा है। हर बार आपदा आती है, सरकारें नुकसान को लेकर रिपोर्ट तैयार कर मुआवजा देकर पुर्नवास और संसाधनों को विकसित करने के लिए कई प्लानिंग भी बनाती हैं। लेकिन जब भी प्राकृतिक आपदा से सरकारों का सामना होता है, तो सभी सिस्टम बेबस नजर आता है। जिसके बाद सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ के अलावा तमाम देशभर की संस्थाएं अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाती हैं।
बारिश ने तोड़े सालों के रिकॉर्ड
उत्तराखंड में अक्टूबर माह में इतनी भारी बारिश हुई कि नए रिकॉर्ड कायम हुए हैं। बारिश अपने साथ कुदरत का कहर लेकर आई। जिसने हर जगह तबाही मचा दी। मौसम विभाग ने कुमाऊं क्षेत्र में पंतनगर और मुक्तेश्वर में 24 घंटे के दौरान हुई सबसे ज्यादा बारिश के आंकड़े जारी किये हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि इन दोनों जगहों पर पिछले 24 घंटे के दौरान हुई बारिश अब तक के ऑल टाइम रिकॉर्ड से करीब दोगुनी रही है। पंतनगर में बारिश के आंकड़े 25 मई 1962 से दर्ज किये जा रहे हैं। यहां अब तक 24 घंटे के दौरान 10 जुलाई 1990 को सबसे ज्यादा 228 मिमी बारिश हुई थी, लेकिन 18 अक्टूबर 2021 सुबह 8.30 बजे से 19 अक्टूबर 2021 की सुबह 8.30 बजे तक यहां 403.2 मिली बारिश दर्ज की गई। इसी तरह मुक्तेश्वर में 1 मई 1897 से बारिश के आंकड़े दर्ज किये जा रहे हैं। यहां अब तक 24 घंटे के दौरान सबसे ज्यादा बारिश18 सितम्बर 1914 को 254.5 मिमी दर्ज की गई थी, जबकि इस बार यहां 24 घंटे के दौरान 340.8 मिमी बारिश हुई है।
जून 2013 जैसी स्थिति बनी
जून
2013
जैसी
स्थिति
बनी
अक्टूबर
माह
में
रिकॉर्ड
बारिश
से
वैज्ञानिकों
की
चिंता
भी
बढ़
गई
है।
उत्तराखंड
वानिकी
एवं
औद्यानिकी
विश्वविद्यालय
के
पर्यावरण
विभाग
के
अध्यक्ष
एवं
भूवैज्ञानिक
डॉ.
एसपी
सती
कहते
हैं
कि
यदि
मानसून
को
हटा
दिया
जाए
तो
इस
बार
वातावरण
में
जून
2013
जैसी
स्थिति
बनी।
वे
कहते
हैं
कि
एक
मजबूत
पश्चिमी
विक्षोभ
उत्तराखंड
में
सक्रिय
था
और
इसी
के
साथ
इस
क्षेत्र
में
एक
कम
दबाव
वाला
क्षेत्र
बन
गया।
इससे
बंगाल
की
खाड़ी
तक
की
हवाएं
इस
क्षेत्र
में
जमा
हो
गई,
जिसका
नतीजा
यह
अप्रत्याशित
बारिश
रही।
400 से ज्यादा गांव हो चुके हैं अब तक प्रभावित
उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां पहाड़ी राज्य के कारण दूसरे राज्यों से भिन्न है। यहां अतिवृष्टि, भू-स्खलन, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। जिस वजह से गांवों को विस्थपित या पुनर्वास करना पड़ता है। प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित गांवों की संख्या 400 का आंकड़ा पार कर चुकी है। वर्ष 2015 तक उत्तराखंड में ऐसे गांवों की संख्या 225 थी जो कि प्राकृतिक आपदा के चलते भू-स्खलन या खतरे की जद में आए। वर्ष 2012 से अब तक ऐसे 83 गांवों का पुनर्वास किया जा चुका है। सरकार का दावा है कि अब इन गांवों का भू-गर्भीय सर्वेक्षण कराया जा रहा है। वर्तमान की भाजपा सरकार का दावा है कि पिछले साढ़े चार साल में प्रदेश सरकार ने इन गांवों के 1447 परिवारों का सुरक्षित स्थानों पर पुनर्वास किया। गांवों के पुनर्वास पर सरकार अब तक 61.02 करोड़ खर्च कर चुकी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में एक कार्यक्रम में जानकारी दी थी कि 2011 में आपदा के उपरांत प्रभावित गांवों व परिवारों की पुनर्वास नीति के तहत वर्ष 2017 से पहले दो गांवों के 11 परिवारों का पुनर्वास हुआ था। वर्ष 2017 के बाद से 81 गांवों के 1436 परिवारों को पुनर्वासित किया गया। गढ़वाल मंडल के चमोली जिले के 15 गांवों के 279 परिवार, उत्तरकाशी जनपद के पांच गावों के 205 परिवार, टिहरी जिले के 10 गांवों के 429 परिवार एवं रूद्रप्रयाग जनपद के 10 गांवों के 136 परिवार पुनर्वासित किए गए।। जबकि कुमाऊं मंडल में पिथौरागढ़ के 31 गांवों के 321 परिवार, बागेश्वर जिले के नौ गांवों के 68 परिवार, नैनीताल जिले के एक गांव के एक परिवार एवं अल्मोड़ा जिले के दो गांवों के आठ परिवार विस्थापित किए गए।