सीएम धामी और यशपाल आर्य की 'ब्रेकफास्ट डिप्लोमेसी' के पीछे कांग्रेस का दलित कार्ड तो नहीं, जानिए पूरा मामला
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने की अचानक यशपाल आर्य से मुलाकात तो सियासी पारा चढा
देहरादून, 27 सितंबर। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत का दलित कार्ड सत्ता के गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है। हरीश रावत की दलित चेहरे को उत्तराखंड का सीएम बनाने की इच्छा जाहिर करने के बाद उत्तराखंड के बड़े दलित चेहरों को लेकर नई बहस शुरू हो गई है। इससे कांग्रेस ही नहीं भाजपा के अंदर भी बैचनी साफ नजर आ रही है। मामला गर्माया तो उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के घर पर अचानक जाकर ब्रेकफास्ट डिप्लोमेसी के भी सियासी मायने निकाले जाने लगे। और हो भी क्यों न। जब उत्तराखंड में दलित सीएम को लेकर बहस चल रही हो तो फिर प्रदेश के सबसे बड़े दलित चेहरे को लेकर चर्चा क्यों न हो।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और 6 बार के विधायक रह चुके हैं आर्य
यशपाल आर्य उत्तराखंड के दलित चेहरों पर बड़ा चेहरा है। कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष और 6 बार विधायक चुकर आए आर्य कांग्रेस सरकार में बड़ी जिम्मेदारी संभालने के बाद 2017 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के पाले में आए। भाजपा में आने के बाद खुद भी विधायक बने और अपने बेटे संजीव आर्य को भी भाजपा से टिकर दिलाकर विधायक बनाया। अब भाजपा सरकार में परिवहन और समाज कल्याण जैसे बड़े मंत्रालय संभाल रहे हैं। यशपाल की छवि शांत और सादगी वाले नेता की है। उनकी नाराजगी कभी चेहरे पर नजर नहीं आती। लेकर सीएम पुष्कर सिंह धामी के अचानक यशपाल आर्य के घर पहुंचने और नाश्ता तक साथ करने के बाद एक बार फिर यशपाल आर्य की नाराजगी की खबरें सामने आने लगी। हालांकि यशपाल आर्य ने किसी तरह की नाराजगी होने से इनकार कर दिया। लेकिन सत्ता के गलियारों में यशपाल आर्य की अपने बेटे के साथ कांग्रेस जाने की चर्चा तेज हो गई है।
कांग्रेस में दलित चेहरों की कमी
कांग्रेस के अंदर इस समय बड़े चेहरों की भी तलाश जारी है। 2016 में कांग्रेस के 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। जिसमें यशपाल आर्य, सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल बड़े चेहरों में शमिल हैं। महाराज और हरक कई बार भाजपा में रहकर नाराजगी जता चुके हैं। लेकिन यशपाल आर्य ने 5 सालों में कभी पार्टी के अंदर किसी बात को लेकर नाराजगी नहीं जताई। चुनाव से पहले हरीश रावत के दलित प्रेम को भी इसी कड़ी से देखा जा रहा है। यशपाल आर्य की कुमाऊं क्षेत्र में अच्छी पकड़ हैं। साथ ही कांग्रेस में दलित चेहरों की कमी भी है। कांग्रेस के अंदर प्रमुख दलित चेहरों में सांसद प्रदीप टम्टा, कार्यकारी अध्यक्ष प्रो जीतराम हैं। ऐसे में हरीश रावत ने दलित कार्ड का दांव खेलकर यशपाल आर्य को अपने खेमे में लाने के लिए दांव खेला है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने भी 15 दिन में भाजपा के बड़े चेहरों की कांग्रेस में शामिल होने के संकेत देकर उत्तराखंड की राजनीति को गर्मा दिया है।
दलित के सहारे कांग्रेस को संजीवनी की आस
उत्तराखंड में 21 साल में 10 मुख्यमंत्री बदल चुके हैं। अब तक जितने भी सीएम आए ब्राह्रमण और ठाकुर जाति के ही बने हैं। इस बार हरीश रावत ने दलित सीएम का कार्ड खेलकर 18 परसेंट वोटबैंक पर सीधे सेंधमारी की कोशिश की है, जो पहले बहुजन समाज पार्टी और उसके बाद भाजपा के हो गए थे। अब हरीश रावत दलित वोट को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं। यशपाल आर्य दलित और कुमाऊं का बड़ा चेहरा हैं। ऐसे में हरीश रावत का यह नया दांव कांग्रेस को संजीवनी देने का काम भी करेगा।