देवस्थानम बोर्ड के बाद अब भू कानून का है नंबर, विधानसभा सत्र में क्या धामी सरकार रचेगी इतिहास
विधानसभा सत्र से पहले सरकार भू कानून को लेकर बना रही रणनीति
देहरादून, 2 दिसंबर। देवस्थानम बोर्ड को भंग कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने साफ संदेश दे दिया है कि जनभावना के अनुरूप ही सरकार अपना रोडमैप तैयार कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या धामी सरकार अब भू कानून में संसोधन कर इतिहास रचने जा रही है। इसके लिए विधानसभा सत्र का इंतजार करना पड़ सकता है। हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में भू कानून की मांग को लेकर आंदोलनकारी लगातार आंदोलन कर रहे हैं। साथ ही विपक्ष भी इसे चुनावी हथियार बना रहा है। जिससे सरकार पर चौतरफा दबाव बना हुआ है।
समिति कर रही अध्ययन
उत्तराखंड में मौजूदा भू-कानून में हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर संशोधन को लेकर मुहिम तेज होने के बाद सरकार ने इस संबंध में पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में समिति का गठन किया है। भू-कानून के परीक्षण और अध्ययन को गठित उच्च स्तरीय समिति को 160 व्यक्तियों समेत विभिन्न संगठनों से सुझाव मिले हैं। इन सुझावों को समिति के सदस्यों को भेजा जाएगा। समिति की बैठक दिसंबर में सत्र से पहले आयोजित हो सकती है। जिसके बाद सत्र में इस पर चर्चा संभव बताई जा रही है। सरकार चुनाव से पहले इस मुद्दे को भी सुलझाने में जुटी है। जिससे चुनाव में किसी तरह का विवाद न रहे। कांग्रेस भी देवस्थानम बोर्ड के बाद भू कानून को मुद्दा बना रही है।
क्या
है
विरोध
का
कारण
उत्तराखंड
(उत्तर
प्रदेश
जमींदारी
विनाश
और
भूमि
व्यवस्था
अधिनियम,
1950)(संशोधन)
अधिनियम
में
धारा-143(क)
और
धारा
154
(2)
को
जोड़े
जाने
का
विरोध
हो
रहा
है।
भू-कानून
के
खिलाफ
आंदोलन
कर
रहे
आंदोलनकारियों
का
कहना
है
कि
सरकार
ने
पर्वतीय
और
मैदानी
क्षेत्रों
में
कृषि
भूमि
खरीद
की
सीमा
समाप्त
कर
दी
गई
है।
लीज
और
पट्टे
पर
30
साल
तक
भूमि
लेने
का
रास्ता
खोला
गया
है।
इससे
कृषि
भूमि
पर
संकट
खड़ा
हो
चुका
है।
प्रदेश
में
बड़े
स्तर
पर
हो
रही
कृषि
भूमि
की
खरीद
फरोख्त,
अकृषि
कार्यों
और
मुनाफाखोरी
की
शिकायतों
पर
साल
2002
में
कांग्रेस
सरकार
के
तत्कालीन
मुख्यमंत्री
एनडी
तिवारी
ने
संज्ञान
लेते
हुए
साल
2003
में
'उत्तर
प्रदेश
जमींदारी
विनाश
एवं
भूमि
सुधार
अधिनियम,
1950'
में
कई
बंदिशें
लगाईं।
इसके
बाद
किसी
भी
गैर-कृषक
बाहरी
व्यक्ति
के
लिए
प्रदेश
में
जमीन
खरीदने
की
सीमा
500
वर्ग
मीटर
हो
गई।
इसके
बाद
साल
2007
में
बीजेपी
की
सरकार
में
तत्कालीन
मुख्यमंत्री
बीसी
खंडूरी
ने
अपने
कार्यकाल
में
पूर्व
में
घोषित
सीमा
को
आधा
कर
250
वर्ग
मीटर
कर
दिया।
लेकिन
यह
सीमा
शहरों
में
लागू
नहीं
होती
थी।
हालांकि,
2017
में
जब
दोबारा
भाजपा
सरकार
आई
तो
त्रिवेंद्र
रावत
सरकार
ने
इस
अधिनियम
में
संशोधन
करते
हुए
प्रावधान
कर
दिया
गया
कि
अब
औद्योगिक
प्रयोजन
के
लिए
भूमिधर
स्वयं
भूमि
बेचे
या
फिर
उससे
कोई
भूमि
खरीदे
तो
इस
भूमि
को
अकृषि
करवाने
के
लिए
अलग
से
कोई
प्रक्रिया
नहीं
अपनानी
होगी।
औद्योगिक
प्रयोजन
के
लिए
खरीदे
जाते
ही
उसका
भू
उपयोग
अपने
आप
बदल
जाएगा
और
वह
अकृषि
या
गैर
कृषि
हो
जाएगा।
इसी
के
साथ
गैर
कृषि
व्यक्ति
द्वारा
खरीदी
गई
जमीन
की
सीमा
को
भी
समाप्त
कर
दिया
गया।
अब
कोई
भी
कहीं
भी
जमीन
खरीद
सकता
था।