इसलिए दुनिया मानती है इस खिलाड़ी को हॉकी का जादूगर, हिटलर भी था इनका 'फैन'
इलाहाबाद। मेजर ध्यानचंद को हॉकी का खिलाड़ी नहीं जादूगर कहा जाता है। आज (29 अगस्त) ही के दिन 1905 में इनका जन्म हुआ था। हॉकी के मैदान में लगता था जैसे इनकी स्टिक से गेंद चिपक जाती थी, इनके गोल दनादन ऐसे लगते थे जैसे बैट से छक्के चौके। हिटलर भी इनके खेल का दीवाना था। ध्यानचंद के खेल को लोग कौशल नहीं जादू कहते थे। सन 1905 में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान दुनिया के इस महान खिलाड़ी का जन्म इलाहाबाद में हुआ था। आज उनकी 113वीं जयंती है। ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार समेश्वर सिंह के घर इनका जन्म हुआ था। हॉकी के इतिहास में सबसे ज्यादा गोल करने और भारत को ओलंपिक खेलों में गोल्ड दिलाने के कारण उनके जन्मदिन 29 अगस्त को 'नेशनल स्पोर्टस डे' के रूप में मनाया जाता है।
इस तरह बन गये हॉकी प्लेयर
इलाहाबाद के रहने वाले हॉकी के पूर्व खिलाड़ी वयोवृद्ध राधेश्याम द्विवेदी मेजर ध्यानचंद के बारे में काफी कुछ बताते है। वह बताते हैं कि प्रैक्टिस के दौरान उनके कोच खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिये ध्यानचंद के हॉकी खेलने की शुरूआत के बारे में बताते थे। ध्यानचंद जब किशोरावस्था के थे तब वह पेड़ की लकड़ी तोड़कर उसे स्टिक बनाकर दोस्तो संग कभी कभी खेलते थे। लेकिन एक बार जब अपने पिता जी के साथ हॉकी का मैच देख रहे थे। मैच ब्रिटिश आर्मी टीम के बीच खेला जा रहा था।
पिता ने करवाया था टीम में शामिल
लेकिन एक बार जब अपने पिता के साथ हॉकी का मैच देख रहे थे। मैच ब्रिटिश आर्मी टीम के बीच खेला जा रहा था। इस दौरान जब आर्मी की हार लगभग तय था तब ध्यानचंद ने मैच हार रही टीम से खेलने की इच्छा जाहिर की । पिता ने ध्यानचंद को टीम में शामिल करवा दिया और ध्यानचंद ने कुछ ही देर में ताबड़तोड़ 4 गोल करके अपनी टीम को मैच जिता दिया। इसी के बाद आर्मी के अधिकारियों ने उन्हें सेना में शामिल होने व हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। बाद में जब ध्यानचंद 16 की उम्र पूरी कर गए तब उन्होंने ब्रिटिश आर्मी जॉइन कर ली और हॉकी खेलने लगे।
इलाहाबाद नहीं संजो सका याद
ध्यानचंद के पिता सोमेश्वर सिंह ध्यानचंद को लेकर झांसी चले गए और वहीं पर वह रहने लगे। लेकिन, ध्यानचंद के जन्म व पलने-बढ़ने के बाद ऐतिहासिक तौर पर इस शहर का हमेशा जिक्र आता रहा है। लेकिन, अफसोस की बात है कि इलाहाबाद में मेजर ध्यानचंद कि कोई भी याद संजोयी ही नहीं जा सकी। उन्होंने ने 1928, 1932 और 1936 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों ही बार भारत ने गोल्ड मेडल जीता था।