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PICS: स्वच्छता के लिए कूड़े को ही बना डाला रोजगार, मुश्किलों को चुनौती देती ये महिलाएं

हर आइटम चाहे वो जैविक कूड़ा हो, चाहे किचेन वेस्ट हो, चाहे अजैविक हो, प्लास्टिक बॉटल हो, अंडे के छिलके हो सबको अलग-अलग करना उनको सुखाना और फिर उनको सही प्रॉडक्ट से लिंक करना इन महिलाओं ने समझ लिया है।

By Priyanka Tiwari
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वाराणसी। महिलाओं के हौसले से पूरा गांव न सिर्फ साफ हो गया है बल्कि वहां का कूड़ा भी अब उनकी रोजी-रोटी का जरिया बन रहा है। दरअसल गांव को साफ करने की ये पहल सरकार की एसएलआरएम योजना के तहत हुआ। वैसे तो सरकार योजनाएं बहुत लाती है लेकिन हकीकत में जमीन पर बहुत कम योजनाएं ही सफल हो पाती हैं। ऐसे में बनारस के गांव में इन उत्साही महिलाओं के जज्बे से ये योजना न सिर्फ पूरी तरह जमीन पर उतरी है बल्कि इनका गांव भी प्रदेश का पहला पूर्ण स्वक्ष गांव बन गया है। कैसे करती हैं महिलाए इस काम को? इसी की पड़ताल करती एक रिपोर्ट।

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PICS: स्वच्छता के लिए कूड़े को ही बना डाला रोजगार, मुश्किलों को चुनौती देती ये महिलाएं
PICS: स्वच्छता के लिए कूड़े को ही बना डाला रोजगार, मुश्किलों को चुनौती देती ये महिलाएं

जानिए कौन सा है ये गांव?

ये गांव है पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी शहर से बिलकुल नजदीक छितौनी गांव जहां बॉक्स में रखी चूड़ियां, बोतल के ढक्कन, टूथ-ब्रश, कॉस्मेटिक की डिब्बियां, कांच की बोतले और घरेलू सामान, घरों से निकलने वाले ये कूड़े जिसके माध्यम से इन्होंने एक रोजगार तैयार कर लिया है। ये कूड़ा यहां कैसे पहुंचा इसके पीछे गांव की ही कुछ महिलाओं का हौसला और जज्बा है जो हर सुबह गांव के बाहर बने इस सेंटर से कूड़े की ट्रॉली लेकर निकलती है और लोगों के घरों से कूड़े इकट्ठा कर यहां लाती हैं। फिर उन्हें अलग-अलग करके इस तरह से रखती हैं, जिससे इनका गांव साफ हो सके।

PICS: स्वच्छता के लिए कूड़े को ही बना डाला रोजगार, मुश्किलों को चुनौती देती ये महिलाएं
PICS: स्वच्छता के लिए कूड़े को ही बना डाला रोजगार, मुश्किलों को चुनौती देती ये महिलाएं

क्या कहती हैं गांव की महिलाएं?

गांव की नीतू शर्मा कूड़ा इकट्ठा करने वाली महिला कहती हैं कि स्वच्छ बनाने के लिए ये सब करते हैं। जो हमारे घर के पास कूड़ा है, कचरा है, गंदगी है उसे साफ-सुथरा रखेंगे तो बच्चे बिमारी से बचेंगे। शांति देवी कहती हैं "पहले बहुत लोग बुरा मानते थे, कहते थे कि इनके हांथ का पानी नहीं पिएंगे ये लोग मेसतर का काम कर रहे हैं लेकिन हम लोगों ने रोजी-रोटी की इज्जत की और गांव को साफ-सुथरा करने के लिए चुप रहे।

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सफाई को लेकर पहले से गंभीर थी महिलाएं

साफ-सफाई का विचार उनके मन में पहले से ही था पर उसने जोर तब पकड़ा जब इनके गांव में सॉलिड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट की योजना आई। बात गांव की सफाई की थी लिहाजा नीतू जैसी 50 महिलाएं फौरन इस काम में जुट गईं। साधन और सेंटर सरकारी योजना से मिला तो कुछ महिलाओं ने कूड़ा गाड़ी चलाने की जिम्मेदारी ली तो कुछ साथ में चल कर घरों से कूड़ा उठाने भी लगी। बाकी बची महिलाएं सेंटर पर आए कूड़े को अलग-अलग कर उसे सफाई से रखने की जिम्मेदारी निभा रही हैं और कुछ कम्पोस्ट खाद बनाने में जुट गई हैं। जिससे देखते-देखते गांव की सूरत बदलने लगी है। लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था। शुरू में इन महिलाओं को गांव के समाजिक बंधन से दो चार होना पड़ा।

PICS: स्वच्छता के लिए कूड़े को ही बना डाला रोजगार, मुश्किलों को चुनौती देती ये महिलाएं


क्या कहना है डीएम का?

'इससे जागरुकता भी आ रही है और जो सामाजिक बंधन था वो भी टूटा है। महिलाएं घर से निकल रही हैं, कूड़ा कलेक्ट कर रही हैं, धर्म संप्रदाय की दुषित मानसिकताओं से निकलकर महिलाएं एक साथ काम कर रही हैं।

सरकारी योजना से कैसे मिली मदद?

स्वच्छ भारत मिशन के तहत सॉलिड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट (एसएलआरएम) से इन महिलाओं को रिक्शा ट्रॉली दी गई। जिसमें जैविक और अजैविक कूड़े के लिए अलग-अलग खाने बने थे। गांव के घरों में भी हरे और लाल डिब्बे दिए गए। इन्हें जिले के मुख्य विकास अधिकारी ने कूड़ा मैनेजमेंट पर ट्रेनिंग भी दी और कूड़े को रखने के लिए एक सेंटर भी बनाया जहां जैविक कूड़े से वर्मी खाद बनाने का चेंबर बना तो अजैविक कूड़े की छंटाई कर उन्हें कबाड़ में बेचकर इनकी आमदनी का जरिया बनाया गया। शुरू में जिन महिलाओं का गांव के लोग विरोध करते थे आज उसी गांव में उनकी इज्जत बढ़ गई है। पुलकित खरे मुख्य विकास अधिकारी ने बताया कि इनमे वो जज्बा है जो न केवल अपने गांव को स्वच्छ बल्कि नारी सशक्तिकरण का एक उदहारण भी पेश किया है और ये गांव उसी रूप में उभरकर सामने आया है।

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English summary
Women challenging the difficulties of garbage, created cleanliness from her hardwork in Varanasi
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