शिवपाल यादव के लिए इतने अहम क्यों हो गए डीपी यादव, जानिए इसकी वजहें
लखनऊ, 06 सितंबर: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद राजनीति काफी करवट ले रही है। कुछ दिनों पहले हुए एक सियासी उलटफेर में ओम प्रकाश राजभर और शिवपाल यादव ने सपा के चीफ अखिलेश यादव के साथ गठबंधन से अलग हो गए थे। अखिलेश से अलग होने के बाद शिवपाल एक ओर जहां अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुटे हैं वहीं दूसरी ओर अखिलेश यादव को कमजोर करने का कोई मौका चूक नहीं रहे हैं। अपने अपमान से आहत शिवपाल ने अब डीपी यादव का साथ पकड़ा है। शिवपाल को पता है कि बदायूं और उसके आसपास के जिलों में डीपी यादव का काफी दबदबा है और वह मुलायम के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं। लिहाजा अब उनका साथ लेकर अखिलेश के यादवलैंड पर एक साथ हल्ला बोलने की तैयारी में शिवपाल लगे हुए हैं।
अखिलेश के यादवलैंड पर शिवपाल की नजर
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव के दौरान मैनपुरी की करहल सीट से चुनाव लड़ा था। वह यहां से भारी मतों से जीते भी थे। तब यही कहा गया था कि यादवलैंड में पुराने भरोसे को कायम रखने के लिए ही अखिलेश ने चुनाव लड़ने का दांव चला था। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो मैनपुरी और उसके आसपास के जिलों में अखिलेश को अपना भरोसा बरकरार रखने के लिए काफी मेहनत करनी होगी। यह वही इलाका है जहां डीपी यादव और शिवपाल यादव अपनी जड़ें जमाने में जुटे हुए हैं। अगर यहां अखिलेश की जमीन खिसकी तो मिशन 2024 का सफर काफी कठिन हो जाएगा।
मुलायम के गढ़ में शिवपाल का मोहरा बनेंगे डीपी यादव
उत्तर प्रदेश में खासतौस से बदायूं, सम्भल और इनसे सटे यादव बाहुल्य इलाकों में डीपी यादव का काफी रसूख माना जाता है। इन्होंने अपनी राजनीति की शुरूआत बुलंदशहर से की थी। बुलंदशहर से पहली बार विधायक चुने गए डीपी यादव ने 2007 में खुद की पार्टी बनाकर बदायूं जिले से ही अपनी राजनीति आगे बढ़ाई थी। तब बदायूं को सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का गढ़ माना जाता था। यह जानते हुए भी डीपी यादव ने मुलायम सिंह को चुनौती दी थी। 2007 के विधानसभा चुनाव में डीपी यादव अपनी पार्टी राष्ट्रीय परिवर्तन दल के टिकट पर बदायूं जिले की सहसवान विधानसभा सीट से और उनकी पत्नी उर्मिलेश यादव बिसौली सीट से चुनाव लड़े और दोनों जीतकर विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे थे।
यादव बाहुल्य इलाकों में डीपी यादव के परिवार का दबदबा
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो इस समय डीपी यादव के परिवार के सदस्य भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं। यूपी के पंचायत चुनावों में भी डीपी यादव के सबसे बड़े भतीजे जितेंद्र यादव की पत्नी वर्षा यादव बदायूं की जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं थीं। उनके छोटे भतीजे विक्रांत यादव की पत्नी कृति यादव बदायूं के ही सहसवान में बॉक प्रमुख बनी थीं। डीपी यादव का सियासी दबदबा अभी भी कायम है और 2022 के विधानसभा चुनाव में बदायूं और इससे सटे आस-पास के जिलों में भी डीपी यादव काफी असरकारक साबित हुए थे। अब शिवपाल यादव ने डीपी यादव के इसी दबदबे का लाभ लेकर अपनी सियासी रोटियां सेंकना चाहते हैं।
2024 में शिवपाल के लिए फायदेमंद हो सकते हैं डीपी
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो फिलहाल शिवपाल यादव का पूरा फोकस अखिलेश यादव और उनकी रणनीति को काउंटर करने का है। इसी को देखते हुए शिवपाल ने डीपी यदव का साथ लिया है। यूपी के बदले हुए सियासी हालात में डीपी यादव का सियासी प्रभाव बुलंदशहर, बदायूं, सम्भल, गाजीपुर और मुरादाबाद जैसे यादव और मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में अखिलेश यादव को खासा नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि, डीपी यादव ने कुछ दिन पहले ही अपने एक बयान में कहा था कि उन्होंने शिवपाल के साथ मिलकर मोर्चा बनाया है उसका मकसद अखिलेश यादव को परेशान करना नहीं है।
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सपा की जमीन खिसका पाएंगे डीपी यादव-शिवपाल यादव ?
शिवपाल यादव और डीपी यादव के साथ आने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या दोनों मिलकर अखिलेश यादव के गढ़ में उनकी जमीन खिसका पाएंगे। यादव बेल्ट में डीपी यादव का अपना दबदबा है और उसके आधार पर वह शिवपाल के भरोसे पर कितना खरा उतरेंगे यह देखना दिलचस्प होगा। वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन सिंह कहते हैं, '' शिवपाल-डीपी यादव का गठबंधन कितना कारगर होगा यह अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन एक बात तो तय है कि इससे अखिलेश की मुश्कलें तो जरूर बढ़ेंगी। क्योंकि यूपी में अब यादव वोट बैंक को हथियाने की भी सियासत शुरू हो गई है। पहले अखिलेश के पास यादवों का एक बड़ा चंक वोट था लेकिन अब उसमें सेंधमारी का प्रयास शुरू हो गया है।''
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