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गठबंधन को लेकर अखिलेश और जयतं ने क्यों साध रखी है चुप्पी, जानिए कहां अटकी है गाड़ी

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लखनऊ, 26 अक्टूबर: उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुत कम दिन बचे हैं. ऐसे में तमाम राजनीतिक दल अपनी रणनीति तैयार करने में लगे हैं। कोई गठबंधन का ऐलान कर रहा है तो कोई नए राजनीतिक साथी की तलाश में लगा हुआ है। हालांकि पिछले 3 साल से उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक साथ कई चुनाव लड़ चुके रालोद और सपा के बीच तालमेल नहीं हो पा रहा है। सपा के साथ गठबंधन की घोषणा में आाखिर देरी क्यों हो रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जयंत चौधरी को समाजवादी पार्टी से गठबंधन को लेकर कोई संशय है या किसी खास रणनीति के तहत चुप्पी साधे हुए हैं।

अखिलेश यादव

आरएलडी के सूत्रों की माने तो जिस तरह से अखिलेश यादव ने पूर्वांचल में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठंधन का ऐलान किया है उसी तरह उनको राष्ट्रीय लोकदल के साथ भी अपनी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट करनी चाहिए। इसको लेकर दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के मन में संशय बना हुआ है क्या दोनों के बीच गठबंधन होगा या नहीं। सूत्रों का दावा है कि अखिलेश और जयंत चौधरी के बीच सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है। जयंत ने पश्चिमी यूपी की 40 विधानसभा सीटों पर अपनी दावेदारी ठोकी है जबकि सपा उन्हें केवल 20 सीटों तक ही समेटना चाहती है।

कांग्रेस भी जयंत पर डाल रही डोरे, डिप्टी सीएम का ऑफर भी
बड़ा सवाल यह है कि क्या जयंत-अखिलेश समय रहते सीटों पर फंसा पेंच सुलझा पाएंगे या फिर रालोद और सपा के रास्ते अलग अगल होंगे। दोनों पार्टियों के बीच मतभेदों के बीच कांग्रेस भी जयंत चौधरी पर डोरे डाल रही है और इसके लिए जाट नेता दीपेंद्र हुड्‌डा को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। जयंत अभी गठबंधन को लेकर कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं वहीं पार्टी के नेता इतना ही कह पा रहे हैं कि सीटों को लेकर सैद्धांतिक सहमति बन गई है जल्द ही इसकी घोषणा की जाएगी लेकिन जिस तरह से अखिलेश और जयंत ने अपने गठबंधन को लेकर चुप्पी साध रखी है उससे ऐसा लग रहा है कि राह में रोड़े अभी बने हुए हैं।

जयंत

रालोद के राष्ट्रीय सचिव अनिल दुबे कहते हैं कि,

'' गठबंधन को लेकर दोनों दलों के बीच बातचीत अंतिम चरण में है। जल्द ही इसकी घोषणा की जाएगी। सीटों को लेकर बातचीत चल रही है। कहीं कोई दिक्कत नहीं है। समय आने पर इसकी घोषणा हो जाएगी।''

पश्चिमी में जब जब रालोद अकेले लड़ी तो हुआ नुकसान
सपा ने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और केवल 47 सीटों पर जीत हासिल की, 2012 की 224 सीटों की तुलना में 177 सीटों का नुकसान हुआ। रालोद अकेले चुनाव लड़ी और केवल एक सीट जीती जो उसके 2012 के आंकड़े से आठ कम थी। इसके तुरंत बाद, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और रालोद के जयंत चौधरी दोस्त बन गए। दोनों पहली बार 2018 में यूपी लोकसभा और चार सीटों- गोरखपुर, फूलपुर, और कैराना (सभी लोकसभा) और नूरपुर (विधानसभा) के लिए विधानसभा उपचुनाव में एक साथ आए थे। उन्होंने भाजपा से चारों सीटों पर कब्जा कर लिया।

सपा-रालोद गठजोड़ पर टिप्पणी करते हुए, एक राजनीतिक विश्लेषक और आगरा विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख राकेश द्विवेदी ने कहा कि,

"यह अच्छा है कि दोनों दलों और उनके नेताओं, अखिलेश और जयंत ने गठबंधन करने का निर्णय लिया है। दोनों पक्षों के एक साथ आने के बाद से बिना किसी तनाव और कलह के एक परिपक्व होकर आगे बढ़ना चाहिए। हालांकि यह इस तथ्य के बावजूद कि उनके दोनों पिता - मुलायम सिंह यादव और अजीत सिंह - राजनीति में विरोधी थे। अखिलेश को इस तरह के और क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करना चाहिए।"

रालोद

लोकसभा में रालोद को मिली तीन सीटें, नहीं खुला खाता
इससे पहले 2019 में, जब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती और अखिलेश यादव ने गठबंधन किया, तो आरएलडी शुरू में कहीं नहीं थी। हालांकि, अखिलेश यादव ने उन्हें आरएलडी को बोर्ड में लेने के लिए मना लिया। सपा-बसपा ने रालोद को चुनाव लड़ने के लिए तीन सीटें (मुजफ्फरनगर, बागपत और मथुरा) दीं। रालोद इनमें से कोई भी सीट नहीं जीत सकी। सपा की संख्या 2014 के समान ही पांच पर रही, लेकिन वह कन्नौज और फिरोजाबाद के अपने गढ़ों में हार गई। दूसरी ओर, बसपा ने 2014 में 11 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि एक भी नहीं।

मायावती

लोकसभा चुनाव के बाद मायावती ने गठबंधन तोड़ा
इसके तुरंत बाद, मायावती गठबंधन से बाहर हो गईं, लेकिन रालोद ने सपा के साथ रहना जारी रखा। 2019 के यूपी विधानसभा उपचुनाव में 11 सीटों के लिए सपा ने रामपुर सीट बरकरार रखी और भाजपा से जलालपुर और जैदपुर को छीन लिया। अन्य आठ सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की। अब, सपा और रालोद 2020 विधानसभा उपचुनाव एक साथ लड़ रहे हैं। 2017 में सपा ने जिन सात सीटों पर जीत हासिल की थी, उनमें से केवल मल्हानी (जौनपुर) थी। छह अन्य सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। सपा-रालोद गठबंधन इस बार मल्हनी को बनाए रखने और अधिक सीटें जीतने की कोशिश कर रहा है।

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English summary
Why Akhilesh and Jayant have kept silence regarding the alliance, know where the screw is getting stuck
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