जाट लैंड का 'चौधरी' कौन? ये आंकड़े चुनावी पंडितों को चौंका देंगे
मेरठ, 14 मार्च: यूपी चुनाव में इसबार शुरू से बीजेपी पश्चिमी यूपी खासकर जाट लैंड में बड़ी मुसीबत में फंसी नजर आ रही थी। कहा जा रहा था कि किसान आंदोलन की वजह इस चुनाव में वह पिछले चुनाव के प्रदर्शन के आसपास भी नहीं फटक पाएगी। सपा-रालोद गठबंधन की मजबूती के तरह-तरह के दावे किए जा रहे थे। जाट-मुस्लिम एकजुटता के इतिहास दोहराए जाने की चर्चाएं थीं। लेकिन, अब जब पहले चरण के चुनाव का विस्तृत आंकड़ा सामने आया है तो कहानी काफी अलग नजर आ रही है। यहां बीजेपी का वोट शेयर लगभग 50% के करीब पहुंच चुका है, जो किसी भी चुनाव के लिए आदर्श स्थिति मानी जाती है। आप खुद ही पहले चरण में मतदाताओं का मूड देखिए, जिसमें साफ हो जाएगा कि असल में जाट लैंड का 'चौधरी' कौन है ?

जाट लैंड को लेकर किए गए थे तरह-तरह के दावे
साल भर लंबे चले किसान आंदोलन की वजह से इस चुनाव में माना जा रहा था कि बीजेपी का गढ़ बन चुका पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट लैंड ही इसबार उसपर भारी पड़ेगा। कहा जा रहा था कि भाजपा के कट्टर समर्थक रहे जाट वोटर अबकी बार उससे बहुत ज्यादा नाराज हैं। किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत खुद को जाटों का प्रतिनिधि बताते हुए ऐसे दावे कर रहे थे कि 2022 में तो मुस्लिम-जाट गठबंधन 'कमल' को पूरी तरह से उखाड़ फेंकेगा। दावा किया जा रहा था कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पहली बार जाट और मुस्लिम मिलकर भाजपा के खिलाफ वोट कर रहे हैं और पिता अजीत सिंह के निधन के चलते छोटे चौधरी जयंत को जाटों का सहानुभूति वोट भी पक्का है। लेकिन, जाट लैंड में पहले पहले चरण की वोटिंग के जो सूक्ष्म आंकड़े सामने आए हैं, उससे इन दावों की हकीकत सामने आ गई है।

जाट लैंड में दिखा भाजपा और सीएम योगी का करिश्मा
यूपी के पहले चरण का चुनाव परिणाम न सिर्फ जाटों की नाराजगी के दावे करने वाले नेताओं की पोल खोल रहा है, बल्कि चुनावी पंडितों के लिए भी चौंकाने वाला है। क्योंकि, बीजेपी ने न सिर्फ 11 जिलों की 58 में से इस बार भी अधिकतर 46 सीटें जीत ली हैं, बल्कि उसे लगभग 50% वोट भी मिले हैं। जबकि, सपा और आएलडी गठबंधन के लिए जो माना जा रहा था कि ये बीजेपी का क्षेत्र में सूपड़ा साफ कर देंगे, वे सिर्फ 31% वोट ही ला पाए हैं। स्पष्ट है कि दावों के विपरीत जाटों के एक बड़े तबके ने भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में बेहतर हुए कानून और व्यवस्था के दावे पर यकीन करके उनके लिए वोटिंग की है। खासकर इसमें महिला वोटरों का बहुत ही बड़ा रोल है।

शामली को छोड़कर भगवा का जलवा
सच तो यह है कि इस फेज में भी जो 24 जाट-बहुल सीटें थीं, उनमें से 18 बीजेपी जीती है और 2017 से उसे सिर्फ एक सीट का नुकसान हुआ है। वहीं जाटों की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल को 4 और समाजवादी पार्टी को 2 सीटें मिली हैं। बीजेपी को सही मायने में सिर्फ शामली के कैराना में झटका लगा है, जहां से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसबार चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। यही नहीं सपा गठबंधन ने शामली की तीनों सीटें भी जीत ली हैं। जबकि, भाजपा ने 6 जिलों- गौतम बुद्ध नगर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, हापुड़, आगड़ा और अलीगढ़ में पूरी तरह से विपक्ष का काम तमाम कर दिया है।

भाजपा फिर बनी जाट लैंड की 'चौधरी'
पहले चरण की 58 सीटों में बीजेपी को 2017 में 46.3% (53 सीट) वोट मिले थे। इसबार उसे 49.7% (46 सीट) या लगभग आधे वोट मिले हैं। वहीं समाजवादी पार्टी को 2017 में यहां 14.3% वोट मिले थे, जबकि इसबार उसे 15.8% वोट मिले हैं। अलबत्ता उसके सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल का वोट शेयर इस बार दोगुना से ज्यादा जरूर हुआ है। 2017 में आरएलडी को 7.1% वोट मिले थे, इसबार उसे 15.9% वोट मिले हैं। पूरे यूपी की तरह सबसे ज्यादा नुकसान में बीएसपी है। 2017 में मायावती की अगुवाई वाली पार्टी को 22.5% वोट मिले थे, इसबार उसे सिर्फ 13.6% वोट मिले हैं। इसी तरह कांग्रेस को पिछली बार सपा के साथ गठबंधन में 6.6% वोट मिले थे, लेकिन इस बार पहले चरण में वह सिर्फ 2.1% वोट ही ले सकी है।
इसे भी पढ़ें- ओवैसी ने यूपी की इतनी सारी सीटों पर सपा की साइकिल पंक्चर कर दी, खिल गया भाजपा का कमल

छोटे 'चौधरी' के प्रदर्शन में भी सुधार
आरएलडी का प्रदर्शन पिछली बार से काफी सुधरा है और 2017 में मिली एक सीट से पहले चरण में सात सीटों का इजाफा करने में वह सफल रहा है। वहीं, समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन दावे के मुताबिक नहीं रहा है और वह इस चरण में 2017 के दो सीट से कुछ ज्यादा 5 सीटें जीत पाई है। जबकि, बीएसपी को इस चरण में पिछले चुनाव में 2 सीटें मिली थीं, इस बार उसका यहां खाता भी नहीं खुला है। सीटों के मामले में कांग्रेस के पास इसबार रोने के लिए कुछ भी नहीं है, क्योंकि 2017 में भी उसे इस चरण में एक भी सीट नहीं मिली थी।